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Jagran Investigation: कैसी जू पॉलिसी! नुमाइश के धंधे तक सीमित रह गए हैं चिड़ियाघर

वाइल्ड लाइफ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य अजय जैन ने बताया कि सेंट्रल जू अथॉरिटी को एक विशेष कमेटी बनानी चाहिए विशेषज्ञों को दायित्व देना चाहिए जो इस विषय पर और जानवरों की बेहतरी के लिए सुझाव दे सकें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 08 Dec 2020 09:31 AM (IST)
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मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित चिड़ियाघर में बाघ देखने के लिए एकत्रित दर्शक। नई दुनिया आर्काइव
जागरण टीम, नई दिल्ली। जू में डाइटिंग के सहारे शेर.., कल प्रकाशित इस रिपोर्ट के माध्यम से हमने एक गंभीर विषय को उठाया है। दरअसल नेशनल जू पॉलिसी जू या चिड़ियाघरों की उपयोगिता के पक्ष में जो तर्क प्रस्तुत करती है, व्यावहारिक स्तर पर इनमें वैसा कुछ हो नहीं रहा है। नेशनल जू पॉलिसी कहती है कि लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण-प्रजनन-पुनर्वसन जू का प्रमुख ध्येय है। लुप्तप्राय प्रजातियों से आशय उनसे है जो जंगल में अपने बूते अस्तित्व बचाए रखने में सक्षम न हों। जू की उपयोगिता पर इसमें कुछ और भी तर्क दिए गए हैं।

कहा गया है कि वन्य प्राणियों से संबंधित आवश्यक शोध-अध्ययन इत्यादि के अलावा आमजन का इनसे परिचय कराने में भी जू सहायक हैं। किंतु यह सभी तर्क द्वितीयक प्रतीत होते हैं। क्या भारत के चिड़ियाघरों में लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण-प्रजनन-पुनर्वसन हो रहा है? मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय का रुख करते हैं। पता चला कि यहां लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण-प्रजनन-पुनर्वसन जैसा कुछ भी नहीं हो रहा है। बीते दस वर्षो में यहां पर कितने संरक्षित-प्रजनित शेर, बाघ, तेंदुए या अन्य प्राणियों का पुनर्वसन कराया गया? पता चला कि एक का भी नहीं। बीते दस वर्षो में यहां लुप्तप्राय कितनी वन्यजीव प्रजातियों का संरक्षण किया गया?

मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित चिड़ियाघर में मौजूद बाघ। नई दुनिया आर्काइव

उत्तर मिला- एक का भी नहीं। जंगल में अस्तित्व बचा पाने में असमर्थ प्रजातियों के संरक्षण-पुनर्वसन का कोई कार्य क्या कभी यहां किया गया? जू के अधिकारियों ने कहा- नहीं। हां, वन विभाग द्वारा दस साल में रेसक्यू किए गए कुल 60 तेंदुओं को उपचार देकर वापस वन विभाग को सौंप दिया गया। रेसक्यू किए गए 14 कछुओं को फिलहाल यहां रखा गया है। शेष पशुओं को महज नुमाइश के लिए रखा गया है।द्वितीयक और तृतीयक ध्येय की पूíत अवश्य हो रही है। चिड़ियाघर द्वारा विज्ञान के छात्रों के लिए 60 घंटे का एक वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट कोर्स चलाया जाता है। छात्र यहां आकर शेरो, हाथियों आदि पर शोध करते हैं।

हर साल ऐसे करीब 250 विद्यार्थी आते हैं। चित्रकला प्रतियोगिता सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बाघों पर दो रिसर्च पेपर भी तैयार किय गए हैं।इंदौर चिड़ियाघर का वार्षकि बजट छह से 10 करोड़ रुपये का है। पिछले वर्ष 10 करोड़ रुपये खर्च हुए। कमाई भी होती है। नुमाइश से तीन करोड़ 60 लाख रुपये की आमदनी हुई। भारतीय दर्शकों के लिए प्रवेश शुल्क 20 रुपये और विदेशी के लिए 100 रुपये निर्धारित है। स्टिल कैमरा ले जाने के लिए 50 रुपये और वीडियो कैमरे के लिए 100 रुपये फीस ली जाती है। बहरहाल, शेर नुमाइश की चीज नहीं है। शेर को पालतू कुत्ते की तरह पाला भी नहीं जा सकता है।

फूड चेन में वह सर्वोच्च कड़ी है। उसे शिकार करने में दक्ष होना ही चाहिए। किंतु जू में संरक्षित और प्रजनित शेर यदि अपनी यह प्राकृतिक दक्षता ही खो दे रहा है तो यह ठीक नहीं है। ऐसे पशुओं की संतति को जब जंगल में पुनर्वसन के लिए छोड़ा जाता है तो इनमें प्राकृतिक अनुकूलन की क्षमता नहीं रह जाती है और अधिकांश मर जाते हैं। बिल्ली प्रजाति के पशुओं यथा शेर, बाघ, तेंदुआ आदि, जो समूह में रहने, शिकार करने और निरंतर विचरण करने के प्राकृतिक स्वभाव वाले होते हैं, उन्हें जू में इसके ठीक विपरीत वातावरण मिलता है। इसे उनका संरक्षण कहा जाना उचित नहीं है। इनकी सेहत के लिए सप्ताह में एक दिन मांसाहार न देकर डाइटिंग तो करा दी जाती है, किंतु यह कतई ठीक नहीं है। जू में इनके शारीरिक व्यायाम के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं होती है। जू में मनुष्यों के निरंतर संपर्क और कृत्रिम वातावरण के कारण पशुओं में मनुष्यों और मानव आबादी के प्रति भय समाप्त हो जाता है, जो उचित नहीं है।

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