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वर्तमान में आपके पास जो है, उससे स्वयं को एवं दूसरों को संतुष्ट एवं खुश रखने की कोशिश करें

हमारा हित इसमें है कि हम अपने विचारों पर ध्यान और भावनाओं पर नियंत्रण रख वर्तमान परिस्थिति अथवा सच्चाई को स्वीकार करें। स्वीकार करने का अर्थ कतई सहमति रखना नहीं है बल्कि यह एक साहसिक क्रिया है सच को जैसे है वैसे ही स्वीकार करना।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 03 Jun 2021 02:01 PM (IST)
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प्रतिकूल परिस्थितियों एवं संबंधों को सहर्ष स्वीकार करना सहज।
नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। सुप्रसिद्ध टीवी होस्ट ओप्रा विन्फ्रे का मानना है कि आपके पास जो कुछ है, उसे स्वीकार करना, उसके लिए शुक्रगुजार होना सीखना चाहिए। अगर आप इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं कि आपके पास क्या नहीं है, तो कभी संतुष्ट नहीं रह पाएंगे...और न ही अपने लक्ष्य व सफलता की प्राप्ति कर पाएंगे। जैसे मान लीजिए, किसी व्यक्ति की आवाज बहुत सुरीली है लेकिन मंच पर जाने, वहां परफार्म करने का भय इतना गहरा है कि वह चाहकर भी अपनी आवाज से दुनिया को परिचित नहीं करा पाता। क्योंकि कहीं न कहीं वह इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता कि उसमें क्या कमी या कमजोरी है? जिस दिन यह स्वीकारोक्ति हो जाती है, उससे सफलता दूर नहीं रह पाती। लाइफ कोच शांभवी कहती हैं, ‘सर्वप्रथम स्व को स्वीकार करने से ही संभावनाओं के नये द्वार खुलते हैं। उसके पश्चात् वर्तमान में आपके पास जो है, उससे स्वयं को एवं दूसरों को संतुष्ट एवं खुश रखने की कोशिश करें। इससे प्रतिकूल परिस्थितियों एवं संबंधों को सहर्ष स्वीकार करना सहज होगा।

हम अपनी शक्ति का जश्न मना सकते हैं और कमजोरियों पर सकारात्मक कार्य कर, उसे दूर कर सकते हैं। ‘द पपेटेरियन’ की सह-संस्थापक एवं आर्टिस्ट संज्ञा ओझा बड़े ही नेक एवं ज्ञानी शिक्षकों के संसर्ग में रहीं। उनसे बहुत कुछ सीखा, जाना। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उन्हें हमेशा हतोत्साहित किया। यह एहसास कराया कि उनमें सफल होने की काबिलियत नहीं। यहां तक कि जो रास्ता वह चुनना चाहती थीं, उसमें भी अवरोध डाले। लेकिन संज्ञा ने हार नहीं मानी, बल्कि अपने हुनर पर विश्वास रख, मन का किया। संज्ञा कहती हैं, ‘जीवन में कितने ही नकारात्मक तत्व क्यों न आएं, हमें अपने ऊपर भरोसा नहीं खोना चाहिए। जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार कर, स्व-प्रेरित रहने का प्रयास करेंगे, तो आगे बढ़ने से कोई हमें रोक नहीं सकेगा।‘

सच भी है कि समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो दूसरों में गलतियां निकालने, दोषारोपण करने में अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं। वे समस्या का समाधान निकालने, किसी स्थिति या व्यक्ति को स्वीकार करने के बजाय सवालों में अधिक उलझे होते हैं और अंतत: किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते हैं। मनोचिकित्सकों की मानें, तो जब कोई इंसान बेचैन या चिंतित होता है, तो वह भविष्य के बारे में अधिक सोचने लगता है। वहीं, जब कोई अवसाद में होता है, तो उसका मन पुरानी व बीती बातों में विचरण करता रहता है। कुल मिलाकर, दोनों ही स्थितियों में क्यों, क्या, कैसे, कब जैसे प्रश्न उसके मन को उलझा देते हैं। जबकि उचित यह रहेगा कि अपने मन को वर्तमान क्षण में लगाएं। वर्तमान पर ध्यान दें, उसे स्वीकार करें। वेलनेस कोच डा.सलोनी सिंह का कहना है कि कोरोना काल में कई बार हम देख रहे हैं कि अमुक व्यक्ति एक परिस्थिति को स्वीकार कर लेता है, उससे सामंजस्य बना लेता है और दूसरे ही क्षण कुछ ऐसा सुन या पढ़ लेता है, जो मन में बेचैनी या भय उत्पन्न कर देता है। ऐसे में उसका विश्वास फिर से डगमगा जाता है। लेकिन हमारा हित इसमें है कि हम अपने विचारों पर ध्यान और भावनाओं पर नियंत्रण रख, वर्तमान परिस्थिति अथवा सच्चाई को स्वीकार करें। स्वीकार करने का अर्थ कतई सहमति रखना नहीं है, बल्कि यह एक साहसिक क्रिया है सच को जैसे है, वैसे ही स्वीकार करना।

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