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आंकड़ें बताते हैं ब्रिटिश राजधानी बनते ही दिल्ली को लेकर किस कदर बढ़ा था आकर्षण, आप भी जानें

यकीन नहीं कर पाएंगे कि लखनऊ वाराणसी और पटना की जनसंख्या दिल्ली से ज्यादा हो? लेकिन ऐसा ही था। ब्रिटिश सरकार ने जब 1871-72 में जब देश में पहली जनगणना करवाई थी तो यही आंकड़े थे। तब के कलकत्ता (अब कोलकाता) में दिल्ली से पांच गुना ज्यादा लोग रहते थे

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Mon, 12 Jul 2021 12:36 PM (IST)
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कैसे यकीन करेंगे कि देश के चार नहीं बल्कि छह बड़े महानगरों में दिल्ली का नाम ही ना हो?
नई दिल्ली, [विष्णु शर्मा]। जनगणना का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ तक में मिलता है, लेकिन अभी जो जनगणना होती है, ये व्यवस्था अंग्रेजों ने शुरू की थी। ऐसे में क्या आप इस आंकड़े पर यकीन करेंगे कि कभी कोलकाता की जनसंख्या 7,95,000, मुंबई की 6,44,000, चेन्नई की 3,98,000 और दिल्ली की केवल 1,54,717 थी? यकीन कर भी लिया जाए, लेकिन ये कैसे यकीन करेंगे कि देश के चार नहीं बल्कि छह बड़े महानगरों में दिल्ली का नाम ही ना हो?

आप ये तो कतई यकीन नहीं कर पाएंगे कि लखनऊ, वाराणसी और पटना की जनसंख्या दिल्ली से ज्यादा हो? लेकिन ऐसा ही था। ब्रिटिश सरकार ने जब 1871-72 में जब देश में पहली जनगणना करवाई थी, तो यही आंकड़े थे। तब के कलकत्ता (अब कोलकाता) में दिल्ली से पांच गुना ज्यादा लोग रहते थे, ब्रिटिश राजधानी कलकत्ता थी, दिल्ली में मुगलिया परचम उखड़ चुका था। दूसरा बड़ा शहर बम्बई अब मुंबई था, दिल्ली से चार गुना जनता वहां थी, मद्रास में दिल्ली से करीब ढाई गुना ज्यादा जनता थी और चौथे स्थान पर महानगर था लखनऊ, जिसमें 2,85,000 लोग रहते थे।

यानी दिल्ली से करीब दोगुने। दिलचस्प बात थी कि पांचवें पर 1,75000 जनसंख्या वाला बनारस था, छठे पर 1,54,000 जनसंख्या वाला पटना था। दिल्ली सातवें स्थान पर थी। हेनरी वाटरफील्ड द्वारा तैयार मेमोरेंडम आन द सेंसस आफ ‘ब्रिटिश इंडिया आफ 1871-72 के मुताबिक, ‘एक-दो लाख के बीच में केवल 12 शहर थे, जिनमें दिल्ली, बनारस, पटना के अलावा आगरा, प्रयागराज, बेंगलुरू, कानपुर, अमृतसर, पुणो, बरेली, अहमदाबाद आदि थे’। हालांकि ये जनगणना पहला प्रयास थी, 1865 से 1872 तक चलती रही, सो एक ही समय में सारे शहरों में नहीं हुई, नियमित तरीके से 1881 से शुरू हुई।

वर्ष 2011 में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले शहरों में आप पाएंगे कि मुंबई पहले, दिल्ली दूसरे, चेन्नई छठे, कोलकाता सातवें, लखनऊ 11वें और वाराणसी 30वें स्थान पर है। ब्रिटिश राजधानी बनते ही, दिल्ली को लेकर किस कदर आकर्षण बढ़ा है, इस आंकड़े से समङिाए, 1951 में भारतीय जनसंख्या में दिल्ली का हिस्सा 0.48 फीसद था, 2011 में ये बढ़कर 1.39 फीसद हो गया था। 1961 मे जब देश की जनसंख्या वृद्धि दर 21.64 फीसद थी, दिल्ली की 52.44 फीसद थी। तभी तो दिल्ली पिछली बार महानगरों में कोलकाता को तीसरे नंबर पर धकेलकर उसकी जगह पर कब्जा जमा चुकी थी। यूएन की वल्र्ड अरबनाइजेशन प्रास्पेक्टस रिपोर्ट में 2025 तक दिल्ली को दुनिया का तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर होने का अनुमान लगाया भी गया था।

तेजी से शहरीकरण की ओर

दिल्ली में शहरीकरण की रफ्तार काफी तेज है, 1991 में दिल्ली का शहरी हिस्सा जो 46.21 फीसद यानी 685.34 किमी था वो 2011 में बढ़कर 75.09 फीसद हो गया था, यानी 1113. 65 वर्ग किमी जबकि ग्रामीण दिल्ली का हिस्सा 53.59 फीसद से घटकर केवल 20 सालों के अंदर 24.91 फीसद ही रह गया। 1961 की जनगणना में दिल्ली में 300 गांव हुआ करते थे, जो 2001 में घटकर केवल 165 रह गए, 2011 में 112 ही रह गए थे। हालांकि 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली की केवल 2.5 फीसद आबादी ही ग्रामीण गिनी गई, बाकी शहरी ही थी जबकि 1901 में दिल्ली की 52.76 फीसद आबादी ही शहरी थी, लेकिन तब जनसंख्या केवल 4,58,819 ही थी।

दिल्ली ने संयुक्त परिवार की प्रमुखता बनाए रखी है, इस आंकड़े से जानिए। पिछली दो जनगणनाओं में दिल्ली में छह-आठ सदस्यों वाले परिवार ही सबसे ज्यादा पाए गए, 2001 में ऐसे जहां 26.63 फीसद परिवार थे, वहीं 2011 में 25.60 फीसद थे। इससे ज्यादा सदस्यों वाले परिवार भी दिल्ली में 5.9 फीसद थे।

अप्रवासियों की संख्या को लेकर 2001 की जनगणना से जो आंकड़े आए थे, दिल्ली वालों के लिए वो चौंकाने वाले थे कि कैसे यूपी से 43.13 फीसद, बिहार से 17.72 फीसद अप्रवासी थे, जबकि पंजाबी केवल 4.81 फीसद तक सिमट गए थे. जबकि 2001 के मुकाबले 2011 मैं ना केवल हिंदी बोलने वालों की संख्या 81.64 से 80.94 फीसद आ गई थी, और पंजाबी बोलने वालों की 7.94 से 7.14 फीसदी आ गई थी जबकि आसामी, बंगाली, गुजराती, मैथिली, बोडो, डोगरी आदि बोलने वालों की संख्या बढ़ी थी। वो तो 1931 में जाति आधारित जनगणना बंद हो गई, वरना उससे काफी दिलचस्प आंकड़े सामने आते।

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