अल्लाह के करीब ले जाता है रोजा
रोजा खुद को खुदा की राह में समर्पित करने का एक जरिया है, क्योंकि यह अल्लाह के दिए गए हुक्म को प
By JagranEdited By: Updated: Sun, 27 May 2018 09:15 PM (IST)
रोजा खुद को खुदा की राह में समर्पित करने का एक जरिया है, क्योंकि यह अल्लाह के दिए गए हुक्म को पूरा करने का तरीका है। इसमें एक रोजेदार पूरे दिन भूखा एवं प्यासा रहकर अल्लाह की इबादत करता है। रोजा दुनिया को दिखाने के लिए नहीं है, क्योंकि रोजेदार अगर छिपाकर कुछ खा ले तो कोई उसे देख तो नहीं रहा, लेकिन रोजेदार ऐसा नहीं करता। केवल अल्लाह के डर से वह रोजे को पूरा करता है, जिससे रोजेदार अल्लाह के करीब पहुंच जाता है। कुरान शरीफ में रोजेदार को हर बुराई से दूर रहने के बारे में कहा गया है। व्यक्ति को किसी से झगड़ा, गाली-गलौच नहीं करना, आंख से बुरा नहीं देखना। कान से गलत नहीं सुनना व नाक से चाह कर किसी खाने की सुगंध नहीं लेनी।
रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है, जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है, ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो। रोजे में यह हिदायत है कि चाहे अमीर हो या मध्यम वर्ग का व्यक्ति, वह अपने आस-पास के लोगों का ख्याल रखे। उन्हें खाना दे, कपड़ा दे। उन्हें खुशी दे, क्योंकि उनके बिना खुश रहे, रोजा पूरा नहीं होगा। रोजा रखने से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है, क्योंकि व्यक्ति पूरे वर्ष खाता है। ऐसे में एक माह न खाने से उसके जिस्म में सहनशक्ति बढ़ती है। इससे पूरे वर्ष तक जिस्म को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। -एजाज अरशद कासमी, अध्यक्ष, मुस्लिम यूथ फॉर इंडिया।
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