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India Water Week 2022: नदियों वाले देश भारत में जल संकट, क्या जल नीतियों को मिलेगी दिशा

India Water Week 2022 युवा पीढ़ी वाला देश भारत इस बात को तो समझ चुका है कि कोई भी जागरूकता चिंतन उनके माध्‍यम से ही उन्‍हें जगाया जा सकता है। इस तरह का संदेश जब युवा पीढ़ी खुद ही दे तो उसके प्रभाव की परिकल्‍पना हम कर सकते हैं।

By Manu TyagiEdited By: JP YadavUpdated: Thu, 10 Nov 2022 11:07 AM (IST)
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देश में जल नीतियों को दिशा देने की जरूरत है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। रोटी का निवाला आपके हाथ में है, वो पेट तक पहुंच पाएगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं है। लेकिन हां, ये है कि निवाला है। पेट भरने को इसके हाथ से मुंह तक पहुंचने का सफर जिद्दोजहद भरा है। उसके लिए मंथन हो रहे हैं। चिंतन करने में भी कोई कमी नहीं रही। नदियों का देश भारत फिलवक्‍त इसी अवस्‍था में है। उसके पास नदियां हैं लेकिन फिर भी जल संकट, जल संरक्षण, संचयन, संरक्षण की पारिस्थितियों से जूझ रहा है। कहीं बाढ़ है तो कहीं बेहिसाब सूखा।

जल मंथन कर रहा देश

बता दें कि ये असंतुलन आज की उत्‍पत्ति नहीं है। छह दशक पहले देश की आबादी 36 करोड़ थी तब भी था और आज 130 करोड़ की आबादी है तो आज भी है। इसे संतुलित करने को वैश्विक आयोजन वर्ल्‍ड वाटक वीक से सीख ले भारत ने भी अब जल मंथन कर रहा है। एक दशक पहले इसी की इंडिया वाटर वीक यानी भारत जल सप्‍ताह के स्‍वरूप में शुरुआत की गई थी। इस संरचना के सुखद परिणाम जल शक्ति के रूप दिखने भी लगे हैं। हम कह सकते हैं पानीदार योजनाओं का निवाला दोनों हाथों में लिए देश खड़ा है।

इंडिया वाटर वीक में अन्य देशों ने दिखाया उत्साह

आज तक देश में सात इंडिया वाटर वीक हुए हैं। एक हाथ में जल विशेषज्ञों के बौद्धिक ज्ञान से निकला मंथन है और दूसरे हाथ में वैश्विक स्‍तर की तकनीक, परिकल्‍पनाएं पानी को हर तरह से उपयोग करने के तरीके लिए खड़ी हैं। अब बड़ा सवाल यही है कि उस समाज तक, उस वर्ग तक पहुंचे कैसे? सीढि़यों से उतराने के रास्‍ते पर निवाला लेकर खड़े लोग चलना नहीं चाहते या इस सोच में हैं उनका दायित्‍व पूरा हुआ अब इसे खुद ही वहां तक पहुंचना होगा। भारत में थिंक टैंक्‍स की कमी नहीं है, उसे जमीन पर उतारने, जमीं तक पहुंचाने, उसके क्रियान्‍वयन के अभाव से हर क्षेत्र जूझता दिखता है। गौतम बुद्ध नगर के इंडिया एक्‍सपो मार्ट में पूरब से पश्चिम और उत्‍तर से दक्षिण तक यानी कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक हर बड़े राज्‍य की उपस्थिति थी। और भारत को पानी का बाजार समझकर पहुंचे दूसरे देशों ने भी भरपूर उत्‍साह दिखा।

इजरायल, डेनमार्क जैसे देश भारत को जल संचयन और संरक्षण, प्रबंधन के तरीके बताते दिखे। इन देशों के व्‍यापारिक मंतव्‍य ही देश से जुड़े दिखे। भारत के लिए जल संवेदनाओं का विषय है। यहां पानी लोगों की जन्‍मजाति गांव, माटी की पहचान की भांति उनके गांव में उनके नाम के जोहड़, तालाब की निशानी के रूप में रहा है। आज हम जिस तरह अपनी पीढ़ी से कट रहे हैं उसी तरह जल संचयन की जिम्‍मेदारी से भी मुंह चुरा रहे हैं। जल चिंतकों के माध्‍यम निकले इसी तरह के मंथन अहमियत बताने, जिम्‍मेदारियों की ओर ध्‍यान आकर्षित कराकर झकझोरने का काम जरूर कर रहे हैं। यह सब धरातल पर कितना पहुंच पाएगा, यह भविष्‍य के गर्भ में है।

