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राष्ट्रपति भवन: यहां आकर आम भी बन जाता है खास, जिन दो सभागारों के बदले गए नाम; उनका इतिहास है बेहद दिलचस्प

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन के दो महत्वपूर्ण हॉलों का नाम बदलने का आदेश दिया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दरबार हॉल का नाम बदलकर गणतंत्र मंडप और अशोक हॉल का नाम बदलकर अशोक मंडपम रखा है। राष्ट्रपति भवन में देश के सभी बड़े राष्ट्रीय सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं इसके दोनों मंडपम का इतिहास...

By Jagran News Edited By: Sonu Suman Updated: Sat, 27 Jul 2024 05:27 PM (IST)
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राष्ट्रपति ने 25 जुलाई को ही राष्ट्रपति भवन के इन दोनों ऐतिहासिक सभागारों के नाम बदल दिए हैं।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जब आप राष्ट्रपति भवन को बाहर से देखते हैं तो एक काली गुंबद दिखती है, उसी का भीतरी हिस्सा जहां पड़ता है वो दरबार हॉल है। देश के सभी बड़े राष्ट्रीय सम्मान समारोह इसी हॉल में आयोजित होते हैं। इसी हॉल के साथ यहां भवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा यानी अशोक हॉल भी है। इन दोनों हॉल्स की बात आज इसलिए क्योंकि राष्ट्रपति ने 25 जुलाई को ही राष्ट्रपति भवन के इन दोनों ऐतिहासिक सभागारों के नाम बदल दिए हैं। 

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बड़ा फैसला लेते हुए राष्ट्रपति भवन की पहचान बन चुके दरबार हॉल और अशोक हॉल के नाम में बदलाव कर दिया है। अब दरबार हॉल को 'गणतंत्र मंडपम' और अशोक हॉल 'अशोक मंडपम' के नाम से जाना जाएगा। आज कहानी है इन्हीं दोनों मंडपों की, जहां पहुंचकर 'आम भी खास' हो जाता है।

सबसे पहले बात राष्ट्रपति भवन की

वो भवन जहां हमारे देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति रहते हैं उसे राष्ट्रपति भवन कहा जाता है। यह देश की राजधानी में 320 एकड़ में स्थित है। यहां 340 से अधिक कमरे हैं। दुनिया के बड़े और भव्य भवनों में से इसे एक कहा जाता है और इसके सबसे भव्य कमरों में से एक है दरबार हॉल जो अब है 'गणतंत्र मंडपम'।

कहानी दरबार हॉल यानी गणतंत्र मंडपम की

इस हॉल में प्रवेश करते ही सामने आप गौतम बुद्ध की मूर्ति देख रहे हैं। ये मथुरा में खोदाई से मिली थी। गुप्तकाल की चौथी पांचवीं ईसा की है। जब भी कोई राष्ट्रीय सम्मान समारोह होता है तो महामहिम राष्ट्रपति की कुर्सी यहां इन बुद्ध की मूर्ति के आगे ही मंच पर लगी होती है। 

राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर एक नंदी की मूर्ति भी है। बिहार के चंपारण में रामपुर एक जगह है, वहीं पर खोदाई से नंदी की ये मूर्ति मिली थी। इसीलिए इसका नाम रामपुरवा नंदी दिया गया। ये मूर्ति सम्राट अशोक काल की है। 

जयपुर कॉलम महाराज सवाई माधव सिंह से है जुड़ा

राष्ट्रपति भवन के इस द्वार से प्रवेश के पास कच्चे स्थान के समीप ही एक लंबा सा जयपुर कॉलम भी लगा है। इस कॉलम का इतिहास महाराज सवाई माधव सिंह से जुड़ा है। ये कॉलम भवन की दिशाओं को तो दर्शाता ही है, साथ ही इस पर नई दिल्ली की लुटियन के समय बनी योजना भी लगी है।

इसी जगह से आपको इंडिया गेट भी दिखता है। यहां ये बात इसलिए जाननी जरूरी है क्योंकि राष्ट्रपति भवन के जिस दरबार हॉल के बारे में आप यहां पढ़ रहे हैं, उसकी ऊंचाई इंडिया गेट के ऊपरी हिस्से के बराबर है।

