Shraddha Murder: आफताब का होगा पॉलीग्राफी व नार्को टेस्ट, जाने- दोनों में अंतर और जांच के लिए कौन है अधिक सटीक
Shraddha Murder Case नार्कों टेस्ट के दौरान दौरान अर्धमूर्छित आरोपित से जांच टीम अपने पैटर्न पर सवाल पूछकर सच्चाई का पता लगाने का प्रयास करती है। इसके लिए आरोपित का पूर्ण रूप से स्वस्थ होना भी जरूरी है।
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। मुंबई की युवती श्रद्धा हत्याकांड की तह तक जाने के लिए दिल्ली पुलिस अब आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट से कराने से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट करवाएगी। जहां एक ओर नार्को टेस्ट के लिए अनुमति मिल चुकी है तो पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए साकेत कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
नार्को टेस्ट के लिए ये है कानूनी पहलू
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के मुताबिक एक आरोपित का नार्को-एनालिसिस और पालीग्राफ टेस्ट अवैध है। हालांकि, कोर्ट ने आपराधिक मामलों में आरोपित की सहमति और कुछ सुरक्षा उपायों के साथ इसकी अनुमति कई मामलों में दी है। इसकी अनुमति पाने के लिए जांच एजेंसी के पास टेस्ट के कानूनी, भावनात्मक या शारीरिक निहितार्थ होने चाहिए।
इस संबंध में मजिस्ट्रेट के समक्ष संबंधित जांच एजेंसी को मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने दावों से जुड़े साक्ष्य भी प्रस्तुत करने होते हैं। कोर्ट मानता है कि अनुच्छेद 20 (3) मुताबिक एक अभियुक्त को कभी भी अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, नार्को एनालिसिस की सटीकता 100 फीसदी नहीं होती है।
कैसे होता है नार्को एनालिसिस टेस्ट?
नार्को एनालिसिस टेस्ट में आरोपित से अर्द्ध बेहोशी की हालत में पूछताछ कर सच्चाई का पता लगाया जाता है। इसमें शख्स को ट्रुथ ड्रग नाम से आने वाली एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है। खून में ये दवा पहुंचते ही आरोपित अर्धचेतन अवस्था में पहुंचता है। हालांकि, कई मामलों में सोडियम पेंटाथोल का इंजेक्शन भी दिया जाता है। जांच के दौरान मौके पर फोरेंसिक एक्सपर्ट, मनोविज्ञानी और डाक्टर मौजूद रहते हैं।
यह होता है पालीग्राफ टेस्ट
पालीग्राफ टेस्ट में आरोपित के शरीर में कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड जैसे अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाते हैं। इन उपकरणों के माध्यम से रक्तचाप, शरीर में कंपन, श्वसन, पसीने की मात्रा में परिवर्तन और रक्त प्रवाह आदि को मापा जाता है। जब अपराध से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं तब झूठ बोलने पर शरीर के कुछ अंगो में अलग तरह का कंपन व संचार पैदा होता है। इसी आधार पर मूल्यांकन कर आरोपित को बताया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है। इसके लिए उससे फिर कई तरह के अलग अलग सवाल पूछे जाते हैं। यह प्रक्रिया इस धारणा पर आधारित है कि जब आरोपित झूठ बोलता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं किसी सामान्य स्थिति में उत्पन्न होने वाली शारीरिक प्रतिक्रियाओं से अलग होती है।