क्या दिल्ली में होगी कृत्रिम बारिश? केंद्र के साथ-साथ IIT Delhi भी नहीं दे रहा कोई जवाब; आस में आतिशी सरकार
क्या दिल्ली में कृत्रिम बारिश होगी? इस सवाल का जवाब न तो केंद्र सरकार दे रही है और न ही आईआईटी दिल्ली। दिल्ली सरकार इन दोनों से ही सहयोग मिलने का इंतजार कर रही है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखे हैं लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। आईआईटी कानपुर को भी कृत्रिम वर्षा कराने को लेकर एक विस्तृत प्रस्ताव भेजा गया था।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। प्रदूषण से जंग में इस बार भी दिल्ली में कृत्रिम वर्षा होने की संभावना नहीं के बराबर ही लग रही है। वजह, दिल्ली सरकार के अनुरोध पर केंद्र तो कोई कार्यवाही नहीं ही कर रहा है, इसका सुझाव देनेवाला आईआईटी कानपुर भी कोई जवाब नहीं दे रहा। आलम यह है कि सरकार इन दोनों से ही सहयोग मिलने का इंतजार कर रही है।
जानकारी के मुताबिक पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को अब तक तीन पत्र लिखे हैं। तीनों पत्रों में यही अनुरोध किया गया है कि एक्यूआई के 'गंभीर' या 'बहुत गंभीर' हो जाने की स्थिति में कृत्रिम वर्षा के जरिए हालात पर काबू पाया जा सके, इसके लिए सभी संबंधित विभागों की एक बैठक रखी जाए, लेकिन अभी तक यथास्थिति ही बनी हुई है।
आईआईटी कानपुर से कृत्रिम वर्षा कराने का प्रस्ताव
इसी कड़ी में पर्यावरण विभाग ने एक और कदम आगे बढ़ाते हुए पिछले महीने आईआईटी कानपुर से कृत्रिम वर्षा कराने को लेकर एक विस्तृत प्रस्ताव भेजने को कहा था, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा लगाई गई एक आरटीआई के जवाब में पर्यावरण विभाग ने स्वयं स्वीकार किया है कि डेढ़ माह बाद भी कोई प्रस्ताव नहीं मिला पर्यावरण विभाग का कहना है कि आईआईटी कानपुर को सात अक्टूबर को इस निमित्त पत्र लिखा गया था। तभी से उनके जवाब की प्रतीक्षा की जा रही है।क्लाउड सीडिंग का विस्तृत रूप से अध्ययन करने की आवश्यकता
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञ कृत्रिम वर्षा के उपाय को बहुत व्यावहारिक नहीं मानते। मशहूर पर्यावरणविद और सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि सिर्फ वर्षा से प्रदूषण खत्म नहीं होता। वर्षा के साथ हवा भी चलना बहुत जरूरी है। इसलिए कृत्रिम वर्षा बिल्कुल बेमानी है। उन्होंने यह कहा कि क्लाउड सीडिंग विज्ञान का विस्तृत रूप से अध्ययन करने की आवश्यकता है। यदि यह हवा के बिना होगी तो प्रदूषण घटने के बजाए बढ़ जाएगा। इसी तरह सीपीसीबी को भी 2018 में व्यावहारिक नहीं होने पर ही इस प्रस्ताव को रद्द करना पड़ गया था।
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