कहीं गोरा रंग न पड़ जाए काला, शरीर पर लगाते हैं ये दो चीजें तो सावधान! दिल्ली के डॉक्टर्स के शोध ने चौंकाया
आपकी त्वचा का रंग काला हो सकता है अगर आप ये दो चीजें लगाते हैं। दिल्ली के डॉक्टर्स ने शोध में इसके बारे में पता लगाया है। यह प्रोडक्ट लगाने से एलर्जी हो सकती है और आपकी त्वचा का रंग काला पड़ सकता है। त्वचा का काला पड़ना एक तरह से बीमारी है जिस पर दवाई का असर ज्यादा नहीं पड़ता।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। बाल रंगने के लिए हेयर डाई और चेहरे की खूबसूरती के लिए क्रीम के अधिक इस्तेमाल से चेहरे की रंगत खराब भी पड़ सकती है। इसलिए चेहरे, माथे और गर्दन की त्वचा काली पड़ने लगे तो सतर्क हो जाएं। यह त्वचा पर विकसित झाइयां नहीं बल्कि हेयर डाई व क्रीम के इस्तेमाल के कारण हुई त्वचा की लाइलाज बीमारी पिगमेंटेड कांटेक्ट डरमेटाइटिस (पीसीडी) हो सकती है।
इसलिए इसे नजर अंदाज न करें। आरएमएल व लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
इलाज में दवा नहीं होती ज्यादा कारगर
यह अध्ययनकर्ता लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरभि सिन्हा ने बताया कि पीसीडी त्वचा की ऐसी बीमारी है, जिसके इलाज में दवा पूरी तरह असर नहीं करती। इस वजह से यह बीमारी ठीक नहीं होती। अक्सर लोग इसे झाइयां समझते हैं, लेकिन यह किसी चीज की एलर्जी के कारण होता है।
मरीजों की त्वचा पड़ गई काली
एलर्जी के कारणों का पता लगाने के लिए यह अध्ययन शुरू किया गया। इस दौरान पीसीडी के लक्षण से मिलते जुलते 104 मरीजों की पैच जांच की गई, जिसमें से 28 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई। इसमें से 12 मरीजों को हेयर डाई की एलर्जी और आठ मरीजों को पैराफेनिलनेडियमिन (पीपीडी) की एलर्जी के कारण त्वचा काली पड़ गई थी।
हेयर डाई और क्रीम का करते हैं इस्तेमाल
उन्होंने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर मरीज हर्बल हिना इस्तेमाल करने की बात बताते हैं। इसके अलावा मरीज आठ से दस वर्षों से हेयर डाई व क्रीम इत्यादि का इस्तेमाल करने की बात बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि हेयर डाई व क्रीम की एलर्जी त्वचा धीरे-धीरे काली पड़नी शुरू होती है।
इन उत्पादों में होते हैं ये रसायन
उन उत्पादों में पारा, निकल, थायोमर्सल, पीपीडी सहित कई ऐसे रसायन मिले होते हैं जो त्वचा के लिए नुकसानदायक होते हैं। अध्ययन में शामिल मरीजों को तीन वर्गों में बांट कर छह महीने तक अलग-अलग तीन दवाएं भी दी गई। इसके बाद उन्हें छह माह तक फऑलोअप किया गया।
ये भी पढ़ें- आकाश में छाए रहे बादल, वर्षा नहीं होने से बढ़ी उमस; जानें आनेवाले दिनों में कैसा रहेगा मौसम
इस दौरान अजैथियोप्रिन दवा का इस्तेमाल करने वाले मरीजों की बीमारी में 55 प्रतिशत सुधार पाया गया। अन्य दो दवाओं से करीब 30 प्रतिशत सुधार देखा गया।