पेंट में मानंदड से ज्यादा पाया गया लेड
घर में उपयोग होने वाले पेंट में मेटल लेड की मात्रा इसके निर्धारित मानदंड से ज्यादा पाई गई है। एनजीओ टॉक्सिक लिक ने दावा किया है कि देश भर के राज्यों से पेंट के 32 सैंपल लिए गए। जिसमें से तीन सैंपल ही मानदंड के तहत पाए गए हैं। एनजीओ ने गुरुवार को अपनी अध्ययन रिपोर्ट को जारी किया। पेंट में लेड मेटल का पैमाना 90 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) तक व इससे कम होना चाहिए। यह केंद्र सरकार द्वारा मानदंड तय किए हुए हैं। लेकिन एनजीओ के अध्ययन में यह बात सामने आई देश भर के राज्यों से लिए गए 32 सैंपल में लेड की मात्रा 10 पीपीएम से 1
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : घरों व व्यावसायिक जगहों में इस्तेमाल होने वाले पेंट में लेड (सीसा) की मात्रा इसके निर्धारित मानदंड से ज्यादा पाई गई है। एनजीओ टॉक्सिक लिंक ने दावा किया है कि देशभर के राज्यों से पेंट के 32 सैंपल लिए गए जिसमें से तीन सैंपल ही मानदंड के तहत सुरक्षित पाए गए हैं। एनजीओ ने गुरुवार को अपनी अध्ययन रिपोर्ट को जारी किया। पेंट में लेड का पैमाना 90 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) तक या इससे कम होना चाहिए। यह केंद्र सरकार द्वारा मानदंड तय किए हुए हैं। लेकिन एनजीओ के अध्ययन में यह बात सामने आई कि देशभर से लिए गए 32 सैंपल में से सिर्फ तीन सैंपल में लेड मेटल की मात्रा 90 पीपीएम से कम पाई गई। जबकि तमिलनाडू से लिए गए एक सैंपल में तो लेड की मात्रा 186,062 पीपीएम भी पाया गया।
दिल्ली से दो पेंट के सैंपल लिए गए जिसमें से एक सैंपल में लेड की मात्रा 15,219 पीपीएम और दूसरा सैंपल जिसे ऑनलाइन लिया गया उसमें 4,306 पीपीएम लेड की मात्रा पाई गई। दिल्ली, छतीसगढ़, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से पेंट के सैंपल लेकर अध्ययन किया गया।
एनजीओ के वरिष्ठ प्रोग्राम कॉर्डिनेटर पीयूष मोहापात्रा ने बताया कि पेंट में लेड एक सामान्य तत्व होता है। तय मात्रा से ज्यादा होने पर यह यह बच्चों पर असर डालता है। यह बच्चों के नर्वस सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है।
एनजीओ की अन्य प्रतिनिधि तृप्ति अरोड़ा ने बताया कि हमने जांच के लिए पेंट के सैंपल ऑनलाइन भी लिए थे। इनमें से ऑनलाइन जो सैंपल लिए थे उनमें कोई लेबल भी नहीं था। जबकि सरकार के नियमों के अनुसार पेंट के पैकेट में लेबल होना अनिवार्य होना चाहिए और उसमें लेड मेटल की मात्रा 90 पीपीएम तक या इससे कम होना चाहिए। यह 12 साल तक के बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए नुकसानदायक है। इससे उनमें हाइपरटेंशन हो सकता है।