जल नीतियों को दिशा देने की जरूरत

सदियों से बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे महान सभ्यताओं और शहरों का विकास हुआ है। जहां जल था वहीं मानवता पनपी और अस्तित्व में रही है। वर्तमान समय में हम मानव चांद जितने दूरस्थ स्थान पर तो जल की खोज कर रहे हैं और दूसरी ओर हम अपने ही ग्रह पर जल संसाधनों का संरक्षण करने में लापरवाही बरत रहे हैं। यह संदेश बदलाव के पड़ाव बनेंगे। जल नीतियों को दिशा मिलेगी।

भावी पीढ़ी के जल संरक्षण संदेश

जब एक बच्चा पैदा होता है तो माता-पिता उसके भविष्य की योजना बनाने की शुरूआत कर देते हैं। हम बच्चों की शिक्षा और अन्य जरूरतों के लिए बचत शुरू कर देते हैं। पर हम कभी इस बारे में नहीं सोचते हैं कि हमारे बच्चों को जीवित रहने के लिए ताजे व स्वच्छ जल की भी जरूरत पड़ेगी। हमें अपनी आनी वाली पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण को प्राथमिकता देने की जरूरत है।  बीते वाटर वीक्‍स की तुलना में इस बार के आयोजन में बच्‍चे और युवाओं की भागीदारी बहुत सारे सकारात्‍मक संदेश दे रही थी।

युवा कर सकते हैं जन संचयन

पांच दिन के सत्रों में स्‍कूल से कालेज तक हजारों छात्रों की उपस्थिति किसी विशेषज्ञ से कम नहीं थी। हर बच्‍चा आत्‍मविश्‍वास के साथ मंच पर जल का महत्‍व, मंचन, विचार, कला के माध्‍यम से बता रहा था। इसकी अहमियत और जरूरत इसलिए भी बढ़ जाती है क्‍योंकि यही पीढ़ी यदि ठान लेगी तो अपना और जल संचयन का भविष्‍य संरक्षित भी कर लेगी। या अधिकार के साथ करा लेगी। पानी बर्बादी, दोहन की गलत आदतों में बदलाव कराना और रोकना इस पीढ़ी के ही हाथ में तो है। सिर्फ इन संदेशों तक ही युवा सीमित नहीं थे। जल संरक्षण के लिए तमाम नवाचार युवा पीढ़ी कर रही है।

युवाओं से बंधी उम्मीद

अच्‍छी बात यह दिखी कि विदेशी कंपनियों को अवसर देने के बजाय भारतीय छात्रों के स्‍वदेशी नवोन्‍मेष उज्‍जवल भविष्‍य की अनुभूति करा रहे थे। औद्योगिक जगत के लिए पानी रिसाइकिल करने से लेकर किसानों के लिए फसलों में जल प्रबंधन और हर घर में जल उसका अधिकार, कहीं सूखा और कहीं बेहिसाब जैसी खाई को पाटते युवा पीढ़ी के नवाचारों ने पूरे देश की जल संस्‍कृति को एक मंच पर भविष्‍य की ताकत का एहसास कराया।

आंकड़ेबाजी से अधिक धरातल पर काम जरूरी

निश्चित ही हाल ही में हुआ इंडिया वाटर वीक बीते और विशेषकर शुरुआती आयोजनों से कई गुना युवा शक्ति के साथ खड़ा दिखा, जिससे भविष्‍य में जल संरक्षण को लेकर होने वाले राष्‍ट्रीय आयोजनों को शक्ति और दिशा देगा। वाहक बनेगा। जल चिंतक, विश्‍लेषक और विश्‍षेज्ञों इस अहमियत को भी महसूस करेंगे आंकड़े बाजियों से कुछ नहीं होता, बड़ी-बड़ी रिपोट्र्स प्रस्‍तुत हो जाती हैं लेकिन मनुष्‍य स्‍मृतियों में संदेश वाहक वही बनता है जो आत्मिक रूप से झकझोर पाता है।

सिविल सोसायटी की हो सकती है अहम भूमिका

सिविल सोसायटीज की भूमिका उनकी सहभागिता इस पड़ाव को और आगे लेकर जाएगी। उन्‍हें रिवाइव करने, उन्‍हें जगाने, भूमिका को सक्रियता से निभाने पर सत्रों का आयोजन यही संदेश देता है जो कि बीते पांच-छह आयोजन में अब तक कहीं नहीं दिखते थे जबकि सिविल सोसायटी यानी नागरिक सामाजिक संस्‍थाएं युवा पीढ़ी के साथ मिलकर जल सेतु बन सकती हैं। और हम ऐसे इंडिया वाटर वीक जैसे फलीभूत करने वाले आयोजन को धरातल तक ले जाने के लिए भविष्‍य में इसकी परिकल्‍पना गौतम बुद्ध नगर के एक्‍सपो सेंटर जैसे तकनीकी संपन्‍न स्‍थान के बजाय सूखा ग्रस्‍त क्षेत्र बुंदेलखंड जैसे शहर में आयोजित करने के लक्ष्‍य रखेंगे तो जल संस्‍कार की परंपराओं को समय रहते सींच पाएंगे।

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