यानी दरबार हॉल में जिस जगह बुद्ध के चरण हैं या जहां महामहिम की कुर्सी लगती है, उसका शीर्ष इंडिया गेट की ऊंचाई के समानांतर है। हम कह सकते हैं कि इस हॉल में खड़े होकर मानो हम इंडिया गेट के ऊपर खड़े हैं। 

जैसा कि आप सभी को ज्ञात है राष्ट्रपति भवन रायसीना की पहाड़ी पर बना है। वहीं इस हॉल के प्रवेशद्वार पर आप बीच में एक रेखा भी देखते हैं। ये विभाजित रेखा इस राष्ट्रपति भवन की केंद्रीय रेखा है। 

सिर्फ राष्ट्रपति भवन ही नहीं भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह रेखा कर्तव्यपथ से इंडिया गेट तक के हिस्से की केंद्रीय रेखा है। यानी इसे पूरी नई दिल्ली क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करने वाली रेखा के तौर पर भी देख सकते हैं।

...जब आम भी हो जाते हैं खास 

जहां नंदी है, वहीं राष्ट्रपति भवन में आने का मुख्य प्रवेश द्वार है। जब भी कोई विशेष समारोह का आयोजन होता है तो यहीं पर रेड कारपेट्स लगाए जाते हैं। जब कभी भी मान्य व्यक्ति और हमारे राष्ट्रीय प्रमुख विदेशी मेहमान आते हैं तो महामहिम भी यहीं इसी द्वार से रिसीव करके लेकर आती हैं। 

फ्रंट फोर्ट जो इस जगह का अग्रभाग है, वहां से 31 सीढियां इस गणतंत्र मंडपम (दरबार हॉल) के लिए ही बनी हैं। जी हां, ये 31 सीढ़ियों/कदमों का फासला आम हिंदुस्तानी को भी खास हिंदुस्तानी में तब्दील कर देता है। यहां 31 कदमों की दूरी तय करने के बाद आम आदमी न रहकर भारत का रत्न बन जाता है। फिर उसे भारतरत्न से सम्मानित किया जाता है। रत्न सम्मान, अर्जुन और द्रोणाचार्य सम्मान सभी विशेष हो जाते हैं। इस हॉल ने कई मार्मिक क्षण भी देखे हैं।

107 वर्षीय सालूमरदा धिमक्का को मिला था पद्मश्री

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द को 'वृक्ष माधे' नाम से मशहूर 107 वर्षीय सालूमरदा धिमक्का से आशीर्वाद मिला था, जब उन्होंने उन्हें कर्नाटक में हजारों पेड़ लगाने के लिए पद्मश्री सम्मान दिया था।

ये ही वो जगह है, जहां इसी साल जनवरी में देश के खिलाड़ियों का सम्मान हुआ। ऐसे जीवट खिलाड़ियों का जिन्होंने पैरालिंपिक में जीजिविषा से अलग कीर्तिमान गढ़े हैं। जम्मू कश्मीर से तीन पदक जीतने वाली शीतल जब अर्जुन पुरस्कार लेने पहुंचीं तो दरबार हॉल तालियों की तड़तड़ाहट से गूंज रहा था। 

राष्ट्रपति ने पैरा कैनोइंग खिलाड़ी को किया था पुरस्कृत

16 वर्षीय पैरा निशानेबाज के फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ स्थिति के कारण दोनों हाथ नहीं हैं और वह दोनों हाथ के बिना तीरंदाजी वाली पहली अंतरराष्ट्रीय पैरा तीरंदाज हैं। राष्ट्रपति ने इस दौरान शीतल के पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र को खुद पकड़ा हुआ था। राष्ट्रपति ने बाद में दरबार हॉल के मंच से उतरकर व्हीलचेयर पर बैठी पैरा कैनोइंग खिलाड़ी प्राची यादव को भी पुरस्कृत किया।

विशाल केंद्रीय गुंबद के नीचे स्थापित मुख्य हॉल 1947 में स्वतंत्र भारत की सरकार के शपथ समारोह जैसे ऐतिहासिक अवसरों का भी स्थल है। जब जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 1950 में इसी हॉल में राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। यह वह स्थान है जहां फरवरी 1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के समय उनका पार्थिव शरीर वहां रखा गया था।

