Shraddha Walker Murder: कोर्ट ने आरोपी आफताब की याचिका को किया खारिज, कहा- अगर मांग मानी तो यह मामले को लंबा खींचेगा
Shraddha Walker Murder Case श्रद्धा वालकर और आफताब पूनावाला लिव-इन में रहते थे। आरोपी ने श्रद्धा को गला दबाकर मार डाला। इसके उसने शरीर के टुकड़े किए फिर उन्हें फ्रिज में रखा। धीरे-धीरे वह दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में उन टुकड़ों को फेक आता था। यह उसे कई दिनों तक किया। पुलिस को उससे पूछताछ में शरीर के कुछ अंग भी मिले।
पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली का चर्चित और सनसनीखेज श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड के एकमात्र आरोपी आफताब पूनावाला की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। उसने अपने वकील को अपना बचाव तैयार करने के लिए उपयुक्त समय देने के लिए हर महीने केवल दो बार सुनवाई की मांग की थी। इस दौरान याचिका खारिज कर कोर्ट ने कहा कि यह अपील केवल मुकदमे को आगे बढ़ाने और विलंबित करने का एक साधन प्रतीत होता है।
आफताब पूनावाला को 12 नवंबर 2022 को दिल्ली पुलिस ने दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में किराए के अपने फ्लैट में श्रद्धा वालकर की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। आरोपी ने श्रद्धा की गला घोंटकर हत्या की थी और उसके शव के करीब 35 टुकड़े करने के बाद अपने घर में रखे फ्रिज में करीब तीन सप्ताह तक रखा था। आफताब और श्रद्धा लिव-इन में रह रहे थे।
कोर्ट ने सोमवार को पीड़िता की अस्थियों को दाह संस्कार के लिए तुरंत जारी करने से भी इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस गवाहों द्वारा पहचान के लिए अस्थियों की जरूरत है।
दिल्ली पुलिस की 6,629 पन्नों की चार्जशीट
दिल्ली पुलिस ने 6,629 पन्नों की चार्जशीट में कहा कि पूनावाला ने श्रद्धा के शरीर के टुकड़े कर उन्हें फ्रिज में रखा। पकड़े जाने से बचने के लिए कई दिनों तक शहर भर में सुनसान जगहों पर टुकड़ों को ठिकाने लगाता रहा। बाद में शरीर के कई अंग बरामद किए गए।
इसी महीने जुलाई की शुरुआत में एक आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनीषा खुराना कक्कड़ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के 212 गवाहों में से 134 की जांच की जा चुकी है और कई बाहरी गवाहों की जांच के लिए लगातार सुनवाई आवश्यक है।
गवाहों की जांच में सुनवाई हो रही
कोर्ट ने कहा कि आरोपी की यह प्रार्थना कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच के लिए एक महीने में सुनवाई की केवल दो तारीखें तय की जाएं, मुकदमे को लंबा खींचने और विलंबित करने का एक साधन मात्र प्रतीत होता है, क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाहों की संख्या अत्यधिक है और अभियोजन पक्ष के गवाहों, विशेष रूप से पुलिस गवाहों की लंबी गवाही दर्ज करने के लिए काफी समय की आवश्यकता है।
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद की दलीलों पर गौर करते हुए कि पुलिस गवाह कांस्टेबल दीपक की गवाही दर्ज करने में सात तारीखें लगीं। जज ने कहा कि सुनवाई के लिए हर महीने केवल दो तारीखें तय करने से मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और यह मुकदमे को लंबा खींच देगा।प्रसाद ने याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हर महीने केवल दो तारीखें तय करने से मुकदमे में काफी देरी होगी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।