UPSC एस्पिरेंट को हुई द्वितीय विश्व युद्ध के समय की बीमारी, डॉक्टर ने बताई वजह, क्यों हुआ ऐसा
Pilonidal Sinus World War II Disease सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर एस्पिरेंट को यह बीमारी हुई है। इस बीमारी का नाम पाइलोनिडल साइनस है। यह बीमारी द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ करती थी। पॉयलोनिडल साइनस - एक दर्दनाक स्थिति जिसमें त्वचा के नीचे एक गुहा में टूटे हुए बालों के संग्रह के कारण टेलबोन के पास बार-बार मवाद बनने की समस्या हो जाती है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे 21 वर्षीय एक अभ्यर्थी को पाइलोनिडल साइनस नामक बीमारी का पता चला। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार पहचानी गई एक दर्दनाक स्थिति है। इसका उपचार सर गंगाराम अस्पताल में किया गया।
पॉयलोनिडल साइनस - एक दर्दनाक स्थिति, जिसमें त्वचा के नीचे एक गुहा में टूटे हुए बालों के संग्रह के कारण टेलबोन के पास बार-बार मवाद बनने की समस्या हो जाती है। इसे जीपर्स बाटम भी कहा जाता है। सर गंगाराम अस्पताल ने कहा, पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों में यह बीमारी पाई गई थी।
कुर्सियों पर घंटों बैठते
अस्पताल के लेप्रोस्कोपिक और लेजर सर्जरी विभाग के तरुण मित्तल ने कहा कि यह स्थिति संभवतः इसलिए विकसित हुई. क्योंकि छात्र लाइब्रेरी की कुर्सियों पर घंटों बैठकर पढ़ाई करता था। आखिरकार, उसे अपने नितंब की दरार में दर्दनाक सूजन का अनुभव होने लगा।उन्होंने कहा, मवाद का बहना बढ़ने और असहनीय दर्द के कारण स्थिति और खराब हो गई, जिसके कारण अंततः अभ्यर्थी को बिस्तर पर जाना पड़ा।
सर्जरी करने वाले डॉ. मित्तल ने कहा, हमने छात्र के लिए एक आदर्श समाधान के रूप में ईपीएसआइटी (एंडोस्कोपिक पिलोनिडल साइनस ट्रैक्ट एब्लेशन सर्जरी) को चुना ,ताकि वह जल्दी से ठीक हो सके और अपनी पढ़ाई पर वापस लौट सके।
30 मिनट की होती है सर्जरी
मित्तल ने कहा, सभी बाल और मलबे को हटाने के बाद, पूरे पथ को जलाने के लिए एक काटरी डाली जाती है और फिर पथ को ठीक करने के लिए एक ब्रश का उपयोग किया जाता है। गुहिका से सभी बालों और घाव को हटाने में लगभग 30 मिनट का समय लगा।
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उन्होंने कहा, नवीनतम न्यूनतम इनवेसिव एंडोस्कोपिक तकनीक ने मरीज की रिकवरी और आराम में क्रांति ला दी है, जिससे मरीज आपरेशन के तुरंत बाद चलने में सक्षम हो जाते हैं।
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