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पढ़ें रिपोर्ट- इन कारणों से सबसे ज्‍यादा प्रदूषित हुई यमुना, नहाने से भी हो जाएंगे बीमार

मानसून के तीन माह छोड़ दें तो नौ माह यमुना सूखी ही रहती है। इसलिए एनजीटी द्वारा गठित निगरानी समिति ने सिफारिश की है कि यमुना में प्रदूषण फैलानेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

By Edited By: Updated: Mon, 31 Dec 2018 02:40 PM (IST)
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पढ़ें रिपोर्ट- इन कारणों से सबसे ज्‍यादा प्रदूषित हुई यमुना, नहाने से भी हो जाएंगे बीमार

नई दिल्ली, जेएनएन। यमुना की स्वच्छता का काम देख रही एक निगरानी समिति ने रिपोर्ट दी है कि मूर्ति विसर्जन से यमुना नदी में प्रदूषण की मात्रा बहुत अधिक बढ़ गई है। रंग बिरंगे पेंट और सिंथेटिक सामग्री से बनी मूर्तियों के विसर्जन से यमुना में धातु की मात्रा बढ़ गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने समिति को बताया कि गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा के मूर्ति विसर्जन और छठ पूजा की धार्मिक गतिविधियों ने यमुना को काफी नुकसान पहुंचाया है।

न्‍यूनतम जलप्रवाह की आशा
समिति ने इसे खतरनाक एवं अस्वीकार्य करार दिया है। निगरानी समिति ने कहा है कि यमुना पहले से ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। न्यूनतम जल प्रवाह सुनिश्चित होने तक इसकी स्थिति में सुधार की कोई संभावना भी नहीं है। समिति ने बताया कि यमुना में जल प्रवाह ठहर गया है।

नौ माह सूखी ही रहती है यमुना
आलम यह है कि मानसून के तीन माह छोड़ दें तो नौ माह यमुना सूखी ही रहती है। इसलिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा गठित निगरानी समिति ने सिफारिश की है कि यमुना में प्रदूषण फैलानेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और उन पर भारी जुर्माना भी लगाया जाए। सीपीसीबी के मुताबिक मूर्ति विसर्जन के बाद यमुना में क्रोमियम का स्तर भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से 11 गुना बढ़ गया है।

सबसे ज्‍यादा लोहे की मात्रा
वहीं लोहे की मात्रा निर्धारित सीमा 0.03 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 71 गुना, निकल की मात्रा निर्धारित सीमा 0.02 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर एक गुना तथा शीशे की मात्रा निर्धारित सीमा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर दोगुना हो गई है। निगरानी समिति ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए जन जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर भी बल दिया है।

स्‍नान करना भी हुआ दूभर
समिति का कहना है कि जो लोग यमुना में स्नान करते हैं उनके लिए यह धातु मष्तिष्क, फेफड़ों, गुर्दे एवं लीवर के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। लंबे समय तक इस तरह की धातुओं के संपर्क में रहने से उन्हें पार्किंसन, अल्जाइमर और मांसपेशियों के क्षय सहित अनेक घातक बीमारियां हो सकती हैं।

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