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Delhi Politics : प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री नहीं होने से दिल्ली में कहीं खुशी तो कहीं गम

Delhi Politics कुछ महीने पहले प्रशांत किशोर के कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने की चर्चा जोरों पर थी लेकिन बात नहीं बनी। वहीं पीके के कांग्रेस नहीं ज्वाइन करने से कई नेता खुश हैं तो कुछ दुखी हैं। सबकी अपनी-अपनी वजह है।

By Jp YadavEdited By: Updated: Thu, 12 May 2022 02:09 PM (IST)
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Delhi Politics: प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री नहीं होने से दिल्ली में कहीं खुशी तो कहीं गम

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। भले ही अब कांग्रेस और प्रशांत किशोर उर्फ पीके (प्रशांत किशोर) के बीच किसी भी तरह के करार की संभावना खत्म हो गई हो, लेकिन दिल्ली इकाई के कांग्रेसियों में पीके का नाम फोबिया से कम नहीं रहा। हालांकि कुछ नेता खुश थे कि शायद पीके की रणनीति से पार्टी का ग्राफ फिर से ऊपर चला जाए। इन नेताओं को तब खासी निराशा भी हुई जब बात नहीं बनी।

दूसरी तरफ काफी नेता परेशान थे कि कहीं पार्टी ने पीके के साथ हाथ मिला लिया तो उनकी दुकान न बंद हो जाए। दरअसल, ये वे नेता हैं जो योग्य न होते हुए भी कुंडली मारकर बैठे हैं। योग्य नेता आगे नहीं पा रहे जबकि इनसे पार्टी संभाले नहीं संभल रही। गांधी परिवार को तो ये नेता जैसे तैसे गुमराह कर ही लेते हैं मगर पीके जैसे प्रोफेशनल से पार नहीं पा पाते, इसीलिए जब बात बिगड़ी तो सबसे ज्यादा खुशी इन्हें ही हुई।

एक धर्म से नाता जोड़ा, दूसरे से तोड़ा!

गफलत के दौर में प्रदेश कांग्रेस के निर्णय भी उलझे हुए ही महसूस होते हैं। आमतौर पर मुस्लिम समाज के साथ खड़ी रहने वाली पार्टी ने अबकी बार शायद अपनी छवि बदलने की कोशिश की। पहली बार ऐसा हुआ कि जब प्रदेश कार्यालय में हनुमान जयंती मनाई गई और बाकायदा भंडारा भी लगाया गया। लेकिन इससे भी हैरत तब हुई जब ईद बिना इफ्तार ही मन गई। कांग्रेस की इफ्तार पार्टी का इंतजार काफी लोगों को रहता है। सायह माजिक मेल मिलाप का भी जरिया होता है। लेकिन शायद अब पार्टी अपनी छवि को थोड़ा बदलना चाह रही है। दरअसल, कुछ दिन पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ प्रदेश अध्यक्ष्र एवं उपाध्यक्षों की एक बैठक में भी यह मुददा उठा था कि पार्टी को किसी एक वर्ग विशेष के साथ नहीं बल्कि सभी वर्गों के साथ खड़़ा होना चाहिए। शायद उसी का नतीजा है कि इस बार बदलाव दिखा।