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पढ़िए कैसे जीजाबाई के शब्दों के लिए शिवाजी ने सिंहगढ़ किले की जीत को दांव पर लगा दिया सब कुछ

Mother’s Day 2022 वह माता जीजाबाई ही थीं जिन्होंने वीर शिवा के मन में हिंदू राष्ट्र का वह बीज बोया जो आगे चलकर हिंदू पदपादशाही का वटवृक्ष बना। आज मातृ दिवस पर जीजाबाई के बारे में बता रहे हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sun, 08 May 2022 09:41 AM (IST)
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जीजाबाई के शब्दों के सम्मान के लिए शिवाजी ने सिंहगढ़ किले को जीतने को सब कुछ दांव पर लगा दिया

ईश्वर शर्मा। यदि छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680 ईस्वी) हिंदू पदपादशाही अर्थात हिंदू राष्ट्र स्थापित करने का संकल्प न लेते, तो आज भारत वैसा न होता जैसा है। वीर शिवाजी के नेतृत्व में हिंदू-मराठा लड़ाके ऐसे लड़े कि मुगल आक्रांता कांप उठे थे और हिंदुओं में अद्भुत साहस भर गया था। शिवाजी की जयगाथा सुनकर मन में स्वाभाविक प्रश्न उभरता है कि आखिर वे इतने वीर, साहसी और राष्ट्रभक्त बने कैसे? इसका एकमेव उत्तर है- शिवाजी की महान माता जीजाबाई। शिवाजी जैसे शूरवीर को जन्म देने वाली जननी ने उन्हें बचपन से वीरता की ऐसी कहानियां सुनाईं कि वह बालक 17 वर्ष की उम्र में मुगलों के खिलाफ बड़े-बड़े युद्धों में उतर गया।

शौर्य का इतिहास

राजमाता जीजाबाई का जन्म महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के गांव सिंदखेड़ के राजा लखुजी जाधव के घर 12 जनवरी, 1598 को हुआ था। कुलदेवी मां भवानी की भक्त जीजाबाई जब छह वर्ष की थीं, तभी उनकी मंगनी उस क्षेत्र के सुल्तान के सेनापति मोलाजी के पुत्र शाहजी भोसले से हो गई थी। बाद में शाहजी बड़े हुए तो बीजापुर के राज दरबार में राजनयिक बन गए। बीजापुर के महाराज ने शाहजी की सहायता से अनेक युद्ध जीते। तब महाराज ने प्रसन्न होकर शाहजी को अनके जागीर भेंट में दी, जिनमें से एक थी शिवनेरी का दुर्ग। उनकी पत्नी जीजाबाई अपनी छह पुत्रियों व दो पुत्रों के साथ इसी दुर्ग में रहती थीं। महान शिवाजी का जन्म भी इसी दुर्ग में हुआ।

जगाई क्रांति की ज्वाला

शिवाजी के जन्म के कुछ समय बाद उनके पिता शाहजी को मुगल आक्रांता मुस्तफा खां ने बंदी बना लिया था। तब जीजाबाई ने ही बच्चों को पाला-पोसा। मां जीजाबाई ने शिवाजी सहित सभी बच्चों में क्रूर मुगल शासकों के विरुद्ध खड़े होने, अपने हिंदू धर्म की रक्षा करने व भारतवर्ष को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए क्रांति की ज्वाला जगाई। शिवाजी जब 12 वर्ष के हो गए, तब पिता शाहजी आक्रांता मुस्तफा खां की कैद से स्वतंत्र हुए। इसके बाद शाहजी ने अपने बड़े बेटे (शिवाजी के बड़े भाई) संभाजी को साथ लेकर अफजल खान के खिलाफ युद्ध किया, जिसमें वे दोनों वीरगति को प्राप्त हो गए। पति की मृत्यु ने जीजाबाई को इतना व्यथित किया कि उन्होंने सती होकर पति की चिता के साथ स्वयं को अग्नि को समर्पित करने का प्रयास किया, किंतु वीरता और त्याग की कहानियां सुनकर बड़े हुए शिवाजी ने मां को ऐसा करने से रोक लिया। बेटे की संकल्पशक्ति और हिंदू राष्ट्र के स्वप्न ने माता जीजाबाई में देश व धर्म के लिए जीने की भावना भर दी। इसके बाद माता जीजाबाई फिर जीवन में लौटीं और शिवाजी में वीरता, साहस, विवेक, बुद्धिचातुर्य जैसे गुण कूट-कूटकर भर दिए। इसी दौरान मां ने बालक शिवाजी के मन में हिंदू राष्ट्र का वह विचार रोपा, जिसे शिवाजी ने बड़े होकर अपने रक्त, स्वेद, श्रम, वीरता और साहस से सींचा तथा हिंदू राष्ट्र की स्थापना के रूप में सत्य कर दिया। यह मां जीजाबाई की ही शिक्षा थी कि शिवाजी बहुत कम उम्र में समाज, देश व राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझ गए थे। मां के मार्गदर्शन में उन्होंने छोटी उम्र में ही हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत कर दी थी।

