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Delhi Air Pollution: दिल्लीवासियों की सांसों पर संकट! फिर आफत बनने जा रहा पराली का धुआं

राजधानी में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है लेकिन कुछ जिले अभी भी नियंत्रण से बाहर हैं। 2020 से 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार पराली जलाने की घटनाओं में 50% से अधिक की कमी आई है। हालांकि पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिलों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं।

By sanjeev Gupta Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Mon, 30 Sep 2024 08:36 AM (IST)
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चार साल में 50 प्रतिशत तक घटी पराली, समस्या फिर भी बड़ी। फाइल फोटो
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। बेशक पराली का धुआं एक बार फिर दिल्ली वासियों के लिए आफत बनने जा रहा हो, लेकिन पिछले चार वर्षों के दौरान पराली जलाने की घटनाएं काफी कम हुई हैं। हां, इतना जरूर है कि हरियाणा एवं पंजाब के कुछ जिले इस संदर्भ में अभी भी नियंत्रण से बाहर हैं।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के मुताबिक वर्ष 2020 में पराली जलाने की कुल 87 हजार 632 घटनाएं दर्ज की गई थीं। इसकी तुलना में वर्ष 2023 में 39 हजार 186 घटनाएं रिकार्ड की गई। यानी पिछले चार सालों के दौरान पचास प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है। 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 27 प्रतिशत जबकि हरियाणा में 37 प्रतिशत तक की कमी आई थी।

वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी

सीएक्यूएम के मुताबिक वर्ष 2022 की तुलना में पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिले ऐसे भी रहे थे, जहां वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी थीं। इनमें पंजाब के अमृतसर, सास नगर और पठानकोट जिले जबकि हरियाणा के रोहतक, भिवानी, फरीदाबाद, झज्झर और पलवल का नाम शामिल है। इन आठों जिलों पर पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम इस बार भी चुनौती हो सकती है।

सीएक्यूएम सूत्रों के मुताबिक इसके चलते इन आठों जिलों पर इस बार विशेष निगरानी बरती जा रही है। यहां पर लोगों को जागरुक करने, पराली प्रबंधन के अन्य तरीके बताने के साथ-साथ बाध्यकारी कदम भी उठाने की तैयारी है।

15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच जलती सर्वाधिक पराली

यूं तो पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद ही कृषि अवशेष जलाने लगते हैं, लेकिन 15 सितंबर के बाद इसमें तेजी आने लगती है। हालांकि 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। इसी दौरान दीपावली का पर्व भी आता है और हवा की गति बहुत धीमी होती है। पराली और दीवाली का धुआं मिलकर प्रदूषण की स्थिति को खतरनाक बना देते हैं।

2020 से 2023 के दौरान पराली जलाने के आंकड़े

वर्ष 2020 87,632
वर्ष 2021 78,550
वर्ष 2022 53,792
वर्ष 2023 39,186
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