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Air Pollution: दिल्ली में क्यों 'जहरीली' हो जाती है हवा? सर्दी में वायु प्रदूषण बढ़ने की वजह आई सामने

दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर है। सर्दियों में होने वाले प्रदूषण के लिए स्थानीय कारक जिम्मेदार होते हैं जबकि जून और अक्टूबर में ये प्रदूषण बाहरी कारकों से होता है। आईआईटी दिल्ली के एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि दिल्ली के बाहर के स्रोतों से होने वाले प्रदूषण का योगदान 65-75 प्रतिशत तक है। प्रदूषण कम करने के लिए समग्र योजना बनाने की जरूरत है।

By uday jagtap Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Tue, 05 Nov 2024 08:25 AM (IST)
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दिल्ली के कर्तव्य पथ का नजारा। फाइल फोटो- जागरण
उदय जगताप, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में सर्दियों में होने वाले अत्यधिक प्रदूषण के लिए स्थानीय कारक जिम्मेदार होते हैं, जबकि जून और अक्टूबर में ये प्रदूषण बाहरी कारकों से होता है। प्रत्येक वर्ष दिसंबर में होने वाले प्रदूषण के दौरान भी लगाए जाने वाले ग्रेप के नियमों का कड़ाई से पालन नहीं हो पाता है।

यूपी-बिहार, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी लागू हो ग्रेप

यही वजह है कि प्रदूषण कम नहीं हो पा रहा है। प्रदूषण को कम करना है तो ग्रेप जैसे नियम को पूरे इंडो-गैंजेटिक प्लेन, जिसमें आगरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, पटना, कोलकाता, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के जिले शामिल होते हैं, में लागू करना पड़ेगा, नहीं तो समस्या को हल करना मुश्किल होगा।

आईआईटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान अध्ययन केंद्र द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। शोध पत्र हाल ही में नीदरलैंड के एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शून्य आउट विधि से मापा गया प्रदूषण

दिल्ली के वायु प्रदूषण में दिल्ली के बाहर के स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के कुल योगदान की मात्रा निर्धारित करने के उद्देश्य से किए गए अध्ययन में शामिल शोध छात्र राहुल चौरसिया ने बताया कि राजधानी के बाहर से आने वाले प्रदूषकों को मापने के लिए शून्य आउट विधि का उपयोग किया गया है।

इसमें स्थानीय परिवहन, बाहरी लंबी दूरी के परिवहन और मानवजनित उर्त्सन का अध्ययन किया गया है, जिसमें पता चला कि जून में लंबी दूरी के परिवहन का प्रदूषण में औसत योगदान 65-75 प्रतिशत था।

तेज आंधी चलने से यह 85 प्रतिशत तक पहुंच गया। उन्होंने बताया कि अक्टूबर में फसल जलाने वाले स्रोतों से औसत कुल योगदान 42 से 59 प्रतिशत के बीच था, जिसमें अधिकतम योगदान 64 प्रतिशत तक पहुंचा था। प्रत्येक वर्ष दिसंबर के दौरान कुल वायु-प्रदूषण में लंबी दूरी के परिवहन का योगदान न्यूनतम पाया गया।

प्रदूषण रोकने के लिए बने समग्र योजना

वायुमंडलीय अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर और अध्ययन में शामिल प्रो. मंजू मोहन ने कहा कि राजधानी में प्रदूषण प्रतिबंधों के सहारे दूर नहीं किया जा सकता। ग्रेप एक, दो और तीन के नियम लागू होते हैं, लेकिन असरदार नहीं है।

इसलिए जरूरी है कि इंडो-गैंजेटिक प्लेन जिसमें आगरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, पटना, कोलकाता, चंडीगढ़, पंजाब के अन्य इलाके व हरियाणा और राजस्थान के जिले शामिल होते हैं, वहां ग्रेप जैसे नियम लागू किए जाएं। 172 मिलियन एकड़ का पूरा इलाका वायुमंडल में प्रदूषण फैलाने के लिए समान रूप से जिम्मेदार है। एक समग्र योजना बनाने की जरूरत है।

समान नीति बनेगी तो दिखेगा असर

सरकार ने नेशनल ग्रीन एक्ट प्रोग्राम बनाया है। इससे प्रदूषण को कम करने में बहुत कम असर हुआ है, जब सभी इलाकों के लिए समान नीति बनेगी तो उसका असर दिखाई देगा। इंडो-गैंजेटिक प्लेन में हरियाली कम हो रही है। औद्योगीकरण बढ़ा है, जो नियमों के मुताबिक काम नहीं कर रहा है। यहां थर्मल पावर प्लांट हैं, जो प्रदूषण फैलाने में अहम होते हैं।

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