Delhi एम्स में शुरू हुआ स्वदेशी प्लाक ब्रेकीथेरेपी से बच्चों की आंखों के कैंसर का इलाज, निशुल्क मिल रही सुविधा
आंखों के कैंसर के इलाज के लिए अब मरीज विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं रहेंगे। एम्स में स्वदेशी प्लाक ब्रेकीथेरेपी से बच्चों की आंखों के कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज शुरू हो गया है। एम्स में तीन बच्चों का इलाज हुआ है और उनकी आंखों की रोशनी बचाई गई है।
By Jagran NewsEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Fri, 19 May 2023 06:59 PM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। आंखों के कैंसर के इलाज के लिए अब मरीज विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं रहेंगे। एम्स में स्वदेशी प्लाक ब्रेकीथेरेपी से बच्चों की आंखों के कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज शुरू हो गया है। इस तकनीक से एम्स में अब तक तीन बच्चों का इलाज हुआ है और उनकी आंखों की रोशनी बचाई गई है।
आंखों के कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में एम्स के आरपी सेंटर की प्रोफेसर डा. भावना चावला ने बताया कि स्वदेशी प्लाक ब्रेकीथेरेपी से आंखों के कैंसर का इलाज सस्ता होगा। एम्स पहला अस्पताल है जहां इसकी सुविधा शुरू हुई है। एम्स के मरीजों को यह सुविधा निशुल्क मिल रही है।
उन्होंने बताया कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे रेटिनोब्लास्टोमा से अधिक पीड़ित होते हैं। आठ हजार में से एक बच्चे को यह बीमारी होती है। दुनिया भर में हर वर्ष करीब पांच हजार बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होते हैं, जिसमें से 1500 से 2000 बच्चे भारत के होते हैं।
इस बीमारी का कारण जेनेटिक होता है। इससे पीड़ित एक तिहाई बच्चों को दोनों आंखों में कैंसर होता है। जागरूकता के अभाव में ज्यादातर मरीज एडवांस स्टेज में इलाज के लिए पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में आंख को निकालना पड़ता था। इस वजह से आंख की रोशनी चली जाती है। सही समय पर इलाज से आंख की रोशनी बचाई जा सकती है।
उन्होंने कहा कि यह बीमारी होने पर आंखों की पुतली में सफेद चमक दिखने लगती है। इसके अलावा शुरुआत में आंखों में तिरछापन, रोशनी कम होना, आंखें लाल होना व दर्द की समस्या होती है। बाद में बड़ा ट्यूमर बन जाता है।
इसलिए शुरुआती लक्षणों नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत इलाज कराना चाहिए। अब कीमोथेरेपी के लिए कई नई दवाएं उपलब्ध हो गई हैं। इसके अलावा रेडियोथेरेपी की सुविधा भी है। पहले आंखों के कैंसर की रोडियोथेरेपी के लिए जर्मनी से रेडियोएक्टिव प्लाक मंगाना पड़ता था। इस वजह से इलाज महंगा होता था। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने स्वदेशी प्लाक तैयार किया है और बच्चों की आंखों के कैंसर के इलाज के लिए एम्स को एक प्लाक निशुल्क उपलब्ध कराया है।
उन्होंने बताया कि जब कीमो से ट्यूमर ठीक नहीं होता तो आंख की रोशनी बचाने के लिए सर्जरी कर के प्लाक आंख में फिक्स कर दिया जाता है। इसके माध्यम से आंख के ट्यूमर को धीरे-धीरे रेडिएशन दिया जाता है। रेडिएशन का निर्धारित डोज पूरा होने के बाद दोबारा सर्जरी करके उसे आंख से निकाल लिया जाता है।एक प्लाक से कई मरीजों का इलाज किया जा सकता है। एक मरीज में कुछ घंटे से लेकर दो दिन तक प्लाक आंख में लगाकर रखना पड़ता है। उन्होंने बताया कि वैसे तो एम्स में बड़े व्यक्ति की आंखों के कैंसर के इलाज के लिए स्वदेशी प्लाक का इस्तेमाल दो वर्ष पहले शुरू हो गया था लेकिन इस तकनीक से बच्चों की आंखों के कैंसर का इलाज तीन माह पहले शुरू हुआ है।
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