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पहाड़ चढ़ती गंदगी: गीला हो रहा पैसा, सूख रहे नियम; दिल्ली में बढ़ रहे कूड़े के पहाड़ पर खास रिपोर्ट

स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल पूरे होने के बाद भी दिल्ली-एनसीआर में कूड़े के पहाड़ खत्म नहीं हो पाए हैं। कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने के लिए शुरू किए गए प्रयास भी कमजोर पड़ गए हैं। जिन कूड़े के पहाड़ों को तीन वर्ष में खत्म कर दिया जाना था वो अब भी मौजूद हैं। लोग आज भी घर में गीला-सूखा कूड़ा अलग करने की आदत नहीं बना पाए।

By Jagran News Edited By: Kapil Kumar Updated: Fri, 04 Oct 2024 03:51 PM (IST)
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स्वच्छ भारत मिशन को 10 वर्ष हो गए हैं। फाइल फोटो

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। स्वच्छत भारत मिशन का एक बड़ा लक्ष्य कूड़े के पहाड़ों को खत्म करना था, लेकिन इसे दस साल बीतने के बाद भी दिल्ली समेत एनसीआर में कूड़े का एक भी पहाड़ खत्म नहीं हो पाया है। स्थिति यह है कि कूड़े के पहाड़ खत्म करने के लिए जो प्रयास शुरू भी हुए थे, वो भी वर्तमान समय में कमजोर पड़ गए हैं। जिन कूड़े के पहाड़ों को तीन वर्ष में पूरी तरह खत्म कर दिया जाना था, वो अब भी अपने स्थान पर खड़े हैं और स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ा रहे हैं।

स्वच्छ भारत मिशन को 10 वर्ष हो गए हैं। एक दशक की परिपक्वता हमारे स्वच्छता संस्कारों में झलकनी चाहिए थी, लेकिन सबसे दुखद पहलू ये है, आज भी हम घर में गीला-सूखा कूड़ा अलग करने की आदत नहीं बना सके। प्लास्टिक से लेकर पेपर, रसोई का कचरा एक ही पालीथिन पैक किया और कूड़े की गाड़ी तक पहुंचा दिया या घर की बालकनी से ही घुमाकर खाली प्लाट में फेंक दिया। सब जानते हैं ये संकट हम अपने लिए और भावी पीढ़ी के लिए ही खड़ा कर रहे हैं बावजूद इसके सब ऐसा करते हैं।

आज भी शहरी-ग्रामीण सभी क्षेत्रों में कोई विरले ही ऐसे परिवार मिल पाते हैं जो कूड़े को घर से ही अलग करने का उपक्रम कर रहे हों। इन आदतों के कारण ही कूड़े के पहाड़ों का भी जन्म हुआ, जिन्हें अब अलग-अलग शहरों में 300 करोड़, 150 करोड़ से अधिक खर्च कर खत्म किया जा रहा है। सोचिए कितना पैसा कूड़ा हो रहा है। इससे एक शहर की आर्थिकी कितनी सशक्त-स्वस्थ हो सकती थी। अभी तो जितना कूड़ा वहां से मशीनों से उठ भी रहा है उतना ही पहुंच भी रहा है। आखिर कूड़े के इस संकट का कैसे हो निदान? लोग कैसे समझें अपनी जिम्मेदारी? एनसीआर के इन कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने में कहां हैं बाधाएं? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है।

-क्या दिल्ली समेत एनसीआर में कूड़े के पहाड़ न हट पाने के पीछे आप राजनीतिक खींचतान को जिम्मेदार मानते हैं?

हां : 94

नहीं : 6

-क्या दिल्ली समेत एनसीआर से कूड़े के पहाड़ खत्म न होने के लिए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए?

हां : 97

नहीं : 3

पहाड़ चढ़ती गंदगी

-60% सूखा अपशिष्ट (कागज़, पैकेजिंग, प्लास्टिक, बोतलें आदि)

-40% गीला अपशिष्ट (रसोई अपशिष्ट, बागवानी अपशिष्ट आदि)

-जिले में बने कूड़े के पहाड़ों की अधिकतम ऊंचाई कितनी थी, इन्हें खत्म करने की क्या समयसीमा तय की गई थी, इसे अब तक कितना कम किया जा सका है, कितने प्रतिशत कूड़ा हटाया जा चुका है और कितने प्रतिशत शेष है

लैंडफिल साइटों की ऊंचाई

-लैंडफिल साइट : ऊंचाई : पहले तय की गई समय-सीमा :

