पानी में तीन फीट गहराई से मछली पकड़ लेता है ये परिंदा, और भी हैं बहुत खूबियां
इस परिंदे की आंखें सुनहरी भूरी, चोंच काली, पंजे सफेद रंग के तथा नाखून काले रंग के होते है। नर व मादा आकार को छोड़ कर एक जैसे दिखते हैं।
रेवाड़ी [जेएनएन]। आस्प्रे को हिंदी भाषा में मछलीमार बाज या मछमंगा के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में पाया जाता है। इसे सी हॉक, रिवर हॉक व फिश हॉक के नाम से भी जाना जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में ये सर्दियों में प्रवास करते हैं। प्रवास के दौरान ये ज्यादातर दिन के समय में ही उड़ान भरते हैं। ये आमतौर पर एक दिन में लगभग 280-300 किलोमीटर उड़ते हैं और भारत में यूरोप से आते हैं।
नर व मादा एक जैसे दिखते हैं
आस्प्रे के शरीर का ऊपरी हिस्सा गहरा चमकीला भूरा, छाती सफेद रंग की, जिस पर भूरे रंग की धारियां तथा शरीर का बाकी नीचला हिस्सा सफेद रंग का होता है। इसका सिर सफेद रंग का, जिसपर आंखों के पास काले रंग की पट्टियां होती हैं, जो गर्दन तक पहुंचती हैं। इसकी आंखें सुनहरी भूरी, चोंच काली, पंजे सफेद रंग के तथा नाखून काले रंग के होते है। नर व मादा आकार को छोड़ कर एक जैसे दिखते हैं। आकार में मादा पक्षी ज्यादा सुडौल दिखती है।
तेज होती है नजर
इस पक्षी का मुख्य भोजन मछली होती है। मछली के अलावा ये कभी-कभी छोटे पक्षी, चूहे, सरीसर्प को भी अपना शिकार बना लेते हैं, लेकिन इनका 90 प्रतिशत भोजन मछली ही होता है। ये अपने शिकार को पंजों से जकड़ता है। इसके पंजों की सतह कांटेदार होती है, जिसकी सहायता से मछली इनके पंजों से नहीं फिसलती। इस पक्षी की दृष्टि काफी तेज होती है। ये आसमान में उड़ते हुए पानी के नीचे तैर रही मछली को आसानी से देख सकते हैं।
जैसे ही मछली पानी की सतह के पास आती है तो यह पक्षी अपने पंखों को इकट्ठा करके सीधा निशाना साधता है। ये पानी की सतह के लगभग तीन फीट नीचे से मछली को अपने पंजे में फंसा कर सीधा उड़ जाते हैं और किसी चट्टान या पेड़ पर बैठ कर मछली को टुकड़ों में तोड़ कर खाते हैं।
एक ही साथी के साथ जीवन भर रहते हैं
ये आमतौर पर 300 ग्राम वजन तक की मछली को पकड़ते है। ये पक्षी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रजनन करते हैं। प्रवास के बाद ये मार्च से अप्रैल तक अपने स्थानों पर वापस लौट आते हैं। ये आमतौर पर एक ही साथी के साथ जीवन भर रहते हैं। ये पक्षी अपने घोंसले ऊपरी शाखाओं में बनाते है। घोंसले तिनकों या अनय जलीय वनस्पति से बनाते हैं। एक जोड़ा काफी सालों तक अपने पुराने घोंसले को हर प्रजनन सीजन में पुन: ठीक कर प्रयोग करता रहता है। मादा तीन से चार अंडे देती है।
डीडीटी के प्रयोग से घटी संख्या
दुनिया के कई देशों में 1960 के दौरान आस्प्रे की संख्या में काफी गिरावट आई थी, जिसका मुख्य कारण उस सयम डीडीटी का प्रयोग था। डीडीटी बारिश के पानी के साथ झीलों व नदियों के पानी में पहुंच रही थी। पानी से ये मछलियों के शरीर में चला जाता था तथा जब आस्प्रे इन मछलियों का शिकार करता था तो यह डीडीटी इन पक्षियों के शरीर में जाकर इनके हार्मोनस का संतुलन बिगाड़ रहा था। जिसके कारण इन पक्षियों के अंडों की ऊपरी सतह काफी पतली व कमजोर हो रही थी और अंडे स्वयं ही नष्ट हो रहे थे। इसी कारण इनकी संख्या कम हो रही थी।
'पक्षियों का राजा' की संज्ञा
डीडीटी पर प्रतिबंध के बाद तथा विभिन्न प्रकार के संरक्षण प्रोग्राम के मध्य इनकी संख्या का संतुलन बनाने का प्रयास जारी है। भारत के पुरातन ग्रंथों में भी इस पक्षी का वर्णन है। बौद्ध धर्म में इस पक्षी को 'पक्षियों का राजा' की संज्ञा दी गई है। इस पक्षी की आयु 20 से 25 वर्ष तक होती है।
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आस्प्रे (मछलीमार बाज)
परिवार: पंडियानीडी
जाति: पनडियॉन
प्रजाति: हलियटस