ट्रायल में देरी से लेकर निचली अदालतों को फटकार तक... सिसोदिया को जमानत देने वाले फैसले में क्या-क्या
Delhi Excise Policy scam Case में ईडी और सीबीआई द्वारा आरोपी बनाए गए पूर्व उपमुख्यमंत्री Manish Sisodia को 9 अगस्त को देश की सर्वोच्च अदालत ने यह कहते हुए जमानत दे दी कि सिसोदिया को तेजी से ट्रायल करने के अधिकार से वंचित किया गया और तेजी से ट्रायल का अधिकार महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक बार फिर निचली अदालतों को उनका असली काम याद दिलाया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 26 फरवरी 2023 से जेल में बंद दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम Manish Sisodia को आज (9 अगस्त) सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। अदालत ने सिसोदिया को जमानत देने का मुख्य आधार ट्रायल शुरू होने में देरी को बनाया है।
अदालत ने अपने आदेश में लिखा है, 'हमने पाया है कि जेल में रहते हुए सिसोदिया को लगभग 17 महीने हो गए हैं और अभी तक ट्रायल शुरू भी नहीं हुआ है। याचिकाकर्ता तेजी से ट्रायल के अधिकार से वंचित हुआ है।'
सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने के मामले में हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के सेफ रुख पर सवाल उठाते हुए कई अहम टिप्पणियां की है। इस खबर में पढ़ें कोर्ट की सभी बड़ी बातें जो सिसोदिया को जमानत देते हुए दोनों जजों ने कहीं...
अदालत की बड़ी टिप्पणियां
- कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया को तेजी से ट्रायल करने के अधिकार से वंचित किया गया और तेजी से ट्रायल का अधिकार महत्वपूर्ण है।
- हाईकोर्ट के आदेश को रद करते हुए शीर्षकोर्ट ने यह भी कहा कि अदालतों को ये महसूस करना होगा कि जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद।
- अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि निकट भविष्य में ट्रायल पूरी होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है क्योंकि 495 गवाहों और हजारों दस्तावेज जो लाखों पन्नों में हैं उन्हें देखा जाना है।
- अदालत ने आगे कहा, सिसोदिया को अनिश्चित काल के लिए ये सोचकर जेल में रखना कि तेजी ट्रायल होगा आर्टिकल 21 का उल्लंघन है, जो निजी स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है।
- अदालत ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि याचिकाकर्ता की समाज में जड़ें बहुत गहरी हैं और इसलिए उनके बाहर भागने की कोई संभावना नहीं है।
- इसके साथ ही सभी सबूत डॉक्यूमेंट में हैं जिन्हें पहले ही कलेक्ट कर लिया गया है, ऐसे में उनके साथ छेड़छाड़ करना संभव नहीं है। और रही बात गवाहों को प्रभावित करने की तो उसमें शर्तें लगाई जा सकती हैं।
- अदालत द्वारा सिसोदिया को जमानत देने के बाद एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने अनुरोध किया कि सिसोदिया पर भी वो शर्तें लगाई जाएं जो केजरीवाल पर लगी हैं। यानी वह मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते। हालांकि बेंच ने उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
- अदालत ने अपने आदेश में ये जरूर कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने केस के मेरिट के आधार पर फैसला देने में कोई गलती नहीं की है। लेकिन ये कहा कि अदालतों ने ट्रायल में देरी के तथ्य को दरकिनार कर दिया।
- अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2023 के ऑब्जर्वेशन की अनदेखी नहीं करनी चाहिए थी। जिसमें कहा गया था कि लंबे समय तक जेल में रहना और ट्रायल में देरी को सीआरपीसी एक्ट के सेक्शन 439 और पीएमएलए एक्ट की धारा 45 की तरह मानना चाहिए।
- देरी के लिए सिसोदिया जिम्मेदार नहीं हो सकते- जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने 6 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए ट्रायल और हाईकोर्ट की उस टिप्पणी से अस्वीकृति जताई जिसमें सिसोदिया को ट्रायल में देरी की वजह माना गया था। अदालत ने कहा कि अनरिलायड डॉक्यूमेंट मांगना उनका अधिकार है ताकि ट्रायल निष्पक्ष रूप से हो सके।
- अदालत ने अपने फैसले में ये भी कहा कि दोनों एजेंसी अपनी बातों में विरोधाभासी हैं। अदालत ने कहा कि आप एक तरफ तो कहते हैं कि जल्द ट्रायल शुरू हो जाएगा और चार जून को एक महीने का समय मांगते हैं सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने के लिए।
- अगर जुलाई तक चार्जशीट ही नहीं जमा हुआ तो ट्रायल कैसे खत्म हो सकता है। इस मामले में अदालत ने बीते अक्टूबर में एजेंसियों द्वारा दिए गए उस बयान को भी याद दिलाया कि 6-8 महीने में ट्रायल पूरा हो जाएगा।