-ओखला-62 मीटर- मार्च 2023

-गाजीपुर-65 मीटर-सितंबर 2024

-भलस्वा -65 मीटर-जून 2022

-लैंडफिल साइट : 2019 में कितना कूड़ा था : अब तक कितना निस्तारण हुआ : अब कितना बचा : समय-सीमा

-भलस्वा : 80 : 71.17 : 47.66 :

-गाजीपुर : 140 : 27 : 82.60 :

-ओखला : 60 : 48.72 : 29.61 :

-कुल : 280 : 146.89 : 159.87 (मीट्रिक टन में)

-नोट : दिसंबर 2028 तक खत्म करना है कूड़ा।

-एजेंसियों के प्रयास

-2019 में ट्रामल मशीनों से कूड़ा निस्तारण शुरू किया।

-30-30 लाख टन कूड़ा निस्तारण का कार्य शुरुआत में निजी एजेंसियों को दिया।

-350 करोड़ रुपये कूड़े के पहाड़ खत्म करने पर हो चुके हैं खर्च।

-11300 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन दिल्ली में निकलता है।

-300-500 टन प्रतिवर्ष कूड़ा उत्पन्न होने की मात्रा बढ़ रही है।

-प्रतिदिन कहां कितना कूड़ा पहुंचता है :

-2000 मीट्रिक टन गाजीपुर

-2000 मीट्रिक टन भलस्वा

-कूड़ा रिसाइकिल की व्यवस्था

-260 टन कूड़ा प्रतिदिन अलग-अलग मटेरियल रिकवरी सेंटर (एमआरएफ) की मदद से हो रहा रिसाइकिल।

-1260 टन से बनती है खाद

-6200 टन बिजली बनाने में हो रहा है प्रयोग

गुरुग्राम:-

-वर्ष 2022 में बंधवाड़ी में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई : 72 मीटर

-वर्तमान में : 1200 मीट्रिक टन

-2019 में: 800 मीट्रिक टन

-लक्ष्य : 31 दिसंबर 2024 तक बंधवाड़ी लैंडफिल से कूड़ा खत्म करने का लक्ष्य

-खत्म किया गया : 30.43 लाख मीट्रिक टन

-शेष : 9.59 लाख मीट्रिक टन

-68.5% कूड़ा खत्म हो गया 31.5% बाकी है।

-प्रयास :

6 प्राइवेट एजेंसियों ने वर्ष 2023 में कूड़ा निस्तारण का कार्य शुरू किया था।

-4 मै मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी सेंटर (एमआरएफ) बनाए गए हैं।

-31 दिसंबर 2024 तक कूड़ा निस्तारण की क्षमता 415 टन प्रतिदिन किया जाना है।

-गुरुग्राम में वर्ष 2013 से दिसंबर 2023 तक बंद था कूड़े का निस्तारण।

-कूड़ा निस्तारण

-7000 टन कूड़ा प्रतिदिन होता है निस्तारित

-254 टन कूड़ा चार मेटेरियल रिकवरी सेंटर (एमआरएफ) पर प्रतिदिन हो रहा निस्तारित।

-खर्च

1000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं एक दशक में कूड़ा खत्म करने के लिए।

-संकट

-लैंडफिल से लीचेट वन क्षेत्र में बहने से अरावली प्रदूषित हो रही है।

फरीदाबाद :

-वर्ष 2017 में दिसंबर से कूड़ा निस्तारण का काम फरीदाबाद नगर निगम ने शुरू किया

-वर्ष 2019 तक इको ग्रीन को बंधवाड़ी में लगाना था पावर प्लांट

-31 दिसंबर 2024 तक इस कूड़े को पूरी तरह खत्म किया जाना है।

-वर्तमान में : 1200 मीटिक टन

-2019 में: 800 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता था।

-200 टन कूड़ा प्रतापगढ़ में निस्तारित हो रहा है इसे 150 करोड़ की लागत से तैयार किया गया था।

-150 टन कूड़ा मुजेड़ी में निस्तारित हो रहा है इसे 100 करोड़ की लागत से तैयार किया गया था।

-600 टन कूड़ा निस्तारण के लिए मोठूका में चारकोल प्लांट की चल रही तैयारी।

-बंधवाड़ी के आसपास फरीदाबाद के गांवों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 250 से अधिक होता है। -लैंडफिल से निकलने वाले लिचेट से भूजल दूषित हो रहा है।

बंधवाड़ी के आसपास : एक्यूआइ : 250

-गाजियाबाद:

निस्तारण से ज्यादा प्रतिदिन कूड़ा निकलता है

-60 फीट ऊंचा कूड़े का पहाड़ है मकरेड़ा गांव में

-30% कूड़े का निस्तारण हो पाता है।

-1200 मीट्रिक टन कूड़ा लैंडफिल पर पहुंचता है।

-450 मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण हो रहा, पूरे जिले में सिर्फ एक प्लांट लगा हुआ है।

