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Water Crisis: ब्रिटिश हुकूमत से आज तक नहीं सुधरा दिल्ली का हाल, बूंद-बूंद को तरसते हैं लोग, खास है रिपोर्ट

Water Problem दिल्ली में कई वंशों का शासन रहा और सभी ने पानी के लिए प्रबंध भी किए। लेकिन दिल्ली में आज तक पानी की समस्या को लेकर समधान नहीं हो सका। दिल्ली में पानी की वजह से खूब हाहाकार मचा हुआ है। लोग बूंद-बूंद को तरसते हैं लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। आइए आज हम आपको ब्रिटिश हुकूमत से आज तक की कहानी से रूबरू कराएंगे।

By Jagran News Edited By: Jagran News NetworkUpdated: Sat, 22 Jun 2024 08:00 PM (IST)
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दिल्ली में ब्रिटिश हुकूमत से आज तक पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ। (जागरण फोटो)

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कभी सरोवर, बावली, कुओं और नहरों की धनी दिल्ली आज अपनी जरूरत के 90 पतिशत पानी के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर है। क्योंकि जल स्रोतों से हमारा मोह टूट गया, पानी की धारा का भी साथ छूटता गया। यमुना मैया दयनीय अवस्था में हैं।

उनकी रगों मकी शिथिलता टूटे इसके बयानी प्रयास कभी हकीकत नहीं हो सके। अब पूरे वर्ष दिल्ली पानी को तरसती है। कभी यही राजधानी अपने पानी की समृद्धि पर प्रफुल्लित होती थी। दिल्ली नीर इतिहास की इसी कहानी से आज सबरंग के अंक में रूबरू करा रहे हैं संतोष कुमार सिंह-

दिल्ली में कई वंशों का शासन रहा। सभी ने अपने स्तर पर यहां पानी का प्रबंध किया। प्राचीन और मध्य कालीन युग में नदी के साथ ही बावली, तालाब, कुओं, नहर व बांध के माध्यम से लोगों को पानी उपलब्ध कराया जाता था।

दक्षिणी दिल्ली सहित कई स्थानों पर इसके अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। हरियाणा की सीमा में स्थित सूरजकुंड के पास वर्ष 1020 में तोमर वंश के अनंगपाल ने दिल्ली बसाई थी।

सूर्य मंदिर और उसके नजदीक स्थित तालाब के कारण इस स्थान का नाम सूरजकुंड पड़ा। इसका निर्माण अरावली पर्वत से बहकर आने वाले वर्षा के पानी को संग्रहित करने के लिए किया गया था।

इससे पानी की जरूरत पूरी होती थी। इसके नजदीक ही अनंगपुर बांध का निर्माण हुआ था। इसी वंश के राजाओं ने बड़खल झील बनवाई। महरौली के पास अनंगताल का निर्माण किया गया था।

हौज-ए-सुल्तानी से मिलता था दिल्लीवालों को पानी

मुस्लिम शासनकाल की पहली राजधानी वर्ष 1052 में किला राय पिथौरा (महरौली) में बनी थी। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण लगभग 18 किलोमीटर दूर यमुना से यहां पानी लाने में परेशानी थी। वर्षा के पानी का संग्रह करना ही एक मात्र विकल्प था।

सुल्तान अल्तुतमिश ने इसके लिए 200 मीटर लंबे और 100 मीटर लंबे हौज-ए-सुल्तानी (हौज-ए-अल्तुतमिश) सरोवर का निर्माण किया था। वर्षा का पानी इस सरोवर में पहुंच सके इसके लिए नालियां बनाई गईं थीं।

अलाउद्दीन खिलजी और फिरोजशाह तुगलक के शासन के दौर में सरोवर व इसकी नालियों की मरम्मत की गई थी। इस ऐतिहासिक सरोवर के बड़े हिस्से पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1303 में 24.29 हेक्टेयर क्षेत्र में हौज-ए-अलाई नाम से विशाल सरोवर बनवाया था। बाद में इसका नाम बदलकर हौजखास हो गया।

नौलवी नाले से तुगलकाबाद में पहुंचता था पानी

गियासुद्दीन ने तुगलकाबाद को बसाया था। पहाड़ी पर स्थित तुगलकाबाद किले में सात तालाब और तीन बड़ी बावलियों के अवशेष बचे हुए हैं। कई कुएं भी इस किले में थे। महरौली के निकट स्थित हौज-ए-शम्शी के पानी को नौलावी नाले के माध्यम से तुगलकाबाद तक लाया जाता था। अब यह गंदे नाले में बदल गया है। इससे गंदा पानी आगरा नहर में जाकर मिलता है।

