सफेद दाग से पीड़ित दस प्रतिशत मरीज गंभीर दुष्प्रभाव के साथ पहुंचते हैं एम्स, समाज में करना पड़ता है भेदभाव का सामना
एम्स के त्वचा रोग विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. कनिका साहनी ने कहा कि यह ऑटोइम्यून की बीमारी है। शरीर का मेलानोसाइट्स प्रभावित होने से मेलेनिन नहीं बन पाने से त्वचा सफेद हो जाती है। इस बीमारी को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं। यह छूत की बीमारी नहीं है। इस बीमारी का इलाज भी संभव है लेकिन उसका असर धीरे-धीरे होता है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सफेद दाग की बीमारी (विटिलिगो) की बीमारी से पीड़ित लोग झोलाछाप के चक्कर में पड़कर अपनी त्वचा ज्यादा खराब कर लते हैं। एम्स के विटिलिगो क्लीनिक में इस बीमारी के इलाज के लिए पहुंचने वालों में करीब दस प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जो एम्स में तब पहुंचते हैं जब गलत दवाओं के इस्तेमाल के कारण हुए गंभीर दुष्प्रभाव से त्वचा ज्यादा खराब हो चुकी होती हैं। यह जानकारी विटिलिगो फाउंडेशन ऑफ इंडिया आयोजित एक कांफ्रेंस में एम्स के डॉक्टर ने दी।
एम्स के त्वचा रोग विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. कनिका साहनी ने कहा कि यह ऑटोइम्यून की बीमारी है। शरीर का मेलानोसाइट्स प्रभावित होने से मेलेनिन नहीं बन पाने से त्वचा सफेद हो जाती है। इस बीमारी को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं। यह छूत की बीमारी नहीं है। इस बीमारी का इलाज भी संभव है लेकिन उसका असर धीरे-धीरे होता है। कई लोग नीम-हकीम या झोलाछाप के पास जाकर इलाज कराते हैं। बाद में गलत दवा के कारण गंभीर समस्या के साथ इलाज के लिए एम्स पहुंचते हैं।
पांच लाख रुपये खर्च करने के बाद पहुंचते हैं मरीज
इस बीमारी के इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध है। इसके अलावा सर्जरी, लेजर सर्जरी व फोटो थेरेपी से भी इलाज किया जाता है। शुरुआती दौर में दवा से बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। बाद में सर्जरी, लेजर सर्जरी या इलाज के अन्य विकल्प से त्वचा के रंग में सुधार किया जाता है। एम्स में ऐसे कई मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं जो पहले बाहर एक लाख से पांच लाख रुपये खर्च कर चुके होते हैं। इसलिए विटिलिगो के मरीजों को त्वचा रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए।इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साथ होता है भेदभाव
विटिलिगो फाउंडेशन आफ इंडिया की महासचिव डॉ. मधुलिका म्हात्रे ने कहा कि भ्रांतियों के कारण इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साथ समाज में भेदभाव होता है। इस बीमारी का खानपान से भी को कोई संबंध नहीं पाया गया है। इस बीमारी के इलाज के लिए नई-नई दवाएं आ रही हैं। इस बीमारी को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना चाहिए। ताकि लोग बेहतर इलाज करा सकें।
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