-100 वार्ड में केवल एक वार्ड में ही अलग होता है गीला, सूखा कूड़ा।

-वर्तमान में : 1500 मीट्रिक टन

-2019 में : 1100 मीट्रिक टन

-गौतमबुद्ध नगर :

-300 टन कूड़ा निकलता है प्रतिदिन

-35 मीट्रिक टन का होता है निस्तारण।

-70% कूड़ा बायोरिमेडिक्स से निस्तारित किया जा चुका है। अगले पांच महीने में शेष कूड़ा निस्तारित कर दिया जाएगा।

-30% ही कूड़ा जिले में अलग अलग किया जाता है।

- 10 करोड़ खर्च हो चुके हैं, कूड़े के पहाड़ों खत्म करने में अब तक।

-कूड़ा निकलता है :

-वर्तमान में : 7 लाख मीट्रिक टन

-2019 में : 2.5 लाख मीट्रिक टन

निगम और नागरिक दोनों की भागीदारी जरूरी

दिल्ली की तीन लैंडफिल साइट ओखला, गाजीपुर और भलस्वा, इन्हें खत्म करने के लिए वर्ष 2019 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रयास शुरू हुए। इसके लिए लैंड़फिल साइटों पर मशीनों के माध्यम से लोहा, प्लास्टिक और पालीथिन और मलबा को अलग-अलग किया जाता है। बाकि जो शेष पदार्थ बचता है हम उसे इनर्ट कहते हैं। वह एक तरह से मिट्टी है जो गीला कूड़ा लैंडफिल पर सूखे कचरे के साथ गया। समय के साथ वह कचरा मिट्टी में बदल गया। यानी यह वही कार्य है जो नागरिकों को पहले अपने घर पर कर लेना चाहिए था लेकिन, शहर के नागरिकों ने नहीं किया तो अब लैंडफिल पर मशीनों द्वारा करना पड़ रहा है।

जिस वजह से समय और श्रम दोनों ही बर्बाद हो रहे हैं। दिल्ली के स्थानीय निकाय की जिम्मेदारी है कि वह इन लैंडफिल साइटों को खत्म करें। एक तरीका है कि जो कचरा इन लैंडफिल साइटों पर पड़ा है उसे खत्म किया जाए दूसरा उसका तरीका है कि हम नया कचरा ही लैंडफिल पर नहीं जाने दें। पुराने कचरे को लैंडफिल से निस्तारण करने का काम निगम कर रहा है जबकि नया कचरा लैंडफिल पर न जाए इसका काम नागरिकों करना ही होगा। हां, यह सही है कि जिस लैंडफिल साइट को पहले 2023 और 2024 में खत्म होना था अब उसकी समय-सीमा निगम ने दिसंबर 2028 कर दी है। इसके लिए निगम का राजनीतिक नेतृत्व और अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार है। क्योंकि हमने इस तरह से तैयारी नहीं कि ताकि समय रहते कार्य हो सके।

इसमें निगम की परेशानी यह है कि लैंडफिल साइट पर पड़े पुराने कचरे के निस्तारण के नए टेंडर का आवंटन निगम की स्थायी समिति के गठन न होने की वजह से नहीं हो पा रहा। करीब डेढ़ साल से ज्यादा समय से यह दिक्कत निगम के सामने है। क्योंकि पांच करोड़ से अधिक की राशि के टेंडर को मंजूर करने की शक्ति निगम की सर्वोच्च समिति स्थायी समिति के पास है। अब जब गठन होगा तब उस पर बात होगी लेकिन जब तक नहीं हो रहा तो बतौर दिल्ली के सजग नागरिक और एक जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी क्या है?हमे इस बारे में भी तो सोचना होगा। हमारी जिम्मेदारी है कि लैंडफिल पर कूड़ा न जाए। दिल्ली में प्रतदिन 11,300 टन कूड़ा उत्पन्न होता है। इसमें करीब चार हजार टन कूड़ा अब भी लैंडफिल पर जा रहा है। जिसकी जिम्मेदारी नागरिकों की थी कि वह न जाने दें।

