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दिल्ली में देखें जलियांवाला बाग, अब पंजाब जाने की जरुरत नहीं

संग्रहालय में उन लोगों को श्रद्धांजलि दी गई है जो जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा चलाई गई गोली में मारे गए थे। इस नरसंहार में कितने लोग मारे गए हैं यह स्पष्ट नही है। मगर इतिहासकारों से जो नाम मिले हैं उन्हें यहां पर लिखा गया है।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Mon, 09 Nov 2020 08:59 AM (IST)
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उस समय मारे गए कई लोगों की फोटो देख सकते हैं।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। अगर आप जलियांवाला बाग देखना चाहते हैं और अमृतसर जाना संभव नहीं है, तो आप इसे दिल्ली में ही देख सकते हैं। जी,हां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) लालकिला में बाग-ए-जलियां के नाम से संग्रहालय बनाया है। इसे जलियांवाला बाग का स्वरूप दिया गया है। यहां पर अमृतसर के उसी स्मारक की तरह डिजाइन बनाया गया है और उसी तरह कुआं भी बनाया गया है।

इस संग्रहालय में उन लोगों को श्रद्धांजलि दी गई है जो जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा चलाई गई गोली में मारे गए थे। इस नरसंहार में कितने लोग मारे गए हैं यह स्पष्ट नही है। मगर इतिहासकारों से जो नाम मिले हैं उन्हें यहां पर लिखा गया है। एएसआइ के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि जलियांवाला बाग में हजारों लोगों के मारे जाने की बात कही गई है। मगर अमृतसर के जिलाधिकारी कार्र्यालय के रिकार्ड में 300 लोगों के मारे जाने की ही जानकारी मिल सकी है,इसलिए जगह छोड़ी गई है आगे जो नाम मिलते जाएंगे उन्हें भी लिखा जाता रहेगा। इस संग्रहालय में लोग अंग्रेजों द्वारा किए गए उस नरसंहार के बारे में दो तरीके से रूबरू हो सकते हैं।

एक में उस समय मारे गए कई लोगों की फोटो देख सकते हैं। घायलों की फोटो व उनके विचार देख सकते हैं। वहीं दूसरी तरह डिजिटल गैलरी भी बनाई गई हैं। जिनके माध्यम से भी लोग वहां के अपने इतिहास से रूबरू होंगे। इस नरसंहार की चश्मदीद एक महिला रतन देवी का बयान भी रोंगटे खड़े कर देने वाला है। लालकिला में चार संग्रहालय तैयार किए गए हैं। इनमें याद ए जलियां, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, 1857 क्रांति से संबंधित प्रतिकृतियों का संग्रहालय व भारतीय युद्ध स्मारक संग्रहालय शामिल हैं।

रतन देवी के बयान का मजमून

जलियांवाला बाग के निकट ही मेरा घर था। गोलियों की आवाज सुनकर मैं दौड़कर वहां पहुंची और देखा वहां मूत शरीरों के ढेर पड़े थे। उन ढेर से मैंने अपने पति को खोजा। दो और लोग अपने घरवालों को ढूंढ रहे थे। मैंने उनसे एक चारपाई ला देने के लिए कहा ताकि अपने पति का शरीर घर ले जा सकूं। कर्फ्यू Z लग चुका था, कोई भी मेरी मदद नहीं कर सका। तब तक रात के दस बज चुके थे। मैं बस इंतजार करती रही और रोती रही। कोई मदद न मिलने पर मैं हार कर वहीं बैठ गई। कुत्तों को भगाने के लिए मैंने एक छड़ी खोज ली। वहीं दर्द से छटपटाते मैंने तीन और लोगों को देखा। साथ ही कराहते हुए 12 साल के बच्चे को भी देखा जो मुझसे वहां से न जाने की विनती कर रहा था।

मैंने उससे कहा कि क्या मैं उसे कुछ ओढ़ा दूं मगर उसे पानी चाहिए था। मगर मैं पानी कहां से लाती। सुबह छह बजे मेरी गली के कुछ लोग चारपाई लेकर आए और पति के शरीर को मैं अपने घर ले जा सकी। अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करना मेरे लिए संभव नहीं है। मृतकों के ढेर पड़े थे कुछ पेट के बल तो कुछ पीठ के बल। उनमें कुछ छोटे छोटे मासूम बच्चे भी थे। मृतकों के बीच में सारी रात रोकी बिलखती इधर उधर लाशों को देखती रही।

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