Coronavirus News: कोरोना संकट के दौर में दांव पर बच्चों का स्वास्थ्य
क्या इस देश में निजी विद्यालयों की ही मनमानी चलती रहेगी जैसा कि स्कूल-फीस व अन्य मामलों में प्राय देखने-सुनने को मिलता है। इन तमाम चिंताओं के संदर्भ में भी हमें व्यापक रूप से सोचना चाहिए ताकि बच्चों के स्वास्थ्य को दांव पर लगने से बचाया जा सके।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 12 Jan 2021 12:50 PM (IST)
चेतनादित्य आलोक। पिछला वर्ष पूरी दुनिया के लिए संकट भरा रहा। कोरोना के अभिशाप से मुक्ति की चाहत में कई विकसित एवं भारत जैसे विकासशील देशों ने भी आनन-फानन कोरोना महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन बनाने तथा उसके ट्रायल करने से लेकर अब लोगों को लगाने तक की पूरी प्रक्रिया को बड़ी ही सावधानीपूर्वक एवं संवेदनशील ढंग से लक्ष्य तक पहुंचाने के कार्यो में जुटे हैं। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने कदम-कदम पर हमें चेताने-समझाने का कार्य किया।
जब-जब हमारे देश के लोग कोरोना के खतरों के बीच मास्क से परहेज करने लगे या फिर शारीरिक दूरी जैसी चेतावनियों के प्रति लापरवाही बरतते देखे गए, तब-तब हमारे प्रधानमंत्री ने देश की जनता को समझाने-बुझाने का प्रयास किया। लेकिन इन सबके बावजूद आखिर क्या कारण है कि कुछ मुद्दों पर हमारा देश बिल्कुल मौन हो जाता है।
दरअसल कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बाधित तो हुई ही है, अब वे घरों में रहकर ऊब भी रहे हैं, परंतु इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि कोरोना जैसी भयावह महामारी के बीच विद्यालयों को उनके मालिकों-संचालकों के दबाव में आकर सिर्फ इसलिए खोलने की अनुमति दे दी जाए, ताकि वे बच्चों-अभिभावकों से बकाया स्कूल फीस वसूल सकें। इस संकटकाल में राज्यसभा एवं लोकसभा का शीतकालीन सत्र सिर्फ इसलिए स्थगित कर दिया गया, ताकि हमारे देश के माननीयों को कोरोना संक्रमण से बचाए रखा जा सके। राज्यों की विधानसभाएं भी स्थगित हैं। अनेक संगठनों के कर्मियों को घर से कार्य करने की छूट प्राप्त है, परंतु हमारे नौनिहालों, जो भविष्य के भारत के कर्णधार हैं, उनके लिए विद्यालयों का ताला खोल दिया गया है।
फिलहाल नौवीं, और कहीं-कहीं पांचवीं से लेकर 12वीं तक के बच्चों को भी स्कूल बुलाया जा रहा है। आखिर बच्चों का जीवन दांव पर क्यों लगाया जा रहा है? क्या सोचकर भला ऐसा निर्णय राज्य सरकारों द्वारा लिया जा रहा है। जबकि विद्यालयों के खोले जाने के बाद कई राज्यों से बड़ी संख्या में बच्चों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें आ रही हैं। बिहार के मुंगेर में लगभग 30 बच्चों के कोरोना संक्रमित होने की खबर बीते सप्ताह आ चुकी है। कर्नाटक से भी हाल में आई एक खबर चिंता बढ़ानेवाली है, जिसके अनुसार वहां विद्यालय खुलने के बाद 211 शिक्षक कोरोना संक्रमित हुए हैं। ये आंकड़े तो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं। अन्य कितने लोग संक्रमित हुए होंगे, इसका इसका सटीक आंकड़ा नहीं है।
क्या सरकारें और प्रशासन इसकी प्रतीक्षा कर रही हैं कि कोरोना एक बार फिर अपने पंजों में पहले बच्चों तथा शिक्षकों को, फिर उनके घरवालों और आप-पास के लोगों को जकड़ने लगे, या फिर हमारे बच्चों पर कोरोना के प्रभावों को परखने के लिए प्रयोग किया जा रहा है? (लेखक साहित्यकार हैं)Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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