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पाकिस्तान के लड़के और हिंदुस्तान की लड़की के बीच जन्मीं थी यह अधूरी लव स्टोरी

Sahir Ludhianvis 100th Birth Anniversary साहिर की जिंदगी में यूं तो 2 युवतियों ने दस्तक दी लेकिन वह किसी के न हो सके। अमृता-साहिर से मोहब्बत के अफसाने आज भी लोगों को याद आते हैं लेकिन दोनों की नाकाम मोहब्बत पाठकों की आंखों को नम कर देती है।

By Jp YadavEdited By: Updated: Tue, 09 Mar 2021 03:30 PM (IST)
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अमृता प्रीतम और साहिर की नाकाम मोहब्बत पाठकों की आंखों नम कर देती है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Sahir Ludhianvi Birth Anniversary: स्कूल की मोहब्बत इतनी मासूम निकली कि अपने अंजाम से चूक गई। फिर कॉलेज में जाने पर मोहब्बत को समझने के लिए प्रख्यात शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी का सहारा लेना पड़ा। यह कहानी कॉलेज जाने वाले एक युवक की नहीं, बल्कि तकरीबन सबकी होती है। ऐसा युवक जब साहिर लुधियानवी से जुड़ता है तो वे मोहब्बत की रूहानी रौशनी में नहा लेता है-भीग जाता है। शायर साहिर लुधियानवी ने जितने दर्द भरे गीत और शायरी लिखी, उससे ज्यादा रचे खुशी के नग्मे, लेकिन मोहब्बत करने वालों को उनके दोनों ही तरह के गीत पसंद आए। 8 मार्च को मशहूर शायर साहिर की 100 जयंती थी। देश की नहीं, बल्कि दुनिया के इस अनमोल नगीने यानी साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च को पंजाब के शहर लुधियाना में हुआ था, तब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था।

मोहब्बत 2 युवतियों से की, लेकिन अंजाम रहा अधूरा

कहते हैं ना हम जो बातें दुनिया की सारी किताबें पढ़कर नहीं सीख सकते वह एक मोहब्बत करके सीख जाते हैं या सिखा देती है, लेकिन यहां तो साहिर लुधियानवी ने दो-दो कलाकार लड़कियों से मोहब्बत की थी। यह अलग बात है कि शायर साहिर की जिंदगी में यूं तो 2 युवतियों ने दस्तक दी, लेकिन वह किसी के न हो सके। एक थी अमृता प्रीतम और दूसरी सुधा मल्होत्रा। अमृता प्रीतम से साहिर से मोहब्बत के अफसाने आज भी लोगों को गुदगुदाते हैं, लेकिन दोनों की नाकाम मोहब्बत पाठकों की आंखों को नम कर देती हैं। शायद साहिर ने जानबूझकर नाकाम मोहब्बत का चुना और दर्द को दिल में समेट लिया। यह दर्द जब कलम से निकलकर कागजों में निकला तो दुनिया ने शायर साहिर को सलाम किया। यह भी सच है कि नाकाम मोहब्बत के बावजूद साहिर ने अमृता को जेहन में रखकर न जाने फिल्मी गीत और नज्में लिखी होंगीं। अमृता प्रीतम ने भी अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में खुलकर साहिर से इश्क का इजहार किया है। सच बात तो यह है कि दोनों की नाकाम मोहब्बत ने दुनिया अनमोल गीत और रचनाएं दीं, जो साहित्य की धरोहर बन गईं।

दिल्ली में मिले थे साहिर-अमृता के दिल

साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की लव स्टोरी भारत के बंटवारे से पहले की है। दिल्ली की रहने वाली अमृता प्रीतम को पाकिस्तान के शहर लाहौर के रहने वाले साहिर पहली नजर में भा गए थे। इसमें खास बात थी साहिर की शायरी। इसमें आधा ही सच है, क्योंकि जब दिल्ली में साहिर-अमृता मिले तो दोनों ही एक-दूसरे को दिल दे बैठे थे। समाज की नजर में दोनों की गुस्ताखी यह थी कि जहां अमृता शादीशुदा थी, तो साहिर अविवाहित। समाज की नजर में दोनों को एक-दूसरे के प्रति झुकाव नाजायज था। खैर, यह मोहब्बत एक दिन ऐसा अफसाना बनी कि लगता है ऐसी मोहब्बत न होती तो हिंदुस्तान के लोगों को इतने खूबसूरत गीत और अच्छी कहानियां-उपन्यास न नसीब होते। 

ये प्यार नहीं तो क्या था...

