जल वितरण और भूजल की बर्बादी रोकने में तकनीक बनेगी सहायक, जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम करेगा मदद
Save Water जल है तो कल है। जल बचाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। सेंसरयुक्त तकनीक से जल वितरण आसान हो रहा है। जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम से भूजल दोहन से निकले पानी का सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा बर्बाद होगा। नदियों के जल की गुणवत्ता पर 24 घंटे नजर रखने के लिए मल्टीपैरामीटर सोंडे सिस्टम तैयार किया गया है।
अजय राय, नई दिल्ली। जल है तो कल है। इसकी बर्बादी रोकने के साथ, जहां जरूरत है वहां जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तकनीक मददगार बन रही है। देश के कई हिस्सों में इस तकनीक के इस्तेमाल से शहरों में नल से जल और गांवों में खेतों तक पानी की निगरानी के लिए बेहतर तंत्र विकसित किया गया है। सेंसरयुक्त इस तकनीक के माध्यम से जल वितरण आसानी से हो रहा है। वहीं, एक तकनीक ऐसी भी है, जिससे नदियों के जल की गुणवत्ता पर 24 घंटे नजर रखने के साथ यह पता लगाया जा सकता है कि कहां से पानी सर्वाधिक प्रदूषित हो रहा है।
प्रगति मैदान में संपन्न हुए वॉटर एक्सपो में विभिन्न तकनीक को प्रदर्शित किया। इसमें तीन तकनीक ऐसी थी, जिससे जल स्रोत, जल वितरण, सही उपयोग और उसकी गुणवत्ता पर आसानी से नजर रखी जा सकती है।
पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (एससीएडीए) सिस्टम
इससे घर घर नल से जल वितरण को सुनिश्चित करने के साथ पानी की लीकेजे का भी पता लगाया जा सकता है। सेंसरयुक्त इस तकनीक से पानी के प्रेशर और फ्लो को एक ही जगह से कंट्रोल किया जा सकता है। यह भी देखा जा सकता है कि किस पंप से कितना पानी और कितने फ्लो से कहां तक जा रहा है। इससे लो प्रेशर का भी निदान किया जा सकता है।पंप को चालू या बंद किया जा सकता है, जिससे बेवजह पंप नहीं चलता और किसी पंप में खराबी का तुरंत पता चल जाता है। इसके साथ ही किसी क्षेत्र विशेष में पानी की लीकेज या चोरी का पता लगाने के लिए उस इलाके में घरों में लगे पानी के स्वचालित मीटर रीडिंग मशीन और उस क्षेत्र में कितनी मात्रा में पानी सप्लाई किया जा रहा है, इसमें भारी अंतर होने पर सेंसर के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि कहां पानी की बर्बाद हो रही है। दिल्ली में जल बोर्ड के मुताबिक 52 प्रतिशत पानी लीकेज या चोरी में बर्बाद हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह तकनीक सहायक हो सकती है।
इसके साथ ही इस तकनीक के माध्यम शहर के सभी जलस्रोत जहां से पानी की सप्लाई की जा रही है, वो एकीकृत कमांड रूम से जुड़े होते हैं। कौन सा ट्यूबवेल या जलस्रोत कितने फ्लो से कितना पानी सप्लाई कर रहे है, यह कंट्रोल रूम से निगरानी की जा सकती है। इस तकनीक को उप्र स्थित प्रयागराज और फिरोजाबाद में लगाया गया है। इसके साथ ही हरिणाया स्थित जवाहर लाल नेहरू नहर के पंपिंग का भी आटोमेशन किया गया है। इस तकनीक के आधार पर ही नहर के पंप चलाने के साथ जल वितरण भी सुनिश्चित किया जाता है।
जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम
उद्योग जितना भूजल दोहन करते हैं उसका 50 प्रतिशत ही उपयोग कर पाते हैं, बाकी 50 प्रतिशत पानी शुद्ध करने के दौरान भाप बनकर उड़ जाता है। इससे जरूरत का दोगुना भूजल दोहन करना पड़ता है। जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम से भूजल दोहन से निकले पानी का सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा बर्बाद होगा। नई तकनीक में पानी को शुद्ध करने के दौरान ब्वायलर में इस्तेमाल किया जाता है उस दौरान निकलने वाले भाप को संग्रहित किया जाएगा।
इसे कम तापमान पर वाष्पीकरण करने बाद पानी बना लिया जाता है और इसे दोबारा भूजल में डाल दिया जाएगा या किसी अन्य कार्य में उपयोग किया जा सकेगा। इस तरह से 100 प्रतिशत पानी का 99 प्रतिशत उपयोग कर लिया जाता है। इसी क्रम में अगर पानी की गुणवत्ता खराब होती है तो उसे शोधित भी किया जाता है।इसी तकनीक के आधार पर कूड़े के लीचेट से भी पानी निकाला जाता है और उससे स्टोर करके शौचालय में उपयोग करने लायक बना दिया जाता है। इसके तहत घरों से तमाम गीला कूड़ा निकलता है। इस गीले कूड़े से मशीन के द्वारा पानी निकालकर संग्रहीत कर लिया जाता है। उसके बाद इसका ट्रीटमेंट कर उपयोग में लाया जाता है।
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