विश्व साइकिल दिवस : पदक विजेता साइकिलिस्ट रेहड़ी पर बेच रहा नारियल पानी
23 साल के जावेद की कहानी जिजीविषा से भरी है। उनका परिवार जगतपुरी में एक किराये के मकान में रहता है। परिवार में पिता सलीम अहमद और मां रेशमा और एक छोटा भाई समीर अहमद है। पिता सलीम अहमद का अपना सैलून है।
नई दिल्ली [पुष्पेंद्र कुमार]। कहते हैं कि यदि किसी के पास प्रतिभा है तो कोई भी मुश्किल उसके बढ़ते कदम को रोक नहीं सकती। जैसे दिल्ली में रेहड़ी पर नारियल बेचते हुए इस कम उम्र लड़के को देखकर विश्वास नहीं होता कि वह इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर आगे बढ़े होंगे। हालांकि, इनकी मुश्किलें आज भी कम नहीं हुई है। आइये मिलते हैं जीवन की चुनौतियों से लड़ रहे चैंपियन जावेद अहमद से और सीखते हैं चुनौतियों से लड़ने का सबब...।
दिल्ली विश्व विद्यालय से पत्राचार से बीए की पढ़ाई कर रहे जावेद
23 साल के जावेद की कहानी जिजीविषा से भरी है। उनका परिवार जगतपुरी में एक किराये के मकान में रहता है। परिवार में पिता सलीम अहमद और मां रेशमा और एक छोटा भाई समीर अहमद है। पिता सलीम अहमद का अपना सैलून है। जावेद दिल्ली विश्व विद्यालय से पत्राचार से बीए की पढ़ाई कर रहे हैं। साइकिलिंग की लगन लगी, लेकिन परिवार की आर्थिक परेशानियां आड़े आई। इतने पैसे नहीं थे कि पढ़ाई के साथ साइकिलिंग सेंटर में अभ्यास कर सके। 2018 में पिता सलीम अहमद को हार्ट अटैक आया, जिसके बाद डाक्टरों ने पिता को आराम करने के लिए कहा।
बड़े होने के नाते सैलून पर काम पर जुटाए पैसे
परिवार में बड़ा बेटा होने के नाते जावेद अपने पिता के सैलून पर काम किया और परिवार के पालन पोषण के साथ सेंटर में एंट्री के लिए फीस जुटाई। लगन इतनी की दिल्ली स्टेट साइकिलिंग चैंपियनशिप में जीत दर्ज कराने के बाद कुरुक्षेत्र में आयोजित 23वीं नेशनल साइकिलिंग चैंपियनशिप 2018 में साइकिल दौड़ा कर कांस्य पदक जीतकर गरीबी को पहली पटखनी दे डाली।
लाकडाउन के चलते बंद पड़ा है सैलून, अब रेहड़ी पर बेच रहे नारियल पानी
जावेद ने दैनिक जागरण से कहा, जरूरी नहीं की हर कोई जन्म से ही अमीर हो, अगर मेहनत और लगन हो तो हर कामयाबी हासिल की जा सकती है। आर्थिक रूप से कमजोर हूं तो क्या, मेरे पास हौसला है और इस हौसले के बदौलत जीवन में आगे बढ़ता रहूंगा। मेरा सपना है कि साइकिलिंग में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतू। जीवन में मुश्किलें तमाम हैं लेकिन इसे मैं हर हाल में पूरा करूंगा। इस सपने को पूरा करने के लिए सैलून पर लोगों के बाल कटिंग का काम करते है। लाकाडउन के चलते महज एक महीने से सैलून बंद है। ऐसे में परिवार को पालन पोषण के लिए वह क्षेत्र की सड़कों पर नारियल पानी बेचने का काम कर रहे हैं।
सड़क को ही मान बैठे स्टेडियम का साइकिल ट्रैक
जावेद सुबह चार बजे से आठ बजे तक यमुनापार की सड़क पर साइकिल चलाकर भविष्य में आयोजित साइकिलिंग चैंपियनशिप के लिए अभ्यास करते है। फिर दस बजे से कोरोना संकट के दौर में क्षेत्र के अंदर रेहड़ी पर नारियल पानी बेचने का काम करते है। वह दिल्ली विश्व विद्यालय से पत्राचार से बीए की पढ़ाई कर रहे हैं और थोड़ा समय निकालकर घर पर भी पढ़ाई कर लेते है।
छोटी से उम्र में परिवार को संभाल रहे जावेद
पिता सलीम का कहना है कि बेटे जावेद के ऊपर कम उम्र में ही काफी जिम्मेदारियां आ गई। ना ठीक से अपनी साइकिलिंग का अभ्यास कर पा रहा और न ही ठीक से पढ़ाई कर पा रहा है। लाकडाउन के चलते दुकान भी बंद है छोटी सी उम्र में बेटा नारियल बेचकर परिवार को संभाले हुए है।
हमारा सुझाव
इस होनहार को हरसंभव सहयोग उपलब्ध कराना अब सरकार और खेल संघ का दायित्व बनता है। विशेषकर खेल मंत्रालय का। जावेद को खेलो इंडिया योजना या ऐसे किसी अन्य मद के अंतर्गत सभी आवश्यक सुविधाएं, ट्रेनिंग, डाइट और पढ़ाई सुचारू रखने के लिए भी सहयोग मिले,तो वह देश को इस खेल में बड़ी सफलता दिलाने की ओर बढ़ सकता है।