देश का पहला स्माग टावर कौन? विवाद गहराया, दिल्ली सरकार के दावे को CPCB ने नकारा
Smog Tower Controversy केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक में मुददा उठा कि आनंद विहार में सीपीसीबी द्वारा लगाया गया स्माग टावर देश का पहला ऐसा टावर है जबकि डीपीसीसी कनाट प्लेस के स्माग टावर को देश का पहला बता रही है।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Wed, 03 Nov 2021 08:04 AM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 194वीं बोर्ड बैठक में मंगलवार को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) से जुड़े मुददे हावी रहे। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और कामन इफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) के जरिये जल प्रदूषण की रोकथाम में नाकाम रहने की वजह से तो डीपीसीसी सवालों के घेरे में रही ही, आनंद विहार और कनाट प्लेस के स्माग टावर में से देश का पहला कौन सा, इस पर भी बहस हुई।
अपराहन तीन बजे से शुरू होकर शाम साढ़े छह बजे तक चली मैराथन बैठक में सीपीसीबी चैयरमेन तन्मय कुमार और सदस्य सचिव डा. प्रशांत गार्गवा के अलावा तीन सदस्य वहां सीपीसीबी कार्यालय में मौजूद रहे वहीं शेष वीडियो कांफ्रेंस से जुड़े। बैठक में मुददा उठा कि आनंद विहार में सीपीसीबी द्वारा लगाया गया स्माग टावर देश का पहला ऐसा टावर है जबकि डीपीसीसी कनाट प्लेस के स्माग टावर को देश का पहला बता रही है।
इस पर डीपीसीसी को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। काफी चर्चा के तय किया गया कि आनंद विहार के स्माग टावर को देश का पहला आपरेशनल स्माग टावर माना जाएगा। डीपीसीसी का दावा गलत करार दिया गया। बैठक में यह भी सामने आया कि वायु प्रदूषण कम करने में इस टावर की क्षमता और असर का आकलन किया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट आने पर ही देश के अन्य हिस्सों में भी इसे लगाने के बारे में सोचा जाएगा।
बैठक में डीपीसीसी की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल खड़े हुए। बोर्ड के सदस्य और एसटीपी व सीईटीपी का मुददा उठाने वाले डा. अनिल गुप्ता ने कहा कि राजधानी में जल प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही जा रही है। डीपीसीसी की लापरवाही से ज्यादातर एसटीपी व सीईटीपी सुचारू ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। आलम यह है कि एसटीपी से रोजाना 3300 मिलियन लीटर प्रदूषित जल निकलता है जबकि जल बोर्ड शोधित 2200 मिलियन लीटर ही कर पा रहा है। 1100 मिलियन लीटर शोधित ही नहीं हो रहा।
डा. गुप्ता ने कहा कि डीपीसीसी एसटीपी और सीईटीपी की कार्यप्रणाली की निगरानी भी नियमों के अनुरूप नहीं कर रहा। हैरत की बात यह कि अपनी खामियां दूर करने के बजाए डीपीसीसी ने पिछले दिनों 1068 फैक्टि्रयों को भारी जुर्माना लगाते हुए बंद करने का नोटिस भेज दिया गया। इस पर बैठक में तय हुआ कि सीपीसीबी की एक टीम इस पूरे प्रकरण की गंभ्रीरता से जांच करेगी और एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी। इसके बाद इस पर डीपीसीसी से जवाब मांगा जाएगा।
गौैरतलब है कि सीबीसीबी की यह बैठक होनी तो हर तीन माह में चाहिए लेकिन इस बार करीब साढ़े पांच माह बाद हुई। पिछली बैठक 17 मई को हुई थी। बैठक के एजेंडे में सीपीसीबी से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं के शुल्क की समीक्षा, प्लास्टिक उत्पाद निर्माता-विक्रेता की लाइसेंस नवीनीकरण फीस, स्टाफ की वेतनवृद्धि और वर्दी के लोगो का मुददा भी रहा। सभी पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई।
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