दिल्ली-मुंबई सहित भारत के महानगरों में बढ़ती गर्मी की ये है वजह, यहां का बढ़ता पारा शरीर के लिए हो सकता है घातक
सीएसई की एक नई रिपोर्ट के अनुसार कंक्रीट के बढ़ते जाल और आर्द्रता का स्तर बढ़ने से भारत के महानगरों में गर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है जो एक दशक पहले की तरह रात में ठंडा नहीं हो रहा है। सीएसई ने जनवरी 2001 से अप्रैल 2024 तक छह महानगरों के लिए ग्रीष्मकालीन हवा के तापमान भूमि की सतह के तापमान और सापेक्ष आर्द्रता डेटा का विश्लेषण किया है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, कंक्रीट के बढ़ते जाल और आर्द्रता का स्तर बढ़ने से भारत के महानगरों में गर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है, जो एक दशक पहले की तरह रात में ठंडा नहीं हो रहा है। सीएसई ने जनवरी 2001 से अप्रैल 2024 तक छह महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई) के लिए ग्रीष्मकालीन हवा के तापमान, भूमि की सतह के तापमान और सापेक्ष आर्द्रता डेटा का विश्लेषण किया है।
सीएसई के थिंक टैंक ने पाया कि बढ़ी हुई आर्द्रता सभी जलवायु क्षेत्रों में गर्मी को बढ़ा रही है, यहां तक कि दिल्ली और हैदराबाद में हवा के तापमान में मामूली गिरावट को भी कम कर रही है। बेंगलुरु को छोड़कर, 2001-2010 के औसत की तुलना में 2014-2023 तक अन्य पांच महानगरों में ग्रीष्मकालीन औसत सापेक्ष आर्द्रता 5-10 प्रतिशत बढ़ गई है।
जमीन, दिन-रात के तापमान में बदलती आवृत्ति का आकलन करना जरूरी
सीएसई की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब भीषण गर्मी भारत के बड़े हिस्से में स्वास्थ्य और आजीविका को प्रभावित कर रही है। सीएसई में अनुसंधान और वकालत की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा, शहरी केंद्रों के लिए एक व्यापक ताप प्रबंधन योजना विकसित करने के लिए दिन और रात के तापमान के साथ-साथ गर्मी, सापेक्ष आर्द्रता और भूमि की सतह के तापमान में बदलती प्रवृत्ति का आकलन करना आवश्यक है।शरीर की इस प्रक्रिया करती है प्रभावित
सीएसई की अर्बन लैब के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी ने कहा कि उच्च गर्मी और आर्द्रता के संयोजन को समझना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मानव शरीर के मुख्य शीतल तंत्र, पसीने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। उन्होंने समझाया, त्वचा से पसीने का वाष्पीकरण हमारे शरीर को ठंडा करता है, लेकिन उच्च आर्द्रता का स्तर इस प्राकृतिक ठंडक को सीमित कर देता है।
घातक परिणाम आ सकते हैं सामने
परिणामस्वरूप, लोग गर्मी के तनाव और बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं और बहुत कम परिवेश के तापमान पर परिणाम घातक भी हो सकते हैं। अध्ययन से पता चला कि महानगरों में रात में ठंडक नहीं हो रही है। 2001-2010 की गर्मियों के दौरान भूमि की सतह का तापमान दिन के चरम से रात के न्यूनतम स्तर तक 6.20-13.20 डिग्री सेल्सियस तक गिरा है।सीएसई ने कहा कि पिछली 10 गर्मियों (2014-2023) में रात के समय ठंडक घटकर 6.20-11.50 डिग्री सेल्सियस हो गई है। सोमवंशी ने कहा, गर्म रातें दोपहर के चरम तापमान जितनी ही खतरनाक होती हैं। अगर रात भर तापमान अधिक रहता है तो लोगों को दिन की गर्मी से उबरने का मौका कम मिलता है।
उन्होंने कहा, ''द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ'' में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में अत्यधिक गर्म रातों से मौत का खतरा लगभग छह गुना बढ़ सकता है। यह भविष्यवाणी जलवायु परिवर्तन माडल द्वारा सुझाई गई दैनिक औसत वार्मिंग से होने वाली मृत्यु जोखिम से कहीं अधिक है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।