पढ़िए- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से जुड़ी कुछ अनसुनी जानकारियां, देखते ही दिल जीत लेगा ‘एकत्र’
चलती है। ठहरती है। कुछ सोचती है। फिर संस्कृति वक्त के साथ संवाद करती है। ये जगह है ही ऐसी जिसमें कोस-कोस की माटी को..कोस-कोस की शैली को..कोस कोस की कला छाप को..रीति और परंपरा को दिल्ली दिल में छिपाए बैठी है।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Sat, 17 Jul 2021 12:50 PM (IST)
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का नया ठौर अब जनपथ होटल है। किलोमीटर के हिसाब से देखें तो पहले वाले पते से महज दो किमी दूर। लेकिन इमारत के नजरिए से देखें तो यह दूरी लंबी दिखती है, जिसे पाटने में आइजीएनसीए जी जान से जुटा है। भला एक होटल में सांस्कृतिक केंद्र कैसे..लेकिन जब दर्शक यहां आएंगे तो यकीनन उनकी धारणा बदल जाएगी। एक अगस्त से केंद्र दर्शकों की आगवानी के लिए तैयार है। प्रवेश द्वार पर हाथियों की प्रतिमाएं स्वागत करेंगी तो केंद्र में प्रवेश करते ही भरत मुनि की प्रतिमा श्रद्धा भाव जागृत करती है। आइजीएनसीए के ऐतिहासिक सफर का यह महज एक पड़ाव है। जामनगर हाउस में अंतरराष्ट्रीय स्तर की इमारत बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जल्द ही सांस्कृतिक दुनिया का नया अवतार नजर आएगा।
अब बात करते हैं पुरानी ठौर की.. एडवर्ड लुटियंस ने नई दिल्ली में सांस्कृतिक केंद्रों की महत्ता समझी। संग्रहालयों को विशेष स्थान दिया। बाद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कला संस्कृति केंद्र के रूप में आइजीएनसीए की स्थापना की पहल की। लेकिन काफी समय तक यह चर्चा का विषय बना रहा कि सेंट्रल विस्टा स्थित केंद्र की इमारत लुटियंस से प्रेरित होगी या ये अपनी खासियत समेटे होगी। लिहाजा, इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता कराई गई। ज्यूरी में प्रसिद्ध भारतीय आर्किटेक्ट एपी कानविन्दे, बीवी दोशी, जापानी आíकटेक्ट फूमिहिको माकी और ब्रिटिश आíकटेक्ट जेम्स स्टेरलिंग थे। 37 देशों से 190 इंट्री आई थी। जिसमें से अमेरिकन आर्किटेक्ट राल्फ लर्नर का डिजाइन पसंद किया गया।
स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 19 नवंबर, 1985 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का शुभारंभ किया था। उस समय का स्थापना आयोजन भी आज तक लोगों की स्मृतियों में है। था ही बहुत विशेष आयोजन। दरअसल पंच तत्व: अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश और वनस्पति इन सभी को एक साथ लाया गया..। अब जिज्ञासा होगी कैसे? पांच प्रमुख नदियों सिंधु, गंगा, कावेरी, महानदी और नर्मदा से लाए गए पांच चट्टानों को मूíतयों के आकार में ढाला गया। एक कृत्रिम पोखर में, प्रथम वनस्पतिक सिद्धांत के रूप में एक कमल खिला। और तब राजीव गांधी ने जल में प्रज्जवलित दीप बहाए। अद्भुत दृश्य था। आइजीएनसीए न्यास का गठन और पंजीकरण 24 मार्च 1987 को संपन्न हुआ। ये केंद्र 25 एकड़ में स्थित था और सबसे खास बात अश्वत्था यानी पीपल, नवग्रोधा, अशोक, कदंब और अर्जुन जैसे पांच पेड़ों की छाया में ढका हुआ था।
