वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मतदान प्रतिशत 60 था, जो निश्चित तौर पर काफी कम है। इससे पहले वर्ष 2014 में यह 65 प्रतिशत था और वर्ष 2009 में यह 52 प्रतिशत था। यानी 2014 के चुनाव में यह कुछ बढ़ा भी था, लेकिन फिर पिछले चुनाव में यह काफी कम हो गया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि एनसीआर में मतदान प्रतिशत कम रहने की क्या वजहें है और इसे बढ़ाने में कहां गतिरोध है। साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मतदान अधिकतम स्तर तक लाने के लिए ठोस उपाय क्या किए जाएं।
राजनीति का स्तर उठे तो खुद बढ़ेगा मतदान
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी कहते हैं कि मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई विषयों पर एक साथ जोर देना होगा। मतदाताओं को जागरूक करने के साथ-साथ राजनीति का स्तर भी ऊंचा करना होगा। ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े विषय हैं। यदि राजनीति का स्तर ऊंचा नहीं हुआ तो मतदाताओं को जागरूक करने का लाभ नहीं होगा। राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि जो लोग मतदान करते हैं, उन्हें लगता है कि मैंने अमूक नेता के पक्ष में मतदान क्यों किया था।
चुनाव जीतने के बाद पाला बदलते नेता
उनका कहना है कि चुनाव जीतने के बाद नेता पाला बदल लेते हैं। जिस पार्टी के विरोध में नेता चुनाव लड़ते हैं, जीतने के बाद उसी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं। जिस नेता की दिन-रात आलोचना करते हैं, कुर्सी पाने के लिए उसी को अपना नेता मान लेते हैं। देश के भीतर ऐसा लगातार हो रहा है। नेता सार्वजनिक रूप से यहां तक कहने से परहेज नहीं करते हैं कि राजनीति में सब कुछ चलता है। क्या सत्ता पाने के लिए विचारों को तिलांजलि देना राजनीति है? रातों-रात या कुछ पल में ही दल-बदल कर लेना या गठबंधन बना लेना राजनीति है?
हारने पर नेता बदल रहे पार्टी
उनका कहना है कि पांच साल या 10 साल तक एक नेता किसी पार्टी में रहकर सत्ता का स्वाद चखता है। जब उसे लगता है कि आगे चुनाव हार जाएंगे तो वह पार्टी बदल लेता है। फिर जिस पार्टी में एक दशक तक रहा, उसकी आलोचना करना शुरू कर देता है। इससे मतदाताओं का विश्वास नेताओं के ऊपर से कमजोर हुआ है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सुखद संकेत नहीं है।
राजनीति में सिद्धांत को ऊपर लाना होगा
उन्होंने कहा कि राजनीति में सिद्धांत को ऊपर लाना होगा। राष्ट्र को ध्यान में रखकर राजनीति करनी होगी, दल-बदल करने से पहले सोचना होगा जिसने मुझे मत दिया है, उसके मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ेगा। नेता एक पल में बदल जाते हैं लेकिन मतदाताओं को बदलने में बहुत समय लग जाता है। मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि नेता मतदाताओं की भावनाओं का सम्मान करें। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें।
कॉलेजों के विद्यार्थियों से संवाद करें
डॉ. कुरैशी का कहना है कि आवश्यकता है कि प्रशासन चुनाव के समय ही नहीं बल्कि पांचों साल बीच-बीच में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करें। स्कूलों से लेकर कॉलेजों के विद्यार्थियों से संवाद करें। उन्हें लोकतंत्र में मतदान कितना महत्वपूर्ण विषय है, उसके बारे में बताएं। अब चुनाव आने से कुछ महीने पहले जागरूकता कार्यक्रम के ऊपर जोर दिया जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं है।
उनका कहना है कि विद्यार्थियों से ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों से संवाद किया जाए। ऐसे मतदाताओं से संवाद किया जाए जो कभी मतदान करने निकलते ही नहीं हैं। उनसे कहा जाए यदि आपको उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप नोटा का प्रयोग करें। जो अच्छा उम्मीदवार दिखता है, उसके पक्ष में मतदान करें। जिस व्यवस्था में आप सांस लेते हैं, जिस व्यवस्था का आप दिन-रात अपनी तरक्की में उपयोग कर रहे हैं, उसी की मजबूती में अपनी भूमिका नहीं निभाना उचित नहीं है। यह अहसास उनके साथ संवाद करके ही कराया जा सकता है। मतदाता पाला-बदल करने वालों को हरा दें, आगे से नेता और दल दोनों रास्ते पर आ जाएंगे।
राजनीति में आदर्श स्थापित करना आवश्यक
उनका कहना है कि अंत में यही कहना चाहूंगा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए राजनीति में आदर्श स्थापित करना आवश्यक है। इसके माध्यम से ही मत प्रतिशत तेजी से बढ़ाया जा सकता है। मतदाता अपनी इच्छा से मतदान केंद्र पर पहुंचें, ऐसा माहौल तैयार करना होगा। यह माहौल राजनीतिक व्यवस्था को बेहतर बनाकर ही तैयार कर सकते हैं। राजनीतिक व्यवस्था की मजबूती के लिए आवश्यक है कि मौकापरस्त नेताओं को जगह न दी जाए। इससे दल के प्रति लोगों के मन में सम्मान का भाव पैदा होगा।
