Global warming Effect: पिघलते ग्लेशियर बढ़ाएंगे लोगों के लिए खतरा
2009 के बाद पिछले 13 सालों के दौरान भारत चीन और नेपाल के 25 झीलों और तालाबों ने 40 प्रतिशत से अधिक जल की वृद्धि दर्ज की गई है। इससे पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
By Prateek KumarEdited By: Updated: Sun, 05 Jun 2022 10:59 PM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हिमालय में, ग्लेशियरों के नष्ट होने से दो गंभीर खतरे हैं। कम समय में पिघलने वाले ग्लेशियर पहाड़ पर ही छोटे-छोटे तालाब बनाते हैं, यदि इनमें पानी की मात्रा बढ़ेगी तो इससे अधिक नुकसान होगा। यहां बसे छोटे गांव आदि खत्म हो जाएंगे। लंबी अवधि में ग्लेशियर की बर्फ के नुकसान का मतलब है कि एशिया के भविष्य के पानी का नुकसान। यदि इन ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने की दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो लंबे समय में अत्यधिक गर्मी और सूखे के समय पानी मुहैया करा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में लामोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में नवीनतम अध्ययन, हाल ही में अघोषित यू.एस. जासूस उपग्रह डेटा सहित हिमालय के 6000 किलोमीटर या 600 मील से अधिक की दूरी पर 650 ग्लेशियरों के उपग्रह चित्रों के विश्लेषण पर निर्भर है। शोधकर्ताओं ने छवियों को 3 डी मॉडल में बदल दिया, जोकि ग्लेशियरों के क्षेत्र और मात्रा में परिवर्तन दिखाते हैं।उन्होंने पाया कि 1975 से 2000 तक, पूरे क्षेत्र के ग्लेशियर हर साल 10 इंच बर्फ खो देते हैं। 2000 में इनका पिघलना शुरू हुआ था। अब इनेक नुकसान की दर दोगुनी हो गई, प्रत्येक वर्ष लगभग 20 इंच बर्फ पिघलकर पानी हो रही है। अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकला है। ईंधन से जलने से बर्फ के पिघलने में योगदान होता है। इन ग्लेशियरों के पिघलने का बड़ा कारक तापमान का बढ़ना था जबकि विशाल पर्वत श्रृंखला में तापमान औसत से अधिक था। पहले के वर्षों की तुलना में 2000 और 2016 के बीच काफी तेजी ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसका नतीजा दिख रहा है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से वैज्ञानिक काफी चिंतित है।
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