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Shraddha Murder Case: आज हो सकता है आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट; जानिए Narco Test से कैसे है अलग?

Shraddha Murder Case श्रद्धा वालकर हत्याकांड में कई हैरान कर देने वाले मामले सामने आए है लेकिन कई राज अब भी बाहर आना बाकी है। आफताब लगातार बयान बदलकर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। दिल्ली पुलिस की आस अब पॉलीग्राफ टेस्ट पर टिकी है।

By Aditi ChoudharyEdited By: Updated: Tue, 22 Nov 2022 11:26 AM (IST)
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Shraddha Murder Case: मंगलवार को हो सकता है आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। मुंबई की श्रद्धा वालकर हत्याकांड में आरोपित आफताब की रिमांड 4 दिनों के लिए बढ़ा दी गई है। मंगलवार को विशेष सुनवाई के दौरान आफताब ने दिल्ली की साकेत कोर्ट के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। आफताब ने जज को बताया कि उसने जो कुछ भी किया वह 'Heat of the moment' था। उसके किसी प्लानिंग के तहत श्रद्धा का कत्ल नहीं किया। 

इस बीच खबर सामने आ रही है कि दिल्ली पुलिस आज आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट करा सकती है। फॉरेंसिक लैब के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने श्रद्धा मर्डर केस के आरोपित आफताब का पॉलीग्राफिक टेस्ट कराने के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) से संपर्क किया है। इसकी तैयारी चल रही है। बताया जा रहा है कि आज आफताब को पॉलीग्राफ टेस्ट यानी लाई डिटेक्टर टेस्ट होगा।

सोमवार को आफताब अमीन पूनावाला का पालीग्राफ परीक्षण कराने के लिए दिल्ली पुलिस ने निचली आदालत में याचिका दायर की थी। साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अविरल शुक्ला ने मामले को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विजयश्री राठौड़ के पास भेजा, जिन्होंने पहले श्रद्धा हत्याकांड मामले की सुनवाई की थी और दिल्ली पुलिस को आफताब का नार्को टेस्ट कराने की अनुमति दी थी। 

पुलिस सूत्रों की मानें तो नार्को टेस्ट को लेकर दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में इस आधार पर आवेदन दिया था कि आफताब बयान बदलकर पुलिस को गुमराह कर रहा है। अब इसी आधार पर पॉलीग्राफ टेस्ट कराने को लेकर भी इजाजत मांगी गई है। नार्को टेस्ट और पॉलीग्राफ टेस्ट का मकसद किसी व्यक्ति से सच उगलवाना होता है। हालांकि, दोनों जांच की प्रक्रिया एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग है।

पॉलीग्राफ टेस्ट से कैसे होती है झूठ की पहचान?

पॉलीग्राफ टेस्ट को आसान भाषा में लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है। यह एक तरीके की खास तकनीक है, जिसमें मशीनों के जरिए सच और झूठ का पता लगाया जाता है। इसमें आरोपित या संबंधित शख्स से सवाल पूछे जाते हैं। फिर सवाल का जवाब देते समय मानव शरीर के आंतरिक व्यवहार जैसे पल्स रेट, हार्ट बीट, ब्लड प्रेशर आदि का मशीन की स्क्रीन पर लगे ग्राफ के जरिए आकलन होता है।

बिना किसी दवाई या इंजेक्शन के होती है जांच

इंसान अक्सर जब झूठ बोलता है तो उसे शरीर में पसीना आना, कंपकंपी होना, जोर-जोर से दिल धड़कना जैसे कई बदलाव होते हैं। लाई डिटेक्टर टेस्ट के दौरान इंसान के शरीर के विभिन्न अंगों पर तार लगाए जाते हैं, जिसके जरिए मशीन उसके हावभाव को मॉनिटर करता है। पॉलीग्राफ टेस्ट में व्यक्ति को किसी तरह की दवाई या इंजेक्शन नहीं दिया जाता है। वह पूरे होश में सवालों के जवाब देता है। पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान एक एक्सपर्ट व्यक्ति के शरीर में होने वाले बदलावों की निगरानी करता है। फिर उसी के आधार पर मशीन के आउटपुट देखकर सच और झूठ का फर्क बताता है।

पॉलीग्राफ टेस्ट से कैसे अलग है नार्को टेस्ट

नार्को टेस्ट पॉलीग्राफ टेस्ट से कई मायनों में अलग है। इस जांच की प्रक्रिया में व्यक्ति को एक इंजेक्शन लगाया जाता है, जिसके बाद वह न तो पूरी तरह होश में होता है और न ही बेहोश होता है। नार्को ग्रीक भाषा का एक शब्द है, जिसका मतलब एनेस्थीसिया होता है। नार्को टेस्ट में डॉक्टर ट्रुथ सिरप ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं। इसे इंजेक्शन में भरकर व्यक्ति को लगाया जाता है। हालांकि, इससे पहले कुछ रूटीन टेस्ट होते हैं, ताकि पता चल सके कि व्यक्ति का शरीर एनेस्थीसिया झेल पाने के लायक है या नहीं।

सोचने-समझने की शक्ति खो देता है इंसान

नार्को टेस्ट के समय बेहद सावधानी बरतनी होती है। जरा सी लापरवाही व्यक्ति की जान तक ले सकती है। भारत का कानून किसी व्यक्ति का नार्को टेस्ट की इजाजत तभी देता है जब उसके खिलाफ पुख्ता सबूत न हो या वह लगातार अपनी बातों से मुकर रहा हो। इस जांच से पहले एक्सपर्ट की एक टीम बनाई जाती है, जिनकी निगरानी में पूरी प्रक्रिया होती है। ट्रुथ ड्रग देने के बाद इंसान के दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और वह झूठ नहीं बोल पाता है। ऐसे में उसके मुंह से सच निकलने की संभावना अधिक होती है।

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