मकराना से इटली तक का पत्थर, बेल्जियन कांच का झूमर

42 फीट ऊंची संगमरमर से बनी दीवारों वाला गोलाकार हॉल शानदार दिखता है। ब्रिटिश वास्तुकला के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर हसी ने 1953 में अपनी पुस्तक द लाइफ ऑफ सर एडविन लुटियंस में उल्लेख किया था। "दरकर की आभा, अद्‌भुत है। 

आप किसी अवसर यहां जाते हैं तो इसकी आभा में एक शांति महसूस करते हैं।" दरबार हॉल सफेद टोपी जैसे आकार वाले गोल आधारों के साथ पीले जैसलमेर संगमरमर के स्तंभों से घिरा हुआ है। अटारी में 12 संगमरमर की जालियां है जहां से हॉल में प्रकाश उम्मीद की किरणों की तरह प्रवाहित होता दिखता है। फर्श राजस्थान के मकराना और अलवर के सफेद संगमरमर से बना है, इसके बीच में गहरे चॉकलेटी रंग के संगमरमर का मिश्रण हैं।

पर्यटकों को भवन की भव्यता के बारे में विस्तार से बताने वाली पर्यटक गाइड रेखा बताती हैं कि ये गहरा चॉकलेटी रंग का पात्थर उस समय इटली से आयातित किया गया था। हॉल में प्रवेश करते ही आपकी नजर यहां लगे खास झूमर पर भी पड़ती है। इसका वजन सुनकर आप जरूर चौंक जाते हैं। इतने वर्षों बाद भी एक अलग ही नवीनी चमक लिए ये दो टन वजनी झूमर बेल्जियन कांच का बना हुआ है।

बात अशोक मंडपम की सुंदरता और आकर्षण की

अशोक मंडपम यानी राष्ट्रपति भवन का सबसे खूबसूरत कमरा। यहां सस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस हॉल को ओपन ज्वेल बॉक्स भी कहा जाता है। ब्रिटिश काल में यहां बॉल डांस होता थान इसीलिए इसका फोलौर पत्थर, मार्बल का नहीं बल्कि लकड़ी का बना हुआ है। इतना ही नहीं लकड़ी के इस फ्लोर के नीचे तीन फीट के स्प्रिंग भी लगे हुए हैं। अंग्रेजों के समय का यह फ्लोर आजतक बदला नहीं गया है। 

स्प्रिंग अब भी ऐसे ही है। फ्लोर पर पहुंचते ही आप भी कुछ उछाल जैसा महसूस कर सकते हैं। हॉल में प्रवेश करते ही दाईं तरफ आप तीन बालकनी देख सकते हैं। अंग्रेजों के समय में इस जगह से आर्केस्ट्रा प्ले किया जाता था और नीचे बॉल डांस होता था। अब इन तीन बालकनी में राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड खड़े होते हैं जो कि महामहिम के आगमन पर सचेत करते हुए उनके स्वागत की सूचना देते हैं।

अशोक मंडपम में ली जाती है राष्ट्रपति के साथ तस्वीर

अशोक मंडपम में अब छोटे समारोह का आयोजन होता है। दरबार हॉल के सम्मान समारोह के बाद प्रत्येक सम्मानित की राष्ट्रपति के साथ यहीं पर तस्वीर ली जाती है। इस हॉल में सबसे खास है इसकी छत जो इसे पूरे भवन में सबसे अलग बनाती है। क्योंकि इसकी छत में कैनवस पेंटिंग लगी हुई है, जिसमें ईरान के राजा की सफेद घोड़े पर तस्वीर है जो आपने 22 बेटी के साथ शिकार खेलने निकले हैं। 

इन पेंटिंग की खासियत है कि पूरे में हॉल में जहां भी देखें लगेगा राजा की आंख आपको ही देख रही है। पर्शिया के दूसरे राजा ने किंग जॉर्ज को भेंट में दी थी। जिसे लॉर्ड इरविन जो कि उस समय इंडिया के वायसरॉय हुआ करते थे के कहने पर लगाया गया। कुछ जगह आयल पेंटिंग भी लगी हुई है।

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