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Uphaar Cinema Fire Tragedy Case: अंसल बंधुओं को राहत, SC ने खारिज की पीड़ितों की क्यूरेटिव पिटीशन

Uphaar Cinema fire tragedy case उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुधारात्म याचिका को खारिज कर दिया है।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Thu, 20 Feb 2020 11:21 AM (IST)
Uphaar Cinema Fire Tragedy Case: अंसल बंधुओं को राहत, SC ने खारिज की पीड़ितों की क्यूरेटिव पिटीशन
नई दिल्ली, एएनआइ। Uphaar Cinema fire tragedy case: उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों की तरफ से दायर की गई क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एन वी रमना और अरुण मिश्रा की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने एसोसिएशन फॉर विक्टिम्स ऑफ उपहार ट्रेजडी (एवीयूटी) की याचिका पर विचार किया और इसे खारिज कर दिया। 

उपहार अग्निकांड पीड़ित एसोसिएशन ने अंसल बंधुओं को दी गई सजा को लेकर कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि अंसल बंधुओं को जो सजा दी गई थी वह काफी कम है।

59 लोगों की हुई थी मौत

13 जून 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेगा हॉल में बॉर्डर फिल्म लगी थी। उस दौरान अचानक हुए शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। इस अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि 100 से अधिक लोग झुलस गए थे। इस मामले में कोर्ट ने अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया था। 

उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में तीन सदस्यीय बेंच ने 9 फरवरी 2017 को 2:1 से फैसला सुनाया था। इस फैसले के तहत 78 साल के सुशील अंसल को उम्र संबंधी परेशानी को देखते हुए उतनी ही सजा सुनाई गई थी, जितनी वे जेल में काट चुके थे। सुशील के छोटे भाई गोपाल अंसल को बाकी के एक साल जेल में सजा पूरी करने का आदेश दिया गया था। 

यह है पूरा घटनाक्रम

22 जुलाई 1997 को दिल्ली पुलिस ने उपहार सिनेमा के मालिक सुशील अंसल और उनके बेटे को मुंबई से गिरफ्तार किया। 24 जुलाई 1997 को मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई। 15 नवंबर 1997 को सीबीआइ ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल समेत 16 आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की। 10 मार्च 1999 में सेशन कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हुआ। 27 फरवरी 2001 को कोर्ट ने सभी आरोपितों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या और लापरवाही समेत अन्य में आरोप तय किए।

20 नवंबर 2007 को कोर्ट ने सुशील अंसल और गोपाल अंसल समेत 12 आरोपितों को दोषी करार दिया। सभी को साल की कैद की सजा सुनाई गई। 19 दिसंबर 2008 को हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया। जबकि छह अन्य दोषियों की सजा को बरकरार रखा। 30 जनवरी 2009 को उपहार कांड के पीड़तों के संगठन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। और दोषियों की सजा को बढ़ाने की मांग की। 5 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा। 19 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं पर 30-30 लाख का जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया।

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