सेंट स्टीफंस ने डीयू के सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटे को हाईकोर्ट में चुनौती दी
सेंट स्टीफंस कॉलेज ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। कॉलेज का तर्क है कि यह कोटा कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है। कॉलेज ने कहा कि उसे इस कोटे के तहत एक छात्रा को प्रवेश देने में कोई समस्या नहीं होगी लेकिन डीयू द्वारा 13 छात्राओं को आवंटित करना अनुचित है। अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और सेंट स्टीफंस कॉलेज के बीच दाखिला नीति के विवाद को लेकर कॉलेज ने हाई कोर्ट के समक्ष दलील दी कि डीयू द्वारा तय सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा के तहत किसी छात्र को दाखिला देना कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
कॉलेज के अधिवक्ता ने दलील दी कि छात्राओं के लिए कोटा, संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और 15(5) तथा 30 के विपरीत है व इस कोटे के तहत सीटों का आवंटन इन चारों अनुच्छेदों के विरुद्ध है। न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कॉलेज से पूछा क्या उसने पहले भी कहीं यह आपत्ति उठाई है या इस नीति को चुनौती दी है। मामले की अगली सुनवाई पांच सितंबर को होगी।
कॉलेज की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रोमी चाको ने कहा कि इस वर्ष वे इस बात पर सहमत हुए हैं कि वे केवल पांच प्रतिशत अतिरिक्त सीटें आवंटित करेंगे व प्रत्येक कार्यक्रम के लिए एक उम्मीदवार आवंटित करेंगे। लेकिन आज इस आधार को चुनौती देने के लिए मजबूर होना पड़ा चूंकि डीयू एक उम्मीदवार के बजाय 13 उम्मीदवारों को आवंटित कर रहा है।
कॉलेज ने बताया उसे कब नहीं होगी समस्या
कॉलेज ने कहा कि उसे कोई समस्या नहीं होगी अगर उसे इस कोटा के तहत एक छात्रा को प्रवेश देने के लिए कहा जाए। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा को लेकर कोई कानून नहीं है और यह केवल विश्वविद्यालय द्वारा लिया गया निर्णय है।
अधिवक्ता ने दलील दी कि मौलिक अधिकारों को कार्यकारी आदेश द्वारा नहीं छीना जा सकता। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थानों के खिलाफ कोटा थोपने की कोशिश कर रहा है।
वहीं, डीयू की ओर से पेश अधिवक्ता मोहिंदर रूपल ने तर्क दिया कि अगर बीए (प्रोग्राम) में 13 संयोजन हैं, तो 13 लड़कियों को प्रवेश देना होगा।अधिवक्ता ने तर्क दिया कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं कर सकता है। अधिवक्ता ने दलील दी कि अगर कॉलेज इस प्रविधान से व्यथित हैं तो उन्होंने प्रवेश के लिए विश्वविद्यालय की सूचना बुलेटिन को कभी चुनौती क्यों नहीं दी।
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