राष्ट्रभक्त थीं मां जीजाबाई

जीजाबाई बहुत ही चतुर, बुद्धिमान, दूरदर्शी व युद्ध नीति में निपुण महिला थीं। उन्होंने मराठा साम्राज्य स्थापित करने के लिए ऐसे अनेक निर्णय लिए, जिनके कारण स्वराज स्थापित हुआ। उन्होंने पुत्र शिवाजी को मराठा साम्राज्य की स्थापना के लिए धर्म, कर्म, युद्धशैली सहित चतुराई की शिक्षा दी। माता ने शिवाजी को बचपन में गीता में श्रीकृष्ण द्वारा वर्णित युद्धनीति, महाभारत का महान युद्ध व रामायण की कहानियां सुनाकर धर्म रक्षा के लिए प्रेरित किया था। यह मां जीजाबाई की शिक्षा ही थी कि शिवाजी ने मात्र 17 वर्ष की आयु में मराठा सेना का निर्माण किया और मुगल सेना के अनेक दुर्दांत अत्याचारियों को मौत के घाट उतारकर उन पर विजय प्राप्त की।

मां ने ललकारा मराठों को

छोटी उम्र से ही दुख देखते हुए बड़ी हुई जीजाबाई ने अपने दुखों और दुश्वारियों को अपने राष्ट्रप्रेम की आंच में भस्म कर दिया। उन्होंने क्रूर और आतताई आक्रांताओं के खिलाफ लड़ने के लिए मराठाओं को ललकारा और अपने पति शाहजी व बड़े पुत्र संभाजी की मृत्यु के बाद छोटे बेटे शिवाजी को राष्ट्र-रक्षा का संकल्प दिलाया। माता से संकल्प-शक्ति पाकर शिवाजी ने हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत की और अपने जीवनकाल में मुगलों को खदेड़ कर हिंदू साम्राज्य की स्थापना कर भी दी। उन्होंने एक हाथ से अत्याचारियों का वध किया, तो दूसरे से निर्दोष व भोली प्रजा को सहायता दी। उनके विराट व्यक्तित्व में वीरता और संवेदनशीलता का यह अद्भुत साम्य माता जीजाबाई ने ही भरा था। जीजाबाई ही वह मां थीं, जिन्होंने दक्षिण भारत में मराठा अर्थात हिंदुत्व की स्थापना का यज्ञ प्रज्वलित किया। मां जीजाबाई ने शिवाजी को गढ़ने और मराठों को लड़ने के लिए तैयार करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया। यह माता के ही दिए संस्कार थे कि शिवाजी ने हथियार उठाया और हिंदुओं को लड़ने के लिए प्रेरित किया। अपने जीते जी हिंदू राष्ट्र की स्थापना देखने अर्थात छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद इस महान माता ने 17 जून,1674 को अंतिम सांस ली। किंतु वह अंतिम सांस तो केवल उनकी देह ने ली थी। वे तो आज भी भारतवर्ष की हर वीर माता में धड़कती हैं, हर बालक को वीर, साहसी और राष्ट्रभक्त बनने की प्रेरणा देती हैं।

फिल्मों व धारावाहिक की प्रेरणा बनीं जीजाबाई

मां जीजाबाई व उनके पुत्र वीर शिवाजी के जीवन पर कई फिल्में व धारावाहिक बने। इनमें फिल्म ‘राजमाता जिजाऊ’ तो पूरी तरह मां जीजाबाई को समर्पित रही। इसके अलावा शिवाजी पर बनी फिल्मों व धारावाहिकों में मां जीजाबाई सदैव प्रमुख किरदार रहीं। इनमें फिल्म ‘बाल शिवाजी’, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’, ‘कल्याण खजाना’, ‘सिंहगढ़’ व धारावाहिक ‘भारतवर्ष’ शामिल हैं।