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Tourist Place In Delhi: दिल्ली में बने लोटस टेंपल का रोचक है इतिहास, जानें- इससे जुड़ी 10 खास बातें

Tourist Place In Delhi लोटस टेंपल सर्दियों में आम नागरिकों के लिए सुबह 9.30 बजे खुलता है और शाम 5.30 बजे तक बंद हो जाता है। वहीं गर्मियों में यह सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। यहां कोई प्रवेश शुल्क नहीं है।

By Abhishek TiwariEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 03:03 PM (IST)
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Tourist Place In Delhi: दिल्ली में बने लोटस टेंपल का रोचक है इतिहास, जानें- इससे जुड़ी 10 खास बातें
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। राष्ट्रीय राजधानी के नेहरू प्‍लेस में स्थित लोटस मंदिर दिल्‍ली के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह एक बहाई उपासना मंदिर है, यहां पर न ही कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार की पूजा की जाती है। बता दें कि यहां पर लोग केवल शांति और सुकून की तलाश में आते हैं।

लोटस टेंपल का उद्घाटन 24 दिसंबर 1986 को हुआ था, लेकिन आम जनता के लिए मंदिर को 1 जनवरी, 1987 को खोला गया था। यहां कि वास्तुकला लोगों को अपनी ओर लुभाती है। लोटस टेंपल को ईरानी वास्तुकार फरीबोर्ज सहबा ने कमल के आकार में डिजाइन किया था।

इस मंदिर कई खूबियों में से एक खूबी यह भी है कि यहां पर्यटकों के लिए धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के लिए लाइब्रेरी और आडियो-विजुअल रूम बने हुए हैं। बहाई समुदाय के अनुसार, ईश्वर एक है और उसके रूप अनेक हो सकते हैं। वह मूर्ति पूजा को नहीं मानते हैं, लेकिन नाम कमल मंदिर है। फिर भी इसके अंदर अनुष्ठान करने की अनुमति नहीं है। वहीं, किसी भी धर्म-जाति के लोग कमल मंदिर में आ सकते हैं।

कैसे पहुंचे

लोटस टेंपल पहुंचने के लिए राजीव चौक से कालकाजी मेट्रो स्टेशन पर उतरकर ऑटो कर सकते हैं। इसके अलावा आप मेट्रो स्टेशन से पैदल भी यहां पहुंच सकते हैं।

समय- लोटस टेंपल सर्दियों में आम नागरिकों के लिए सुबह 9.30 बजे खुलता है और शाम 5.30 बजे तक बंद हो जाता है। वहीं, गर्मियों में यह सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। यहां कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। किसी भी जाति और धर्म के लोग इस मंदिर में जा सकते हैं।

लोटस टेंपल का इतिहास

लोटस टेंपल को बहाई समुदाय के लोगों ने बनवाया था। बता दें कि बहाई धर्म में मूर्ति पूजा की परंपरा नहीं है, इसलिए मंदिर के अंदर कोई मूर्ति मौजूद नहीं है। मंदिर के 40 मीटर के हॉल में करीब 2400 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। दिन में सफेद मोती की तरह चमकने वाला लोटस टेंपल रात को पानी में रंगबिरंगे सितारों के जैसा जगमगाता हुआ दिखाई देता है।

लोटस टेंपल से जुड़ी प्रमुख बातें

  • मंदिर का उद्घाटन 24 दिसंबर, 1986 को किया गया।
  • वहीं, आम जनता के लिए इसे 1 जनवरी 1987 को खोला गया।
  • कमल की आकृति होने के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से जाना जाता है।
  • मंदिर में किसी देवता की कोई मूर्ति या छवि नहीं है। इसके बावजूद इसे मंदिर के नाम से ही जाना जाता है।
  • बहाई धर्मग्रंथों के मुताबिक, लोटस टेंपल के अंदर मूर्तियों की कोई छवि या मूर्ति नहीं हो सकती है।
  • बहाई मंदिरों में व्यापक गोलाकार गुंबद मौजूद हैं और दिल्ली का लोटस टेम्पल दुनिया के खूबसूरत पूजा स्थलों में से एक है।
  • मंदिर परिसर इतना बड़ा है कि इसमें एक साथ 2000 से अधिक लोग बैठ सकते हैं।
  • इस मंदिर में चार कुंड हैं, जिनमें जल हमेशा बहता रहता है।
  • मंदिर 20 फीट की ऊंचाई पर है, यहां पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं।
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