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टिल्लू हत्याकांड के Video ने तिहाड़ प्रशासन के तंत्र की उधेड़ दी बखिया, क्या जेल में है अराजकता का राज?

टिल्लू हत्याकांड में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे दो वीडियो ने देश की सबसे बड़ी व सुरक्षित कही जाने वाली तिहाड़ जेल प्रशासन के पूरे तंत्र की बखिया उधेड़ कर रख दी है। अब जेल संचालन से जुड़े कार्याें में संलग्न कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर सवाल उठने लगे हैं।

By Gautam Kumar MishraEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Fri, 05 May 2023 07:05 PM (IST)
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दोनों वीडियो से साफ जाहिर हो रहा है कि जेल में प्रशासन का नियंत्रण नहीं, बल्कि अराजकता का राज है।
नई दिल्ली, गौतम कुमार मिश्रा। टिल्लू हत्याकांड में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे दो वीडियो ने देश की सबसे बड़ी व सुरक्षित कही जाने वाली तिहाड़ जेल प्रशासन के पूरे तंत्र की बखिया उधेड़ कर रख दी है। दोनों वीडियो से साफ जाहिर हो रहा है कि जेल में प्रशासन का नियंत्रण नहीं, बल्कि अराजकता का राज है।

सबसे बुरा हाल जेल के उस हिस्से का है, जिसे प्रशासन अतिसुरक्षित कहते अघाते नहीं थकता। ऐसा लगता है मानों दुर्दांत अपराधियों को काबू में रखने के लिए बने हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड में प्रशासन ने कैदियों को बेकाबू होने के लिए छोड़ दिया है।

सुरक्षा के लिहाज से तीन तरह के वार्ड

दिल्ली की जेलाें में सुरक्षा के लिहाज से जेल के वार्डों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें जनरल वार्ड, स्पेशल सिक्योरिटी वार्ड व हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड शामिल हैं।

जनरल वार्ड

पहली श्रेणी को बोलचाल की भाषा में जनरल वार्ड कहा जाता है। इस वार्ड में ऐसे कैदी होते हैं, जिनपर छोटे-माेटे मामले होते हैं और जिनकी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होता। ऐसे कैदी दूसरे कैदियों की सुरक्षा के लिए भी खतरा नहीं होते। जेल की व्यवस्था को कायम रखने में ये कैदी कभी व्यवधान नहीं करते। जनरल वार्ड की सुरक्षा का दायित्व सेवादार कैदी (अच्छे आचरण वाले कैदी) व जेलकर्मी दोनों मिलजुलकर संभालते हैं।

स्पेशल सिक्योरिटी वार्ड

सुरक्षा के लिहाज से यह मध्यम श्रेणी का वार्ड होता है। यहां ऐसे कैदी होते हैं जो झगड़ालू प्रवृत्ति के होते हैं। ये ऐसे कैदी होते हैं जो दूसरे कैदियों के लिए खतरा बन सकते हैं। इन पर जेल प्रशासन की विशेष नजर रहती है। इस वार्ड की व्यवस्था पूरी तरह से जेलकर्मियों द्वारा संभाली जाती है।

हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड

सुरक्षा के लिहाज से यहां सर्वाधिक इंतजाम का दावा किया जाता है। यहां गैंगस्टर, आतंकी वारदात में शामिल आरोपितों को रखा जाता है। ये ऐसे कैदी होते हैं, जिनकी जान पर खुद भी खतरा रहता है और जो दूसरे कैदियों के लिए भी खतरा बन सकते हैं। इस वार्ड की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह तमिलनाडु पुलिस के जिम्मे रहती है।

जेलकर्मियों की यहां भूमिका केवल बैरक के दरवाजे खोलने व बंद करने व खाना बांटने में होती है। इस वार्ड में अन्य वार्डों की तुलना में तीसरी आंख का भी कड़ा पहरा रहता है। तीसरी आंख के फुटेज पर नजर रखने के लिए कंट्रोल रूम में चौबीस घंटे एक सुरक्षाकर्मी रहता है।

इतना ही नहीं, यहां सहायक अधीक्षक व उप अधीक्षक रैंक के अधिकारी की डयूटी हमेशा रहती है। आपात स्थिति में इन्हें तत्काल सूचना दी जाती है, लेकिन टिल्लू मामले में हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड से जुड़ी पूरी व्यवस्थागत दावे हवा-हवाई साबित हो गए।

प्रशिक्षण पर उठ रहे सवाल

टिल्लू मामले में अब जेल संचालन से जुड़े कार्याें में संलग्न कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर सवाल उठने लगे हैं। जेलकर्मी विपरीत परिस्थिति को कैसे काबू करें, इसका प्रशिक्षण जरूर दिया जाता होगा। खतरनाक कैदी जब बेकाबू होने लगे, तब उन्हें काबू कैसे किया जाए, इसकी भी जानकारी दी जाती होगी। साहस और बलिदान का भी पाठ पढ़ाया जाता होगा, लेकिन टिल्लू मामले में ऐसा लग रहा है मानों तमिलनाडु पुलिस व जेलकर्मियों को प्रशिक्षण के दौरान सिखाए गए पाठ का एक भी हिस्सा याद नहीं आया।

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