Delhi Violence Case: भड़काऊ बयान मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट शुक्रवार को करे सुनवाई : SC
Delhi Violence Case दिल्ली हिंसा में नेताओं समेत अन्य लोगों के खिलाफ तत्काल मामला दर्ज करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हो रही है।
By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 04 Mar 2020 01:25 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। दिल्ली हिंसा मामले में नेताओं समेत अन्य लोगों के खिलाफ तत्काल मामला दर्ज करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई करे। इससे पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हर्ष मंदर की याचिका पर सुनवाई से मना कर दिया। इसी के साथ कोर्ट ने हर्ष मंदर की मंशा पर भी टिप्पणी की।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) अपना पक्ष रखते हुए इस बात का जिक्र किया कि हर्ष मंदर एक वीडियो में यह कहते हुए देखे गए हैं कि असली न्याय पाने के लिए सड़क पर उतरना होगा। 10 पीड़ितों के समूह ने दायर की है याचिका
यहां पर बता दें कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24-25 फरवरी को हुई हिंसा में 10 पीड़ितों के एक समूह की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कथित रूप से इन नेताओं के भड़काऊ भाषणों और बयानों की वजह से उत्तर पूर्वी दिल्ली के आधा दर्जन इलाकों में प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया।
वहीं, सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका कर्ताओं से कहा था कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोगों को मरना चाहिए। इस तरह के दबाव से निपटने में हम सक्षम नहीं हैं। हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते हैं।
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की पीठ में हिंसा प्रभावितों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा था कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 6 हफ्ते के लिए स्थगित कर दी है, जबकि रोजाना लोग मर रहे हैं। ऐसे में यह बहुत अहम मसला है।
यह बातें भी कही थीं कोर्ट ने
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोगों को मरना चाहिए। इस तरह के दबाव से निपटने में हम सक्षम नहीं हैं। हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते।
- हम खुद पर एक तरह का दबाव महसूस करते हैं। हम हालात से तभी निपट सकते हैं जब वह घटित हो जाए।
- हम पर जिस तरह का दबाव है, उससे हम नहीं निपट सकते.. यह ऐसा है कि जैसे अदालत जिम्मेदार है।
- हम अखबारों को पढ़ते हैं, हमें पता है कि किस तरह के बयान दिए गए हैं। अदालत तभी परिदृश्य में आती है, जब चीजें घटित हो चुकी हों और अदालतें ऐसी चीज को रोक नहीं पातीं। हम शांति की कामना करते हैं।