'बिना कोयले के तंदूर के पुरानी दिल्ली के व्यंजनों में वो बात कहां'
-जामा मस्जिद के अधिकांश रेस्त्रां में होता है कोयले का इस्तेमाल -पीएनजी की पाइप लाइन संकर
By JagranEdited By: Updated: Tue, 04 Sep 2018 11:26 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण का हवाला देते हुए भले ही पीएनजी आधारित तंदूर पर 50 फीसद सब्सिडी देने का फैसला किया हो, लेकिन पुरानी दिल्ली के प्रसिद्ध रेस्त्रां संचालकों के मुताबिक कोयले के तंदूर के बिना व्यंजनों में वह स्वाद कहां, जिसके दीवाने दूसरे राज्यों और विदेश से खींचे चले आते हैं। रेस्त्रां संचालकों के मुताबिक संकरी गलियों में बसे पुरानी दिल्ली में पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) लाइन पहुंचना भी आसान नहीं है। यही नहीं, अभी मुश्किल से 25 फीसद दिल्ली में ही पीएनजी की उपलब्धता है। पुरानी दिल्ली में जायका, चंगेजी, अल जवाहर व करीम जैसे नामी रेस्त्रां है तो 15 से अधिक अन्य रेस्त्रां चलते हैं। जिसके मुगलई व्यंजनों का नाम कई देशों तक में है। अधिकांश में व्यंजनों को पकाने के लिए कोयले के तंदूर का इस्तेमाल होता है। दरियागंज स्थित जायका रेस्त्रां के संचालक दानिश के मुताबिक व्यंजनों को पकाने में कोयले के तंदूर का विशेष महत्व है। कोयले की मद्धम आंच पर व्यंजन पकते हैं। इसके अलावा व्यंजनों में कोयले की महक भी आती है, जो उसे खास बनाती है। यह स्वाद पीएनजी के तंदूर में नहीं आएगी। अगर इसका उपयोग हुआ तो स्वाद के साथ व्यंजनों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।
वहीं, मटिया महल में एक नामी रेस्त्रां के संचालक ने बताया कि पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों में कई नामी रेस्त्रां है। यहां अगर पीएनजी तंदूर लगा भी लिया जाए तो गैस की आपूर्ति कैसे होगी यह बड़ा सवाल है। एक अन्य रेस्त्रां संचालक ने कहा कि सर्दियों में प्रदूषण का हवाला देते हुए कोयले के तंदूर के प्रयोग पर रोक लगा दी गई थी। जिसका प्रभाव कारोबार पर पड़ा था।
दिल्ली होटल महासंघ के अध्यक्ष अरुण गुप्ता ने कहा कि तंदूर में लकड़ी के कोयले का इस्तेमाल होता है। यह कोयला प्रदूषण की सूची से बाहर है। ऐसे में सरकार की तंदूर को पीएनजी आधारित करने की कोशिश समझ से परे हैं। ऊपर से पीएनजी से पकी रोटियां और अन्य व्यंजनों में वह स्वाद नहीं आएगा।
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