उत्तर भारत में गर्मी खत्म, उमस भी कम होने लगी; अगस्त में बनी इस असामान्य स्थिति पर क्या बोले मौसम विज्ञानी
कुछ दिन पहले तक उमस भरी गर्मी में पसीने से बेहाल हो रहे उत्तर भारत के निवासी अब मौसम में बदलाव महसूस कर रहे हैं। धूप की चुभन कुछ कम हुई है तो उमस के बीच पसीना भी उतना नहीं आ रहा। सुबह व शाम चल रही हवा तो खासतौर पर एक अलग ही अहसास करा रही है। मौसम विज्ञानी भी इस स्थिति को असामान्य करार ही दे रहे हैं।
कई राज्यों को अच्छी बारिश का इंतजार
मौसम विज्ञानी बताते हैं कि पहले से ही इसके संकेत मिल गए थे कि अगस्त में मानसून कमजोर पड़ सकता है और वही हो भी रहा है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों को छोड़ दें तो करीब 20-22 दिन से दिल्ली ही नहीं, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में भी अच्छी बरसात का इंतजार ही हो रहा है।हवाएं चलना भी हुईं शुरू
सितंबर में भी अच्छी बारिश का नहीं कह सकते
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अभी अगले एक सप्ताह तक झमाझम वर्षा की कोई संभावना नहीं है। अगस्त के बाद सितंबर में भी फिलहाल अच्छी वर्षा के पूर्वानुमान पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मौसम विज्ञानियों का यह भी कहना है कि उत्तर भारत में गर्मी का चरम अब बीत चुका है।अब नहीं पड़ेगी उतनी गर्मी
एक सप्ताह के दौरान दिल्ली में दर्ज किया गया उमस का स्तर (प्रतिशत में)
तिथि अधिकतम न्यूनतम 21 अगस्त 88 5322 अगस्त 80 6323 अगस्त 98 7524 अगस्त 97 6425 अगस्त 81 5526 अगस्त 82 51 27 अगस्त 71 52मौसम में जो बदलाव फिलहाल देखने को मिल रहा है, वह सामान्य तो नहीं ही कहा जा सकता। इससे पहले 2002 में अगस्त के दौरान मानसून इतने लंबे ब्रेक पर रहा था। ऐसे में यह बदलाव अभी बना रह सकता है। हाल फिलहाल इस स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं होगा। -महेश पलावत, उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन), स्काईमेट वेदर।
मौसमी बीमारियां तापमान एवं वातावरण में नमी की मौजूदगी पर निर्भर करती हैं। ऐसे में तापमान और नमी का स्तर घटने- बढ़ने से हर मौसम में बीमारियों का स्वरूप भी बदलता रहता है। उमस अधिक होने पर त्वचा से संबंधित परेशानियां व फंगल संक्रमण की समस्या अधिक होती है। इसके अलावा उमस में ज्यादा पसीना आने से डिहाइड्रेशन की परेशानी भी होती है। मौसम में नमी कम होने पर त्वचा से संबंधित परेशानी एवं फंगल संक्रमण कम हो जाता है। लेकिन यह देखा गया है कि सितंबर व अक्टूबर में मच्छर जनित बीमारियां अधिक होती हैं। -डॉ. जुगल किशोर, निदेशक प्रोफेसर, प्रिवेंटिव कम्युनिटी मेडिसिन, सफदरजंग अस्पताल।