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Delhi Pollution: दिल्ली में प्रदूषण के लिए वाहन कितना जिम्मेदार, जानिए क्या कहते हैं ये आकड़े?

दिल्ली में सबसे अधिक करीब 80 लाख दोपहिया वाहन और उसके बाद करीब 35 लाख कार पंजीकृत हैं। चिंताजनक यह भी है कि दिल्ली में चलने वाले 60% से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के रफ्तार भर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला परिवहन विभाग मुहूर्त निकालकर विशेष जांच अभियान चलाता भी है तो वह खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 25 Oct 2023 01:52 PM (IST)
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Delhi Pollution: वाहनों के धुएं में 'जाम' हो रहे फेफड़े
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या दूर करने के लिए सरकार से लेकर अदालत तक कोशिशों में जुटी हुई हैं, लेकिन हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। सर्दी की दस्तक के साथ ही वातावरण में प्रदूषक तत्व और बढ़ने शुरू हो गए हैं।

दिल्ली में बढ़ रही वाहनों की संख्या?

इस जानलेवा प्रदूषण के लिए पराली का धुआं और बायोमास जलना ही नहीं, वाहनों का धुआं भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। साल दर साल 5.81% की दर से राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह संख्या एक करोड़ 33 लाख के आंकड़े को छू रही है।

दिल्ली में सबसे अधिक करीब 80 लाख दोपहिया वाहन और उसके बाद करीब 35 लाख कार पंजीकृत हैं। जहां तक डीजल वाहनों की बात है तो इनकी संख्या निजी वाहनों में अच्छी खासी है जो प्रदूषण में इजाफे के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है।

इन वजहों से बढ़ रहा प्रदूषण

इस पर भी बाटलनेक समस्या को और गंभीर बना देते हैं। खुद ट्रैफिक पुलिस ने दिल्ली में ऐसे 91 प्वाइंट चिन्हित किए हैं, जहां जाम लगता है और वाहनों की रफ्तार बहुत कम हो जाती है। ऐसे प्वाइंट भी प्रदूषण बढ़ाने में खासे जिम्मेदार हैं।

क्या कहती है शोध रिपोर्ट?

कारण, जाम के दौरान भी और सड़कों पर वाहनों के रेंगने के क्रम में भी ईंधन फूंकता रहता है, इंजन भी चालू ही रहता है। स्वाभाविक रूप से इस स्थिति में प्रदूषण तो बढ़ेगा ही। कहने का मतलब यह कि वाहनों की इस बढ़ी संख्या और इससे वायुमंडल पर हो रहे असर को कतई नहीं नकारा जा सकता।

शोध रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के प्रदूषण में पीएम 10 के स्तर पर वाहनों से 14 और पीएम 2.5 के स्तर पर 25 से 36% प्रदूषण होता है।

बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के चल रहे 60% से ज्यादा वाहन

चिंताजनक यह भी है कि दिल्ली में चलने वाले 60% से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के रफ्तार भर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला परिवहन विभाग मुहूर्त निकालकर विशेष जांच अभियान चलाता भी है तो वह खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता।

दिल्ली की सड़कों पर रोज करीब 60 लाख से अधिक वाहन उतरते हैं, लेकिन इनकी प्रदूषण जांच के लिए परिवहन विभाग के पास कर्मचारियों की टीम भी पर्याप्त नहीं है। कुछ प्रदूषण जांच केंद्र ऐसे भी हैं जो डीजल वाहनों की जांच करने में आनाकानी करते हैं और वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी जारी नहीं करते हैं।

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वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण की जांच के लिए बनी तकनीक का आज तक आडिट नहीं कराया गया। इससे इसकी कार्य क्षमता की सत्यता का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। मेरे विचार में आड इवेन व्यवस्था भी बहुत कारगर नहीं है। वैसे भी राजनीतिक कारणों से दिल्ली में इसके तहत तमाम लोगों को छूट दे रही है।

इसी तरह रेड लाइट आन, गाड़ी आफ...अभियान भी अच्छा होने के बावजूद बहुत कारगर नहीं है। गाड़ी आन रखना भी चालकों की मजबूरी है। बार बार गाड़ी आन और आफ करने पर भी ईंधन ज्यादा जलता है। अगर गंभीरता से सोचा जाए तो सार्वजनिक परिवहन सेवा को मजबूत करके ही प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