नागरिक कैसे न जाने दें इसके लिए ठोस कूड़ा निस्तारण उप नियम 2016 में बताया गया है। जिसमें जिस स्रोत पर कूड़ा उत्पन्न हो रहा है उसी स्रोत पर कूड़े का निस्तारण करना है। 2017 से यह उप नियम प्रभावी है। अगर, नागरिक घर से ही गीला-सूखा कचरा अलग कर लें तो बहुत बड़ी परेशानी टाली जा सकती है। दिक्कत यह है कि लोग अपने घर से तो इस काम को करना नहीं चाहते है और फिर कहते हैं कि शहर में गंदगी है। शहर में गंदगी न हो इसके लिए भी घर से निकलने वाले कचरे का अलग-अलग करना जरूरी है। इससे न तो लैंडफिल पर कूड़ा जाएगा। साथ ही कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने में भी समस्या नहीं होगी। राजधानी में कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने से लेकर शहर को साफ रखने के लिए जरूरी है कि हम सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करें और घर से सब्जी या माल से खरीददारी करने के लिए घर से ही थैला लेकर जाए।

कूड़ा ढोने पर नहीं, निस्तारण करने पर मिले भुगतान

औद्योगिक नगरी से निकलने वाले कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के लिए शहरी स्थानीय निकाय के बायलाज में बदलाव करना होगा। बायलाज के अनुसार अभी निगम कूड़ा ढोने का भुगतान एजेंसी को किया जा रहा है। नियमानुसार कूड़ा उठान का नहीं उसका निस्तारण करने के बाद भुगतान किया जाना चाहिए। एजेंसी से अनुबंध करते समय निस्तारण के नियमों को जरूर शामिल किया जाए, 2017 में इको ग्रीन से प्रदेश सरकार ने जो अनुबंध किया था, उसमें निस्तारण की शर्तें भी शामिल की गई थीं। अनुबंध के अनुसार इको ग्रीन को बंधवाड़ी में पावर प्लांट लगाया था, लेकिन नगर निगम अधिकारी नियमों का पालन कराने में असफल रहे। जिसकी वजह से समस्या बढ़ती चली गई और अब अनुबंध रद करना पड़ा।

अगर हम समाधान की बात करें तो कूड़े का निस्तारण एजेंसी या निगम प्रतिदिन कालोनी या सेक्टर के स्तर पर करे। पूरे शहर का कूड़ा एक जगह एकत्र न किया जाए। कूड़े में भ्रष्टाचार के खेल को इस तरह से समझा जा सकता है कि कूड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। 2019 में प्रतिदिन 800 टन कूड़ा निकलता था, वह अब 1200 टन पहुंच चुका है। ऐसा ही हाल कमोबेश दिल्ली और एनसीआर के सभी शहरों का है। जितना अधिक कूड़ा गुरुग्राम के बंधवाड़ी पहुंचता रहा, उतना ही अधिक एजेंसियों को निगम की ओर से भुगतान किया जाता रहा। इस भुगतान में से कमीशन निगम के अधिकारियों के पास भी पहुंचता है।

कूड़ा निस्तारण से अधिक एजेंसियों का ध्यान ट्रांसपोर्टेशन पर होता है, क्योंकि निगम उनको छह रुपये किलो के हिसाब से भुगतान करता है। ऐसे में कैसे संभव है कि कोई भी कूड़ा उठान एजेंसी निस्तारण को लेकर अपना ध्यान लगाएगी। घरों से निकलने वाले कूड़े को तीन से चार डंपिंग स्टेशन में ले जाकर डाला जाता है। फिर वहां से गीला और सूखा कचरे को मिक्स कर दिया जाता है। हैरानी की बात है कि नगर निगम के पास आधुनिक युग में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करने की कोई तकनीक नहीं है।

फरीदाबाद और गुरुग्राम में कूड़ा उठान को लेकर इस समय 400 ट्रक संचालित हैं। इन सभी ट्रकों का वजन बंधवाड़ी में किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया ही पहली नजर में गलत है। इस वजह से न कूड़े के पहाड़ खत्म हो रहे हैं और न ही बंधवाड़ी को कूड़े से मुक्ति मिलने वाली है। हमें सिंगापुर, पुर्तगाल और हांगकांग से कूड़ा निस्तारण की विधि सीखनी चाहिए। सिंगापुर में सुबह घर से निकलने वाला कचरा शाम तक शून्य हो जाता है। वहां पर कालोनी और सेक्टर के स्तर पर कूड़ा एकत्र किया जाता है। फिर गीले कचरे को रोबोटिक प्रक्रिया से खाद में बदल दिया जाता है, जबकि सूखे कचरे से उच्च तापमान पर सेग्रीगेशन करके बिजली बना दी जाती है। यह बिजली लोगों के प्रयोग के काम ही आती है। इसलिए वहां पर बिजली संकट भी नहीं होता है। यदि दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ यहां भी इस काम को करना चाहें तो यह प्रक्रिया संभव है। -जितेंद्र भड़ाना, संस्थापक सेव अरावली

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