Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Delhi Air Pollution: दिवाली से पहले ही 'जहरीली' हुई दिल्ली की हवा, हर तरफ छाई धुंध; कैसे मिलेगी राहत?

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हर साल दिवाली के आसपास पटाखों पर नियंत्रण लगाया जाता है।बावजूद इसके इन दिनों राजधानी की हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। पटाखामुक्त दिवाली और ग्रीन पटाखों को लेकर तस्वीर अभी तक भी पूरी तरह से साफ नहीं कही जा सकती है। दिवाली पर लंबे समय से पटाखे जलाए जा रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Thu, 02 Nov 2023 04:06 PM (IST)
Hero Image
Delhi Air Pollution: दिवाली से पहले ही 'जहरीली' हुई दिल्ली की हवा

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिवाली के आसपास वायु प्रदूषण गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। इसे देखते हुए वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हर साल दिवाली के आसपास पटाखों पर नियंत्रण लगाया जाता है।

बावजूद इसके इन दिनों राजधानी की हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। अभी तक की बात करें तो दिल्ली के पांच इलाकों नॉर्थ कैंपस, रोहिणी, मुंडका, आनंद विहार और न्यू मोती बाग का वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 का आंकड़ा पार कर गया है।

Also Read:

 

दिल्ली में कब तक रहेगा पटाखों पर प्रतिबंध?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक दिल्ली में एक जनवरी 2024 तक सभी तरह के पटाखों के निर्माण, भंडारण, बिक्री (आनलाइन मार्केटिंग प्लेटफार्म के जरिये डिलीवरी सहित) और पटाखों को जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया गया है।

डीपीसीसी ने इस आदेश का पालन कराने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस को सौंपते हुए नियमित एक्शन टेकन रिपोर्ट भी जमा कराने के लिए कहा है।

क्या है ग्रीन पटाखा?

सामान्य पटाखों से इतर ग्रीन पटाखों का कैमिकल फार्मूला ऐसा होता है कि इनसे पानी की बूंदे निकलती हैं। इससे प्रदूषण कम होता है और धूलकणों को भी पानी की बूंदें दबा देती हैं।

इनमें प्रदूषक तत्व नाइट्रस आक्साइड और सल्फर आक्साइड 30 से 35 प्रतिशत तक कम होते हैं। मुख्य तौर पर यह पटाखे लाइट एंड साउंड शो के जैसे हैं। इन्हें जलाने पर खुशबू भी आती है।

सामान्य पटाखों की तुलना में इन पटाखों में 50 से 60 प्रतिशत तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। ग्रीन पटाखों पर हरे रंग का स्टीकर और बारकोड लगे होते हैं।

हरे रंग वाले स्टिकर इस बात की पुष्टि करने के लिए हैं कि ये ग्रीन पटाखे हैं। यदि आप इन पटाखों के निर्माता और इनमें इस्तेमाल हुए केमिकल के बारे में जानना चाहते हैं तो इनके ऊपर लगें बारकोड को स्कैन कर सकते हैं।

जन जागरूकता के बगैर पटाखामुक्त दिवाली संभव नहीं

पटाखामुक्त दिवाली और ग्रीन पटाखों को लेकर तस्वीर अभी तक भी पूरी तरह से साफ नहीं कही जा सकती है। दिवाली पर लंबे समय से पटाखे जलाए जा रहे हैं, इन पर प्रतिबंध लगाना नामुमकिन नहीं तो बहुत आसान भी नहीं कहा जा सकता।

Also Read:

दूसरी अहम बात यह कि सामान्य पटाखों के विकल्प स्वरूप जिन ग्रीन पटाखों को लाने की बात पूर्व वर्षों में होती रही है, उन्हें लेकर भी जनता क्या, पटाखों के विक्रेता और निर्माता भी पूर्णतया जागरूक नहीं हैं। ग्रीन पटाखे क्या हरे रंग के होते हैं?

वह जलने पर सामान्य पटाखों से किस प्रकार अलग होंगे? क्या उनके दाम भी सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं? क्या ग्रीन पटाखों में भी वह सारी वैरायटी होगी जो सामान्य पटाखों में मिलती है? ऐसे और भी अनेक सवाल हैं जिनके जवाबों से अधिकांश लोग अनजान हैं। ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि इस साल भी दिल्ली में प्रदूषण रहित दिवाली मन पाएगी?

जहां तक चोरी- छिपे पुराने पटाखों की बिक्री का सवाल है तो इसके लिए सीधे तौर पर इनफोर्समेंट एजेंसियां जिम्मेदार हैं। पर्यावरण के प्रति लाभ-हानि से इतर पुलिस अपना लाभ देखती है और पटाखा निर्माता एवं विक्रेता अपना नफा नुकसान देखते रहते हैं। जनता तक पटाखे जलाने के क्रेज में दोगुने दाम देकर भी पटाखे खरीदने से गुरेज नहीं करती।

कहने का मतलब यही कि यदि दिवाली को अच्छे ढंग से मनाना है, इसे प्रदूषण और पटाखा रहित करना है तो इसके लिए छोटे से छोटे स्तर पर जन जागरूकता फैलानी होगी। जब तक हर किसी के मन में स्वयं से इस दिशा में संकल्प का भाव नहीं आएगा, मौजूदा तस्वीर बदलना मुश्किल है।

स्वास्थ्य पर कितना पड़ता है पटाखों के धुएं का असर

हमें यह भी विचार करना होगा कि रोशनी का त्योहार दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, अस्थमा और एलर्जी से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों काफी बढ़ जाती है।

पटाखों में मौजूद छोटे छोटे कण सेहत पर बहुत बुरा असर डालते हैं, जिसका असर सीधे फेफड़ों पर पड़ता है। पटाखों के धुएं से फेफड़ों में सूजन भी आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और कई बार हालात यहां तक पहुंच सकते हैं कि ऑर्गेन फेलियर और मौत तक हो सकती है।

दरअसल, समस्या यह है कि पटाखों से रंग-बिरंगी रोशनी निकले, इसके लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। यह पदार्थ एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं तो दूसरी ओर इनसे कैंसर होने तक की आशंका बनी रहती है। पटाखों के कारण हवा में प्रदूषण भी बढ़ जाता है।

धूल के कणों पर कापर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाते हैं। इन गैसों के हानिकारक प्रभाव होते हैं। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों तक में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकारक रसायन जानलेवा होते हैं।

ऐसे में मेरा सुझाव यही है कि पटाखों से होने वाले नुकसान को लेकर अधिकाधिक जन जागरूकता फैलाई जाए। जनता को अपना यह त्योहार मनाने के विकल्प दिए जाएं। मसलन, सामुदायिक स्तर पर लेजर शो का आयोजन किया जा सकता है।

इलेक्ट्रिक पटाखों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। और भी तमाम ऐसी तकनीकें हैं जिनके जरिए रोशनी के इस पर्व को सुरक्षित, पर्यावरण अनुकूल एवं पटाखारहित बनाया जा सकता है। यह जानकारी जागरण संवाददाता संजीव गुप्ता की सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी से बातचीत पर आधारित है।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर