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Climate Change से GDP पर पड़ रहा प्रतिकूल असर, विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है खामियाजा; नई रिपोर्ट में खुलासा

डेलावेयर यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही ग्लोबल स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) के नुकसान का कारण है और इसके प्रभावों का सबसे अधिक खामियाजा विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते कम आय वाले ट्रॉपिकल विकासशील देश जीडीपी में नुकसान का सामना कर रहे हैं। जबकि कई अमीर देशों पर कम असर पड़ रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Sonu SumanUpdated: Thu, 30 Nov 2023 07:17 PM (IST)
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डेलावेयर यूनिवर्सिटी की जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट प्रकाशित।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। COP-28 से पहले नए लॉस एंड डैमेज फंड की संभावना के मद्देनजर डेलावेयर विश्वविद्यालय के क्लाइमेट हब ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट का शीर्षक है- 'लॉस एंड डैमेज टुडे: जलवायु परिवर्तन कैसे उत्पादन और पूंजी को प्रभावित कर रहा है।' यह रिपोर्ट सभी देशों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले आर्थिक नुकसान का जायजा लेती है।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदुः

  • जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा $29 ट्रिलियन  डॉलर का नुकसान सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को
  • अफ्रीकी देशों ने 2022 में सकल घरेलू उत्पाद में जनसंख्या के हिसाब से औसत 8.1% की हानि का अनुभव किया है। यह अफ्रीका के लिए 240 बिलियन डॉलर  है ।
  • जलवायु परिवर्तन से यूरोपीय देशों की जीडीपी में 4.7% की औसत वृद्धि और विकसित देशों को जीडीपी में 8.3% की हानि की संभावना है।
  • 2022 में जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या-आधारित ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 6.3% है।
  • ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 1.8% यानी लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर है।
  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण $2.1 ट्रिलियन कैपिटल लॉस का अनुभव किया है।
  • ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी )देशों के लिए जलवायु परिवर्तन का नेट प्रभाव बहुत कम रहा है। इन देशों में सामूहिक रूप से लगभग $636 बिलियन का नेट लाभ देखा जा सकता है।
  • दुनिया ने अनुमानित तौर से 1818 बिलियन डॉलर के नेट जीडीपी लॉस का अनुभव किया है और ग्लोबल साउथ के देशों ने जनसंख्या के हिसाब से औसत जीडीपी में 8.3% की हानि का अनुभव किया है।
  • सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) के लिए औसत हानि जीडीपी का  8.3% है। 2022 में, यह एलडीसी के लिए 110 बिलियन डॉलर के कुल जीडीपी लॉस का प्रतिनिधित्व करता है।
  • छोटे द्वीप देशों के गठबंधन (एओएसआईएस) के तहत छोटे द्वीप विकासशील देशों (एसआईडीएस) को औसतन 4.3% या $ 70 बिलियन का नुकसान हुआ है। ये अनुमान एसआईडीएस के लिए वास्तविक नुकसान को संभवतः कम आंकते हैं, क्योंकि ये समुद्र-स्तर में वृद्धि के प्रभावों का पूरी तरह से हिसाब नहीं रखते हैं।
  • क्लाइमेट वल्नरेबल फोरम (सीवीएफ) एक जरूरी हितधारक है, जिसके सकल घरेलू उत्पाद का 2022 में औसतन 9.9% का अनुमानित नुकसान होगा और जिसके कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2022 में अनुमानित नुकसान $190 बिलियन होगा।
  • मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में 2022 में कुल 2090 बिलियन डॉलर का और भी भरी मैन्युफैक्चर्ड कैपिटल लॉस हुआ है।
  • जब जीडीपी और कैपिटल घाटे को जोड़ दिया जाता है, तो निम्न और मध्यम आय वाले देशों को 1992 (रियो कन्वेंशन) के बाद से कुल 21 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।

जलवायु परिवर्तन से जीडीपी पर पड़ रहा असर

रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही ग्लोबल स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) के नुकसान का कारण है और इसके प्रभावों का सबसे अधिक खामियाजा विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते कम आय वाले ट्रॉपिकल विकासशील देश जीडीपी में नुकसान का सामना कर रहे हैं। जबकि कई अमीर देशों पर जलवायु परिवर्तन का बहुत कम असर या फायदा दिखाई दे रहा है।

विश्व स्तर पर, 2022 में जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या-आधारित जीडीपी का नुकसान 6.3% है। इसमें जलवायु से संबंधित प्रत्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय और पूंजीगत हानियां शामिल हैं। हालांकि ग्लोबल जीडीपी का नुकसान 1.8% यानी लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर है। कुल मिलाकर दुनिया जलवायु परिवर्तन की वजह से 1.5 ट्रिलियन डॉलर गरीब हो गयी है।

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अमीर देश कम प्रभावित हुए

जहां कई अमीर देश इससे कम प्रभावित हुए हैं। उन्हें ग्लोबल वार्मिंग के चलते ठंड-बर्फबारी  से बचने के लिए हीटिंग के ऊपर होने वाले खर्च नहीं करने से जलवायु परिवर्तन से नुकसान की जगह लाभ हो रहा है। कई उच्च आय वाले देशों को इससे वर्तमान में नेट गेन यानी शुद्ध लाभ हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से यूरोपीय देशों के  जीडीपी में 4.7% की औसत वृद्धि हुई  है।

दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी अफ्रीका सर्वाधिक प्रभावित

वहीं सबसे कम विकसित देशों को औसत जनसंख्या के अनुसार जीडीपी में 8.3% की हानि का सामना करना पड़ रहा है। वहीं दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी अफ्रीका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जहां देशों को क्रमशः अपने जीडीपी का औसतन क्रमश: 14.1% और 11.2% का नुकसान हो रहा  है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन मौजूदा वैश्विक असमानताओं को भी बढ़ा रहा है। ये नुकसान विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले असंगत बोझ को चिह्नित करते हैं।

जलवायु परिवर्तन का बोझ गरीब देशों परः डॉ. जेम्स राइजिंग

रिपोर्ट के लेखक डॉ. जेम्स राइजिंग (डेलावेयर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर) के अनुसार, "जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया खरबों डॉलर गरीब हो गई है और इसका अधिकांश बोझ गरीब देशों पर पड़ा है। मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी उन चुनौतियों को स्पष्ट करती है जिनका कई देश पहले से ही सामना कर रहे हैं और उन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए उनकी तत्काल सहायता की आवश्यकता को भी।"

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की जरूरत

जैसा कि COP27 में फैसला लिया गया था कि COP28 में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के लिए कमजोर देशों को मुआवजा देने के लिए नए लॉस एंड डैमेज फंड पर प्रगति की उम्मीद है। रिपोर्ट जरूरी यूएनएफसीसीसी वार्ता समूहों के स्तर पर इम्पैक्ट का अनुमान भी मुहैया करती है। विश्लेषण से जलवायु परिवर्तन, आर्थिक परिणामों और कैपिटल निवेश के बीच जटिल गतिशीलता का भी पता चलता है। ये नतीजे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग और समर्थन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

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