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इस मानसून भी पुराने लोहा पुल के सहारे चलेगी ट्रेनें, 25 साल बाद भी इसके नजदीक नया पुल नहीं बन सका

पिछले वर्ष जुलाई में बाढ़ आने पर भी कई दिनों तक इससे ट्रेनों की आवाजाही नहीं हुई थी। वर्षों पुरानी इस समस्या के समाधान के लिए इसके नजदीक ही नया पुल बनाया जा रहा है जिसका निर्माण कार्य 25 वर्ष बाद भी पूरा नहीं हो सका है। बार-बार इसके पूरा करने की तिथि बदल जाती है। अब सितंबर में इसका निर्माण पूरा होने की उम्मीद है।

By Santosh Kumar Singh Edited By: Sonu Suman Updated: Mon, 24 Jun 2024 04:38 PM (IST)
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इस मानसून भी पुराने लोहा पुल के सहारे चलेगी ट्रेनें।
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। अपनी आयु पूरी करने के बाद भी यमुना पर बना पुराना लोहा पुल राजधानी में ट्रेन आवागमन का मुख्य साधन है। लगभग डेढ सौ वर्ष से अधिक पुराने इस पुल से ट्रेनें धीमी गति से गुजरती है। वर्षा के दिनों में जब यमुना उफान पर रहती है तो इससे गुजरने वाली ट्रेनों की गति बहुत धीमी करनी पड़ती है। जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर बढ़ने पर इस पुल को बंद करना पड़ता है।

पिछले वर्ष जुलाई में बाढ़ आने पर भी कई दिनों तक इससे ट्रेनों की आवाजाही नहीं हुई थी। वर्षों पुरानी इस समस्या के समाधान के लिए इसके नजदीक ही नया पुल बनाया जा रहा है, जिसका निर्माण कार्य 25 वर्ष बाद भी पूरा नहीं हो सका है। बार-बार इसके पूरा करने की तिथि बदल जाती है। जून में निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, परंतु अभी इसमें और कुछ माह और लगने की बात कही जा रही है।

1947 में पूरी हो चुकी है पुराने पुल की आयु

इस पुल के माध्यम से ट्रेनें पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से शाहदरा के रास्ते गाजियाबाद जाती हैं। इस पुल पर रेल लाइन के नीचे सड़क मार्ग है। इस तरह से यह ट्रेन के साथ ही सड़क मार्ग के लिए महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ष मानसून के दिनों में इससे आवाजाही बाधित होती है। अंग्रेजों ने वर्ष 1867 में इस पुल का निर्माण किया था। उस समय सिर्फ एक लाइन जिसे नार्थ लाइन कहते हैं बना था। उसके बाद वर्ष 1913 में दूसरी लाइन (साउथ लाइन) बनाई गई। इसकी आयु (80 वर्ष) 1947 में ही पूरी हो चुकी है। इसके बावजूद दूसरा विकल्प नहीं होने की वजह से अभी भी इस पुल से ट्रेनों की आवाजाही जारी है।

वर्ष 2018 में की गई है इस पुल की मरम्मत

अधिकारियों ने बताया कि पुल का नियमित निरीक्षण होता है। वर्षा के दिनों में निगरानी और बढ़ा दी जाती है। इस पुल में कुल 3500 टन लोहा लगा हुआ है। लगभग 11 करोड़ रुपये की लागत से इसके जर्जर हिस्से को वर्ष 2018 में बदला गया है। लगभग साढ़े सात सौ टन लोहा बदला गया है। उसके बाद भी जरूरत के अनुसार मरम्मत कार्य किया जाता है। यमुना का जल स्तर बढ़ने पर पुल से ईएमयू 15 किलोमीटर प्रति घंटे, मेल व एक्सप्रेस ट्रेन 20 किलोमीटर प्रति घंटे और मालगाड़ी 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से गुजरती है।

वर्ष 1998 में मंजूर हुआ था नया पुल

सुरक्षित ट्रेन परिचालन के लिए रेलवे ने वर्ष 1997-98 में यमुना पर लोहा पुल के सामानांतर एक नया पुल बनाने का निर्णय लिया था। वर्ष 2005 तक इस पुल को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था, परंतु इसका काम वर्ष 2003 में शुरू हो सका। तकनीकी व अन्य बाधाओं की वजह से यह अब तक पूरा नहीं हो सका है। पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसाआई) की आपत्ति की वजह से निर्माण कार्य रोकना पड़ा था।

प्रस्तावित निर्माण क्षेत्र में सलीमगढ़ किला का कुछ हिस्सा आ रहा था, जिसका एएसआई ने विरोध किया था। इस कारम कई वर्षों तक काम बाधित हुआ। बाद में पुल के बनावट में बदलाव कर निर्माण कार्य शूरू किया गया तो प्रस्तावित पिलर वाले स्थान पर चट्टान मिलने के कारण काम रूक गया था। आइआईटी दिल्ली की सहायता से यह बाधा दूर करने के बाद फिर से निर्माण कार्य शुरू हुआ और जून 2019 तक इसे बनाने का लक्ष्य रखा गया।

सितंबर तक पूरा होगा निर्माण कार्य

उसके बाद बार-बार काम पूरा करने की नई तिथि निर्धारित होती रही। इस जून में इसे पूरा करने की बात कही गई थी, परंतु अभी भी काम बचा हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि कोरोना, प्रदूषण से निर्माण कार्य पर रोक जैसे कारणों से निर्माण कार्य में देरी हुई है। वर्षा शुरू होने पर इसका काम फिर से बाधित होने का डर है।

उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार का कहना है कि पुल का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। सितंबर तक इसे पूरा कर लिया जाएगा।

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