सड़कों पर निजी वाहनों का जो बोझ आड इवेन के जरिये कम करने की कोशिश हो रही है, वह सार्वजनिक परिवहन की मजबूती से स्थायी तौर पर हो सकती है। बाटलनेक खत्म करने के लिए यातायात का प्रबंधन बेहतर तरीके से किए जाने की व्यवस्था बने।

इसके अलावा बाटलनेक वाले प्वाइंट पर सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइनिंग में भी सुधार आवश्यक है। यह मुद्दा सफर इंडिया के पूर्व संस्थापक निदेशक गुरफान बेग से संजीव गुप्ता की बातचीत पर आधारित है।

व्यस्त समय में बेहतर ट्रैफिक प्रबंधन जरूरी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह वाहनों का ईंधन जलने से निकलने वाली जहरीली गैस हैं। राजधानी दिल्ली में पहले भी व्यस्त समय में जिन जगहों पर भी जाम लगने की संभावना होती थी, उन पर मुस्तैद रहकर यातायात कर्मी डायवर्जन, वन वे या टू वे जैसे प्रबंध करते थे। अब ऐसी स्थिति कहीं भी देखने को नहीं मिलती है। नई दिल्ली जिले को छोड़ दें, तो कहीं पर भी यातायात कर्मी सड़कों पर मुस्तैद दिखाई नहीं देते हैं।

वायु प्रदूषण बढ़ने में वाहनों की कितनी भूमिका है उसका एक सटीक सर्वे भी जरूरी है। हालांकि वाहनों का धुआं एक बड़ा कारक है यह किसी से छिपा नहीं है। नौ साल पहले दिल्ली में जितने फ्लाईओवर, अंडरपास और सड़कें बनीं उसके बाद बीते सालों में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

गाड़ियों की रफ्तार कम होने व जाम लगने से वायु प्रदूषण बढ़ता है। एक तरफ हमने सड़कों पर ई-रिक्शा तो बढ़ा दिए लेकिन उन्हें व्यविस्थत करने के लिए कोई नियम नहीं हैं। इनके लिए लाइसेंस सिस्टम जरूरी है, ताकि बेतरकीब चलाने और सड़कों पर यातायात प्रभावित करने पर चालान किया जा सके।

नहीं हो रही टूटी सड़कों की मरम्मत

अब सड़कों की स्थिति की बात करते हैं। दिल्ली के सब्जी मंडी इलाके में बारह टूटी और ईदगाह चौक आदि सैकड़ों जगहों पर 30 साल से भी अधिक समय से सड़कें टूटी हैं, लेकिन उनकी मरम्मत नहीं हो पा रही है। फ्लाईओवर का खराब हालत में हैं।

पंजाबी बाग, आजादपुर और आश्रम चौक आदि जहां भी मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा है, उसे ठीक ढंग से मानीटर नहीं किया जा रहा है। शहरी विकास मंत्रालय व अन्य संबंधित विभागों को इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है।

यातायात कर्मियों की कमी के कारण एक तो दिल्ली की ट्रैफिक का बेहतर संचालन नहीं हो पा रहा है और दूसरी बड़ी समस्या कोर्ट चालान का निपटारा समय पर नहीं हो पा रहा है। लाखों चालान विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।

नहीं हो रही कड़ी कार्रवाई

यातायात नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जो चालान काटे जाते हैं उसमें अदालतों को एक साल के अंदर ही संबंधित वाहन चालकों को नोटिस जारी करने का प्रविधान है, लेकिन समय सीमा बीत जाने पर भी नोटिस नहीं जारी होता।

ऐसे में शहर में यातायात नियमों का पालन कराने के लिए सीसीटीवी लगाने का भी क्या औचित्य है? यातायात पुलिस को चाहिए कि जहां भी सड़कों पर यातायात बाधित हो, वहां गतिरोध बने वहां फ्लाईओवर या अंडरपास बनाने के लिए सरकार व संबंधित विभाग को समय-समय पर प्रस्ताव भेजा जाए।

यातायात कर्मियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। जहां भी सड़कों पर जाम लगता है वहां नियमित तौर पर यातायात कर्मियों की उपस्थिति होनी चाहिए। जब तक जाम की समस्या से निजात नहीं मिलेगी तब तक वायु प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकेगा।

-एसबीएस त्यागी, पूर्व संयुक्त आयुक्त, दिल्ली पुलिस

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