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मौलिक अधिकार नहीं है बच्चा गोद लेने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चे को गोद लेने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि गोद लेने के अधिकार को अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार की स्थिति तक नहीं बढ़ाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से कल्याण के आधार पर संचालित होती है।

By Vineet Tripathi Edited By: Geetarjun Updated: Tue, 20 Feb 2024 07:25 PM (IST)
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मौलिक अधिकार नहीं है बच्चा गोद लेने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चे को गोद लेने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि गोद लेने के अधिकार को अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार की स्थिति तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से कल्याण के आधार पर संचालित होती है और इसलिए गोद लेने के ढांचे के भीतर आने वाले अधिकार भावी दत्तक माता-पिता (पीएपी) के अधिकारों को सबसे आगे नहीं रखते हैं।

अदालत ने उक्त निर्णय दो जैविक बच्चों वाले कई पीएपी की याचिकाओं पर दिया। पीएपी ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2015 के अनुसार तीसरे बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया था। अदालत ने दो या दो से अधिक बच्चों वाले दंपत्तियों को केवल विशेष जरूरतों वाले या मुश्किल से पैदा होने वाले बच्चों को गोद लेने की अनुमति देने संबंधी विनियमन के पूर्वव्यापी आवेदन को बरकरार रखा।

अदालत ने कहा कि गोद लेने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है और कई निःसंतान जोड़े और एक बच्चे वाले माता-पिता दिव्यांग के बजाय सामान्य बच्चे को गोद लेना चाहेंगे। ऐसे में विनियमन का उद्देश्य केवल यही सुनिश्चित करना है कि विशेष आवश्यकता वाले अधिक से अधिक बच्चों को गोद लिया जाएं।

याचिकाकर्ताओं की याचिका लंबित रहने के दौरान दत्तक ग्रहण नियम- 2022 ने दत्तक ग्रहण विनियम-2017 को हटा दिया और तीन या अधिक बच्चों के बजाय अब दो या अधिक बच्चों वाले दंपती केवल विशेष जरूरतों वाले या ऐसे बच्चों को गोद लेने का विकल्प चुन सकते हैं, जिन्हें पालना मुश्किल हो।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि दत्तक ग्रहण विनियम 2022 का पूर्वव्यापी आवेदन मनमाना होने के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन है। याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि किसी विशेष बच्चे को गोद लेने पर जोर देने का कोई अधिकार नहीं है।

अदालत ने कहा कि पीएपी के रूप में याचिकाकर्ताओं का पंजीकरण अभी भी बरकरार है और वे विशेष जरूरतों वाले बच्चों, रिश्तेदारों या सौतेले बच्चों के बच्चों को गोद लेने के विचार के दायरे में हैं।

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