बयाया जाता है कि अमृता प्रीतम इस कदर साहिर से मोहब्बत करती थीं वह अपने पति को तलाक देने के लिए भी तैयार हो गईं थीं। मगर साहिर ही पीछे हट गए और मरते दम तक इसका राज न खोला। यह अलग बात है कि अमृता प्रीतम मरते दम तक साहिर से मोहब्बत करती रहीं और काफी पहले ही वह अपने पति इमरोज से अलग भी हो गईं। बताया जाता है कि साहिर लाहौर में अमृता प्रीतम के घर आया करते थे, लेकिन वह साथ बैठकर भी कुछ नहीं कहते। इस दौरान वह एक के बाद एक सिगरेट पिया पीते थे। वहीं, उनके पास बैठीं अमृता इतना लगाव रखती थीं कि साहिर के जाने के बाद सिगरेट की बटों को उनके होंठों के निशान के हिसाब से दोबारा पिया करती थीं। इतना ही नहीं, सिगरेट के जले हिस्से उन्होंने महीनों-सालों तक संभालकर रखे थे। खैर साहिर की सोहबत ने अमृता प्रीतम को सिगरेट पीने की लत लगा थी। वहीं, साहिर के घर आईं तो अमृता ने जिस कप से एक बार चाय पी वह हमेशा के लिए कमरे में रखा रहा। कोई दोस्त उनके कप धोने की जिद करता तो साहिर लुधियानवी बिना किसी दुराव छिपाव के कहते... इसमें अमृता ने चाय पी है, इसे धोना नहीं।

साहिर युवा होते-होत शेरो-शायरी का शौकीन हो गए। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपनी शायरी से तहलका मचा दिया। 1949 में साहिर लाहौर छोड़कर दिल्ली आ गए। फिर दिल्ली में कुछ रहने के बाद वे बंबई (वर्तमान मुंबई) चले गए। इसके बाद उन्होंने जो लिखा उसकी दुनिया कायल हो गई।

 मैं जानता हूं कि तू गैर है मगर यूं ही... 

अमृता ने लिखा है कि दोनों के बीच मुलाकात बमुश्किल ही होती थी। साहिर लाहौर रहते थे और अमृता दिल्ली। अपनी इस दूरी को कम करने के लिए उन्होंने ख़तों का सहारा लिया। खतों के जरिए दोनों अपने इश्क को परवान चढ़ा रहे थे। अमृता साहिर के प्रेम में इतनी दीवानी हो चुकी थीं कि उन्हें ‘मेरा शायर, मेरा खुदा और मेरा देवता’ कहकर बुलाती थीं। साहिर भी अमृता से उतना ही प्रेम करते थे, लेकिन बंदिशें इतनी थीं कि दोनों कभी एक न हो पाए। कहते हैं कि अमृता दिल्ली में साहिर और उनकी मां से मिलने के लिए आईं थीं। अमृता के रुख्सत होने के बाद दोस्तों के सामने ही साहिर ने अपनी मां से कहा था ‘ये अमृता थी, जानती हो ना? ये आपकी बहू बन सकती थी।’

अपनी शर्तों पर काम किया साहिर ने

साहिर ने फिल्मों में गीत लिखने शुरू किए तो उर्द अदब को नई परिभाषा मिली। साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी-कभी सुपर हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे। कहने का मतलब उन्होंने जो भी लिखा वह पारस हो गया। उन्होंने हमेशा अपनी शर्तों का काम किया और फिल्मकार उनकी काबिलियत से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने साहिर की हर शर्त मानी।

साहिर लुधियानवी के लिखे मशहूर गीत

जिसे तू क़ुबूल कर ले वो अदा कहां से लाऊं (देवदास)

क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिन की फ़ितरत छुपी रहे (इज्जत)

सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो (बहू-बेटी)

भूल सकता है भला कौन ये प्यारी आंखें (धर्म पुत्र)

रात के राही थक मत जाना सुब्ह की मंज़िल दूर नहीं (बाबल)

बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत गाता जाए बंजारा

शे'र का हुस्न हो नग़्मों की जवानी हो तुम

कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी

मौत कभी भी मिल सकती है लेकिन जीवन कल न मिलेगा

महफ़िल से उठ जाने वालो तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम

सुरमई रात है सितारे हैं

सँभल ऐ दिल तड़पने और तड़पाने से क्या होगा

आज क्यूँ हम से पर्दा है

जीवन के सफ़र में राही

इन उजले महलों के तले

पिघली आग से साग़र भर ले

तुम ने कितने सपने देखे मैं ने कितने गीत बुने

आज की रात मुरादों की बरात आई है

मैं ये कहती हूँ कि किस रोज़ हुज़ूर आएँगे

मैं जागूँ सारी रैन सजन तुम सो जाओ

नज़र से दिल में समाने वाले मिरी मोहब्बत तिरे लिए है

वो कैसे लोग थे जिन को प्यार से प्यार मिला (प्यासा)

ज़िंदगी-भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात

मिरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ

मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं

तुम अगर साथ देने का वा'दा करो

ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम

मैं हर इक पल का शायर हूं (कभी-कभी)

अब वो करम करें कि सितम मैं नशे में हूं

बाबुल की दुआएँ लेती जा जा तुझ को सुखी संसार मिले

ये देश है वीर जवानों का

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है

हम इंतिज़ार करेंगे तिरा क़यामत तक

जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग

रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएँगी

साथी हाथ बढ़ाना

मैं ने शायद तुम्हें पहले भी कहें देखा है

मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं

नग़्मा-ओ-शेर की सौग़ात किसे पेश करूँ

ये दुनिया दो-रंगी है

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

नहीं किया तो कर के देख

मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो

हर तरफ़ हुस्न है जवानी है

जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है

बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आँख के तारे

जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं

ग़ुस्से में जो निखरा है उस हुस्न का क्या कहना

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