जल संसाधन तकनीक का उदाहरण था सतपुला

मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा जहांपनाह नगर बसाने के साथ ही इसके आसपास कृषि भूमि की सिंचाई के लिए सतपुला (सात पुलों वाला) बांध का निर्माण कराया था। दो मंजिला यह बांध जल संसाधन तकनीक का नायाब उदाहरण है। इसमें वैज्ञानिक सिद्धांत को लागू किया गया था। मौजूद समय साकेत के पास 64.96 मीटर ऊंचा सतपुला बांध बनाया गया था।

इसके सभी सात पुलों पर फाटक लगाए गए थे जिसके माध्यम से कृत्रिम झील में पानी पहुंचाया जाता था। बांध के दोनों ओर निगरानी मीनार बनाए गए थे। बांध की पहली मंजिल पर जल भंडारण की व्यवस्था थी। पानी खतरे के निशान से ऊपर पहुंचने पर बांध की दूसरी मंजिल पर लगे फाटक खोले जाते थे।

शाहजहां के शासन में जल आपूर्ति की थी बेहतर व्यवस्था

मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में अरावली पहाड़ी और उसकी तराई की जगह यमुना किनारे नगर बसाया। अपनी राजधानी की पानी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए उसने विशेष व्यवस्था की थी। शाहजहानी नहरों और दीघियों (पानी के टैंक) वाली जल व्यवस्था की गई थी। लाल किला का निर्माण (1639-48) और शाहजहांनाबाद शहर बसाने के काम के साथ ही जल व्यवस्था के लिए भी काम शुरू कर दिया गया था। यमुना के पानी को लाल किले के अंदर तक पहुंचाया गया था।

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अली मर्दन नहर से दिल्ली के बड़े क्षेत्र को मिलता था पानी

शाहजहां के प्रमुख प्रशासक अली मर्दन खां ने उस काल में जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शाहजहां की इच्छानुसार उसने फारसी कारीगरों के साथ मिलकर यमुना का पानी लाल किला में पहुंचाने के साथ ही इसे पुरानी नहर से भी जोड़ा।

मुगल शासन से पहले ही फिरोजशाह तुगलक ने करनाल से हिसार तक नहर का निर्माण कर दिया था (बाद में यह पश्चिमी यमुना नहर के रूप में विकसित हुई)। अकबर के शासनकाल में इस नहर की मरम्मत हुई थी। बाद में नहर में गाद व मिट्टी भर गई। अली मर्दन ने इस नहर की सफाई और मरम्मत कराई थी।

उसने साहिबी नदी (अब के नजफगढ़ ड्रेन) से पानी लाकर इस पुरानी नहर में डालने के लिए एक नई नहर बनाई जिसे अली मर्दन नहर कहा जाता था। यह नहर दिल्ली में लगभग 20 किलोमीटर के क्षेत्र से होकर बहती थी, जिससे सिंचाई व अन्य कार्य होता था। इस नहर पर पुलबंगश सहित कई छोटे बड़े पुल बने हुए थे। शहर में इसकी तीन शाखाएं थीं।

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एक शाखा लाल किला में जाती थी। अन्य दो हिस्सों से शाहजहांनाबाद के अलग-अलग हिस्सों को पानी मिलता था। यह नहर कब सूखी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है, परंतु वर्ष 1820 के आसपास अंग्रेजों ने इसका मरम्मत कराया था। वर्ष 1890 तक चांदनी चौक में इससे पानी आना बंद हो गया था। एनशियंट कैनाल्स में कोल्विन ने लिखा है कि इस नहर को तैयार कराने वालों को इससे बहुत लाभ हुआ होगा। अंग्रजों ने इसकी मरम्मत भी कराई थी।

गालिब की शायरी में दिल्ली के पानी की चिंता

मुगलकाल और अंग्रेजी शासनकाल में लोगों के घरों व मोहल्लों में दीघी व कुओं से पानी की जरूरत पूरी होती थी। दीघी वर्गाकार या गोलाकार होती थी जिसमें अंदर जाने के लिए सीढियां बनी होती थीं। इसका आकार 0.38 मीटर लंबा व चौड़ा होता था। इससे लोग पेयजल लेते थे। इसकी सुरक्षा के लिए फाटक लगे रहते थे।

नहर से इसमें पानी पहुंचता था। नहर में पानी नहीं आने पर दीघियां भी सूख जाती थीं और उस समय कुआं ही एक मात्र सहारा रहता था। 1843 में सिर्फ शाहजहांनाबाद में 607 कुएं थे जिसमें से 50 से अधिक में मीठा पानी था। वर्ष 1860 तक यहां एक हजार कुएं होने के प्रमाण मिलते हैं। वर्ष 1867 में शहर के तीन चौथाई कुओं का पानी खारा हो गया।

उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने 1860-61 में एक खत में लिखा कि "कारी का कुंआ सूख चुका है। लाल डिग्गी में सभी कुएं अचानक पूरी तरह से खारे हो गए हैं...अगर कुएं गायब हो गए और ताजा पानी मोती की मानिंद दुर्लभ हो जाएगा तो यह शहर कर्बला की तरह एक वीराने में बदल जाएगा।"

सुल्तानों ने कई बावलियों का निर्माण कराया

बड़े सरोवर के साथ ही सुल्तानों और अमीर लोगों ने दिल्ली में कई बावलियां बनवाई थीं। गंधक की बावली सुल्तान इल्तुतमिश के समय बनी थी। पानी में गंधक की मात्रा होने के चलते इसका यह नाम गंधक की बावली पड़ा। इसके नजदीक ही राजों की बावली, दरगाह काकी साहब की बावली, महावीर स्थल के पीछे स्थित गुफानुमा बावली जैसी अनेक बावलियों के भग्नावशेष मौजूद हैं।

उसी दौर में निजामुद्दीन बावली, फिरोजशाह कोटला स्थित बावली और वसंत विहार स्थित मुरादाबाद पहाड़ की बावली सहित कई अन्य बावलियों का निर्माण हुआ। इनमें से कई आज तक उपयोग में आ रही हैं। परंतु, उग्रसेन की बावली, पालम बावली और सुल्तानपुर बावली सूख चुकी हैं और इसके सिर्फ ढांचे खड़े हैं।

ब्रिटिश हुकूमत में सूख चुकी नहर को शुरू करने का प्रयास हुआ

सूख चुकी अली मर्दन नहर का अंग्रेजों ने 1817 में काम शुरू किया था। अंग्रेज़ रेजिडेंट चार्ल्स मेटकाफ ने औपचारिक रूप से चार साल बाद इस नहर का उद्घाटन किया। इस नहर का उद्देश्य शहरवासियों को पीने के लिए स्वच्छ पानी उलब्ध कराना था।

बताते हैं कि किसानों द्वारा अधिक उपयोग के कारण यह नहर आहिस्ता-आहिस्ता सूख गई। वर्ष 1846 में पीने के पानी के लिए एक बड़ा जलाशय बनाया गया लेकिन एक दशक के भीतर ही उसका पानी भी खारा हो गया।

जनसंख्या बढ़ने के साथ बिगड़ती गई स्थिति

अंग्रेजों द्वारा दिल्ली को राजधानी बनाने के पहले से यहां व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ने लगीं। जनसंख्या भी बढ़ी। पानी की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं थी। नहर सूख गई तो लोग कुओं पर आश्रित होने लगे। पानी की समस्या दूर करने के लिए वर्ष 1873 में अंग्रेजों ने ताजेवाला में यमुना पर तटबंध बनाया।

पुरानी नहर का भी जीर्णोद्धार किया गया। दिल्ली के दक्षिण के क्षेत्र अंग्रेजों द्वारा 1875 में यमुना नदी में ओखला से बनाए गए में आगरा नहर से पानी उपलब्ध कराया गया।

जनसंख्या बढ़ने के साथ पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। यमुना से नहर से दिल्ली पानी लाने व अन्य नहर बनाने पर ध्यान दिया गया परंतु प्राचीन सरोवर, बावली, कुओं के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया।

अधिक दोहन से घरों व मोहल्लों के कुएं या तो सूख गए या उसका पानी खारा होने लगा। बावलियों पर भी ध्यान नहीं दिया गया। गंदे नाले का पानी नहर व नदी में गिरने से पानी दूषित होने लगा। इस समस्या को दुरुस्त करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

पुराना है यमुना के पानी को लेकर विवाद

यमुना के पानी को लेकर विवाद वर्षों पुराना है। वर्ष 1954 में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच इसके पानी को लेकर समझौता हुआ था। हरियाणा के पानी में से ही दिल्ली को नहर के माध्यम से पानी मिलता था।

वर्ष 1993 में हरियाणा व दिल्ली के बीच समझौता हुआ जिससे मूनक से नई कैरियर लाइन नहर बनाने पर सहमति बनी। वर्ष 1994 में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के बीच समझौता किया गया।

इसी समझौते और वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली को 1049 क्यूसेक पानी मिलता है। इससे दिल्ली की जरूरत पूरी नहीं हो रही है। पुराने जल स्रोत भी नष्ट हो गए हैं। यमुना में प्रदूषण, अत्यधिक भूजल दोहन, जल आपूर्ति में कुप्रबंधन से स्थिति और खराब हो रही है। अपने पुराने जल स्रोत को पुनर्विकसित जल वितरण प्रणाली में सुधार की जगह दिल्ली सरकार यह आरोप लगाती है कि हरियाणा से समझौते के अनुसार कम पानी मिल रहा है।

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