तोड़नी होगी उदासीन रवैये की बेड़ी
पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त एसके श्रीवास्तव का कहना है कि देश हमारा है, जनतंत्र हमारा है। इस जनतंत्र में वोट की ताकत सबसे बड़ी होती है। इस वोट की ताकत से हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य चुनते हैं। इसलिए मतदान करना 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। वोट नहीं देने का मतलब है कि अपने लोकतांत्रिक दायित्व से पीछे हट रहे हैं। इसलिए चुनाव को गंभीरता से लेकर हर मतदाता को उसमें हिस्सा लेना चाहिए। समस्या यह है कि दिल्ली में लोगों में मतदान के प्रति थोड़े उदासीनता का भाव होता है।
लोगों में थोड़ी उदासीनता का भाव
उनका कहना है कि इस वजह से दिल्ली में मतदान कम होता है। एनसीआर के शहरों में भी मतदान कम होने का भी यही कारण हो सकता है। यह समझने की जरूरत है कि जिस तरह अपने दैनिक कामकाज से समय निकालकर अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार धार्मिक स्थलों पर जाते हैं और सुख समृद्धि के लिए कामना करते हैं। इसी तरह संसद हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। यह चुनाव इस लोकतंत्र का पर्व है। इसी भांति इस जिम्मेदारी को भी पूरा करना चाहिए।
लोग घरों से जल्दी बाहर नहीं निकलते
उनका कहना है कि मैंने दिल्ली में नगर निगम के दो चुनाव कराए हैं। यहां लोगों में निराशा का भाव होता है। बहुत लोग यह सोचते हैं कि मतदान करने से क्या होगा। एक वोट कम भी पड़ जाए तो उससे क्या फर्क पड़ जाएगा। लोकसभा चुनावों में भी दिल्ली एनसीआर में मतदान कम होने का कारण यही उदासीन भाव हो सकता है। दिल्ली के चुनावों में यह देखा गया है कि बहुत लोग परिवार के साथ घूमने बाहर निकल जाते हैं। लोग घरों से मतदान के लिए जल्दी बाहर नहीं निलकते। क्योंकि वे मतदान के लिए भी लाइन में लगने को तैयार नहीं होते। यही वजह है कि अधिकृत व नियोजित कॉलोनियों में मतदान कम होता रहा है। कम मतदान होना निश्चित रूप से चिंता का विषय है।
चुनाव की प्रक्रिया को बहुत आसान किया
उनका कहना है कि चुनाव आयोग ने मतदान बढ़ाने के लिए चुनाव की प्रक्रिया को बहुत आसान कर दिया है। मतदाताओं को कई तरह की सुविधा दी जाती है। मतदाताओं को चुनाव से संबंधित सभी सेवाएं अब घर बैठे मोबाइल पर उपलब्ध हैं। मतदान से पहले बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) पर्ची भी घर पहुंचा देते हैं। ताकि मतदान केंद्र पर पहुंचकर पर्ची के लिए मतदाताओं को किसी तरह की परेशानी न हो। अब तो वोटर हेल्पलाइन एप से पर्ची भी डाउनलोड करने की सुविधा है। फिर भी मतदान केंद्र पर हेल्प डेस्क होती है, जहां पर्ची उपलब्ध कराई जाती है।
बुजुर्ग मतदाताओं को घर से मतदान की सुविधा
एसके श्रीवास्तव का कहना है कि इसके अलावा चुनाव आयोग ने बुजुर्ग मतदाताओं को घर से मतदान की सुविधा दी है। ताकि कोई भी मतदाता मतदान करने से नहीं छूटने पाए। मतदाता पहचान पत्र से पंजीकृत मोबाइल नंबर पर मैसेज भेजकर मतदान के लिए प्रेरित किया जाता है। मतदान के दिन भी रिमाइंडर भेजा जाता है। तमाम माध्यम अपनाए जा रहे हैं। यदि किसी कारण मतदाताओं में निराशा का भाव है तो इसके लिए भी नोटा का विकल्प है।
मतदान बढ़ाना सिर्फ आयोग की जिम्मेदारी नहीं
उनका कहना है कि मतदान कम होने के कारण ही स्कूल कॉलेजों में जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। ताकि युवा मतदाताओं को मतदान की शक्ति से अवगत कराकर उन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया जा सके। इसके पीछे सोच यह होता है कि यदि युवा जागरूक होंगे तो वे माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों को भी मतदान के लिए प्रेरित करेंगे। मतदान बढ़ाना सिर्फ आयोग की जिम्मेदारी नहीं है। चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों की भी जिम्मेदारी है कि वे मतदाताओं को मतदान के लिए घर से निकलने के लिए प्रेरित करें।वे कहते हैं कि आरडब्ल्यूए को भी अपने-अपने सोसायटियों व मोहल्ले में लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। दूर दराज के इलाकों की तरह यहां लोग सभाएं कर मतदान पर चर्चा नहीं करते। दूर दराज के इलाकों में लोग आस पड़ोस के लोगों से पूछते हैं कि आपने मतदान किया या नहीं। ऐसा चलन एनसीआर के शहरी क्षेत्रों में नहीं है। राजनीति और लोकतंत्र का पावर ईवीएम से ही निकलता है। अंत में यही मतदान बहुत बड़ी ताकत है इसे हर मतदाता को समझने की जरूरत है।
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