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आपके फेफड़ों को जाम कर रहा गाड़ियों से निकलने वाला काला धुआं, NCR में Bottleneck है ट्रैफिक का बड़ा कारण

एनसीआर में वायु प्रदूषण के बड़े कारकों में से वाहनों का ईंधन और उसके जलने से निकलने वाली जहरीली गैसे हैं। सड़कों पर वाहनों का अधिक दबाव और चौड़ी सड़कों का किसी स्थान पर अचानक पतला हो जाना यानी बाटलनेक बन जाना यहां जाम की प्रमुख वजह हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सड़कों पर बने बाटलनेक दूर करने की दिशा में कोई गंभीरता क्यों नहीं दिखाई देती?

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariPublished: Wed, 25 Oct 2023 01:13 PM (IST)Updated: Wed, 25 Oct 2023 01:13 PM (IST)
आपके फेफड़ों को जाम कर रहा गाड़ियों से निकलने वाला काला धुआं

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आपके फेफड़े कितने काले पड़ चुके हैं, आपने गौर किया है? नहीं न, जिस दिन जांच करा लेंगे। आपको अपनी सेहत और कितना प्रदूषण बिन बताए, बगैर दिखे आपके भीतर जा रहा है उसका एहसास हो जाएगा।

एनसीआर में वायु प्रदूषण के बड़े कारकों में से वाहनों का ईंधन और उसके जलने से निकलने वाली जहरीली गैसे हैं। सड़कों पर वाहनों का अधिक दबाव और चौड़ी सड़कों का किसी स्थान पर अचानक पतला हो जाना यानी बाटलनेक बन जाना यहां यातायात जाम की प्रमुख वजह हैं।

ट्रैफिक पुलिस कई बार कर चुकी है समस्या की पहचान

जाम में फंसने पर वाहनों का ईंधन अधिक जलता है, जिससे वाहनों से निकलने वाली गैसें वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ा देती हैं।

दिल्ली में ही कई बार यातायात पुलिस ऐसे बाटलनेक की पहचान कर चुकी है और दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को ये बाटलनेक दूर करने को लिख चुकी है, लेकिन निराशाजनक यह है कि इस दिशा में अब तक कोई प्रभावी कार्य नहीं हो सका।

ऐसे में सवाल यही उठता है कि एनसीआर में सड़कों पर बने बाटलनेक दूर करने की दिशा में कोई गंभीरता क्यों नहीं दिखाई देती? आखिर इसके लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? एनसीआर में सड़कों पर बने बाटलनेक दूर करने और वाहनों को आवागमन सुचारु बनाने के लिए आखिर क्या किए जाने चाहिए ठोस उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है। 

इस विषय पर हमने अपने पाठकों से "क्या एनसीआर में सड़कों पर बाटलनेक को दूर कर वायु प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है?" सवाल किया। इसके जवाब में 97 प्रतिशत लोगों ने हां में जवाब दिया जबकि तीन प्रतिशत लोगों ने कहा कि एनसीआर में सड़कों पर बाटलनेक को दूर कर वायु प्रदूषण के स्तर में कमी 'नहीं' लाई जा सकती है।

इसके अलावा एक अन्य सवाल "क्या एनसीआर में सड़कों पर बाटलनेक दूर न कर पाने के लिए संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए?" पूछा। इस पर 91 पाठकों ने हां में जवाब दिया जबकि नौ प्रतिशत लोगों ने असहमति जताते हुए नहीं में जवाब दिया।

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वाहनों का रेला, बीमारियों का झमेला

कार्बन मोनोआक्साइड : हृदय संबंधी रोग, सिरदर्द, थकान, मानसिक बीमारियां।

नाइट्रोजन आक्साइड : फेफड़ा संबंधी बीमारी, आंख, नाक व गले से संबंधित बीमारी।

सल्फर डाई आक्साइड : फेफड़े को नुकसान।

पार्टिकुलेट मैटर : रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, यकृत व किडनी को नुकसान, तनाव, बच्चों के मानसिक विकास में बाधा।

प्रदूषण बढ़ने से वातावरण में मुख्य रूप से पीएम 10, पीएम 2.5, सल्फर आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड बढ़ जाते हैं। प्रदूषण शरीर के सभी प्रदूषण अंगों को प्रभावित करता है।

पीएम 10 का दुष्प्रभाव 

एलर्जी, खांसी जुमाम, सांस की नली में सिकुड़न, फेफड़े में सूजन, अस्थमा, सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), ब्रोंकाइटिस इत्यादि का करण बनता है।

पीएम 2.5 का दुष्प्रभाव 

पीएम 10 की तुलना में पीएम 2.5 स्वास्थ्य के लिए ज्यादा घातक। हाल ही में एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वातावरण में पीएम 2.5 का स्तर मानक से थोड़ा बढ़ने पर भी इमरजेंसी में सांस के मरीज 20% बढ़ जाते हैं।

यह फेफड़े के साथ-साथ दिल, तंत्रिका तंत्र व मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचता है। इसके वजह से सांस की बीमारियों के अलावा ब्लड प्रेशर, धमनियों में ब्लाकेज, हार्ट अटैक व हृदय खराब होने की बीमारी का भी कारण बनता है। कई अध्ययनों में हार्ट अटैक के करीब एक तिहाई मामलों व स्ट्रोक के चौथाई मामलों का कारण प्रदूषण बताया गया है।

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड 

सांस के जरिये ये जहरीली गैसें शरीर में प्रवेश करने से सांस की नली व फेफड़े में सूजन होती है। इससे अस्थमा और सीओपीडी की बीमारी होती है। हाल ही में एम्स द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि पीएम 2.5 की तुलना में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सांस की बीमारी का बड़ा कारण बनता है।

वातावरण में इसका स्तर मानक से एक अंक भी बढ़ने पर इमरजेंसी में 53% मरीज बढ़ जाते हैं। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत वाहनों का धुआं है।

सल्फर ऑक्साइड 

फेफड़े को सीधे प्रभावित करता है। इस वजह से यह भी सांस की बीमारियों व अस्थमा का कारण बनता है। इसके दीर्घकालिक दुष्प्रभाव से फेफड़े के कैंसर व कई अन्य तरह का कैंसर भी होता है। डीजल से चलने वाले वाहनों का धुआं इसका सबसे बड़ा स्रोत है।

गठिया 

वातावरण में प्रदूषण बढ़ने पर प्रदूषक तत्व सांस के जरिये फफड़े से होते हुए धमनियों में पहुंचता है। ब्लड में पहुंचने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है।

एम्स द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि प्रदूषण के दुष्प्रभाव से शरीर में इन्फ्लेमेटरी मार्कर (सूजन वाले कारक) बढ़ जाते हैं। इस वजह से गठिया और आटोइम्युन की बीमारियां भी होती हैं।

गर्भपात 

प्रदूषण का गर्भस्थ शिशु पर भी असर पड़ता है और उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है। प्रदूषण को गर्भपात का भी एक कारण माना जाता है।


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