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क्षय रोग निदान में क्रांतिकारी बदलाव: दो युवा शोधकर्ताओं ने विकसित किया तेज़, सटीक AI-संचालित उपकरण

टीबी जैसी गंभीर बीमारी के निदान में प्राय पारंपरिक तरीके समय लेते हैं और विशेष रूप से सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में कम प्रभावी साबित होते हैं। दावुलुरी और यारलागड्डा का यह AI-आधारित उपकरण न केवल सटीकता में सुधार करता है बल्कि त्वरित स्क्रीनिंग के लिए भी अनुकूल है जिससे दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार आ सकता है।

By Jagran News Edited By: Anurag Mishra Updated: Tue, 19 Nov 2024 09:20 PM (IST)
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AI हमें निदान में उस स्तर की सटीकता प्रदान कर सकती है जिसे मैनुअल रूप से प्राप्त करना कठिन है
 दो युवा इंडो-अमेरिकी शोधकर्ताओं, मनस्विनी दावुलुरी और वेंकट साई तेजा यारलागड्डा, ने क्षय रोग (टीबी) के निदान में तेजी और सटीकता लाने के लिए एक AI-संचालित उपकरण विकसित किया है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की दिशा में एक कदम है। छाती के एक्स-रे का विश्लेषण करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए इस गहन शिक्षण (डीप लर्निंग) मॉडल का उद्देश्य टीबी निदान प्रक्रिया को कुशल और अधिक प्रभावी बनाना है। यह नवीन उपकरण न केवल रोगियों के परिणामों को बेहतर बना सकता है बल्कि टीबी के प्रसार को भी नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकता है।

टीबी जैसी गंभीर बीमारी के निदान में प्राय: पारंपरिक तरीके समय लेते हैं और विशेष रूप से सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में कम प्रभावी साबित होते हैं। दावुलुरी और यारलागड्डा का यह AI-आधारित उपकरण न केवल सटीकता में सुधार करता है बल्कि त्वरित स्क्रीनिंग के लिए भी अनुकूल है, जिससे दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार आ सकता है।

"AI की शक्ति हमें निदान में उस स्तर की सटीकता प्रदान कर सकती है जिसे मैन्युअल रूप से प्राप्त करना कठिन है," मनस्विनी दावुलुरी ने कहा। उनकी और यारलागड्डा की यह परियोजना चिकित्सा क्षेत्र में AI के महत्व को रेखांकित करती है, जहाँ गहन शिक्षण तकनीकें पहले से ही कैंसर और निमोनिया जैसी बीमारियों के पहचान में सहायक सिद्ध हुई हैं। शोध क्षेत्र में, रजरामन (2020) जैसे अध्ययनों ने यह साबित किया है कि AI मॉडल 90% से अधिक संवेदनशीलता के साथ टीबी का निदान कर सकते हैं।

AI द्वारा निदान की सटीकता में सुधार

दावुलुरी और यारलागड्डा का यह AI मॉडल न केवल संवेदनशीलता को बढ़ाता है बल्कि पारंपरिक तरीकों से भी अधिक सटीकता प्रदान करता है। इस उपकरण का तेज़ प्रोसेसिंग समय इसे एक प्रभावी और सटीक समाधान बनाता है, जिससे टीबी जैसी गंभीर बीमारी का निदान अब तेजी से और विश्वसनीयता के साथ किया जा सकता है। यह उपकरण उन क्षेत्रों में भी उपयोगी हो सकता है जहां प्रशिक्षित रेडियोलॉजिस्ट की कमी है, जिससे यह सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी टीबी का निदान करने में मददगार हो सकता है।

हालांकि, शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि AI को वास्तविक परिस्थितियों में लागू करने के लिए पर्याप्त परीक्षण और सटीकता आवश्यक है। "डेटा सेट के पक्षपात, विश्लेषण की स्पष्टता और नैदानिक परीक्षण जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है," यारलागड्डा ने कहा।

शोधकर्ताओं से मिलिए

मनस्विनी दावुलुरी एक अनुभवी प्रोजेक्ट मैनेजर और AI विशेषज्ञ हैं, जिनके पास डेटा-संचालित परियोजनाओं में आठ वर्षों का अनुभव है। अमृता यूनिवर्सिटी, भारत की स्नातक और विलमिंगटन यूनिवर्सिटी, अमेरिका से मास्टर डिग्री प्राप्त दावुलुरी ने इस प्रोजेक्ट में AI और स्वास्थ्य में उसके उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया है।

वेंकट साई तेजा यारलागड्डा, इंडियाना वेस्लेयन यूनिवर्सिटी के आईटी विभाग में शोधकर्ता हैं और AI का उपयोग करके जनस्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करना चाहते हैं। उनकी इस परियोजना में सहभागिता AI द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक सुलभ और व्यापक बनाने की दिशा में उनकी सोच को दर्शाती है।

AI और गहन शिक्षण का उपयोग टीबी निदान में एक बड़ी प्रगति है, जिससे लाखों लोगों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार आ सकता है। वैश्विक चिकित्सा समुदाय के AI-आधारित समाधानों को अपनाने के साथ, दावुलुरी और यारलागड्डा का यह उपकरण टीबी के खिलाफ लड़ाई में एक मजबूत कदम है। उनका शोध भविष्य में AI-आधारित चिकित्सा उपकरणों को अपनाने और उन्नत करने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान कर सकता है।

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