और आज का पड़ाव : जनपथ होटल यह पहला सांस्कृतिक केंद्र है, जिसके प्रवेश द्वार पर भरत मुनि की प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतिमा के ठीक पास ही भारत, इंडोनेशिया, स्विटजरलैंड, मैक्सिको, नेपाल, इटली, उत्तरी कोरिया और श्रीलंका की मास्क यानी मुखौटा कला का दीदार किया जा सकता है। गलियारों में शंभूनाथ मित्र, लाला दीन दयाल, मोहन खोकर डांस कलेक्शन से जुड़ी कलाकृतियां दर्शकों का मन मोह लेती हैं। कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर को 72 फीट लंबे पट के जरिए प्रदर्शित किया गया है। केंद्र ने पूरी कोशिश की है कि दर्शक होटल भूल, कला संस्कृति की छांव में सुकून से वक्त गुजारें।
केंद्र के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी कहते हैं कि पांच एकड़ क्षेत्र में होटल है। पहले की तुलना में जगह कम है लेकिन हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि एक-एक इंच का इस्तेमाल करें। दर्शक आते समय जनपथ होटल ध्यान में रखकर भले आएं, लेकिन जब जाएं तो केंद्र मानस पटल पर अंकित हो। यहां स्टोरेज की सुविधाएं पूर्व से अच्छी हैं। लाइब्रेरी भी पहली और दूसरी मंजिल पर बनाई गई। कंजरवेशन की लैब भी काफी प्रभावी है। इसी में सीपीडब्ल्यूडी ने पांच मंजिला अस्थाई इमारत तैयार की है जिसे मीडिया सेंटर के रूप में बनाया गया है।
इसी में लाइब्रेरी, एम्पीथियेटर आदि हैं। 300 की क्षमता का एम्पीथियेटर है, आडिटोरियम पहले से बेहतर मिला है। केंद्र की पूर्व इमारत वाले आडिटोरियम में बीच बीच में खंभे थे, स्टेज की डिजाइन भी सही नहीं थी। अब ये सब कमियां यहां दूर हो गई हैं। यहां स्टेट आफ आर्ट स्टूडियो भी बनाया गया है जिसमें चार कैमरे लगाकर शूटिंग की जाएगी। पीसीआर रूम बनाया जाएगा।दिल जीत लेगा ‘एकत्र’
जनपथ होटल में खुले मैदान की कमी तो अखरती है। लेकिन जब बात एक-एक इंच का सदपयोग करने की है तो उसके लिए भी एक आकर्षक व्यवस्था यहां है। होटल में तीन बड़ी छत हैं। प्रयोग के रूप में एक छत को एकत्र नाम दिया गया है। सदस्य सचिव बताते हैं कि एकत्र का नजारा दिल छू लेने वाला है। खुले आसमान के नीचे छोटे छोटे आयोजन जैसे काव्य गोष्ठी, किस्सागोई, पुस्तक चर्चा आदि आदि का आयोजन किया जाएगा। एकत्र की क्षमता 100 लोगों की है। इसी तरह एक दूसरी इमारत की छत पर भी इसी तरह का प्रयोग किया जाएगा। यहां जगह थोड़ी ज्यादा है सो कम से कम 300 लोग एकत्र हो सकेंगे।
आधुनिकता की मिसाल होगी कायम जामनगर हाउस में 15 एकड़ में स्थाई इमारत बनेगी। निर्माण प्रक्रिया के पड़ाव शुरू हो गए हैं। सच्चिदानंद जोशी बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा है कि यहां एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की मानक संस्था बनें ताकि लोग आर्ट सेंटर के लिए इस केंद्र की नजीर पेश करें। जून 2024 डेडलाइन तय की गई है। टेंडर निकालने की प्रक्रिया शुरू होने वाली हैं। संभवत: अगस्त महीने में टेंडर जारी किया जाएगा। जिसके बाद निर्माण कार्य जोर पकड़ेगा। जामनगर में बनने वाली इमारत का डिजाइन अभी फाइनल नहीं हुआ है लेकिन एक संभावित माडल जारी किया गया है। केंद्र की मानें तो अत्याधुनिक बहुउद्देशीय आडिटोरियम बनाया जाएगा। बहुआयामी गैलरी बनाई जाएगी। जिसमें वैज्ञानिक तरीके से लाइटिंग की व्यवस्था की जाएगी।
केंद्र सरकार इंडियन इंस्टीट्यूट आफ हेरिटेज की योजना बना रही है, जिसमें आइजीएनसीए की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। नई इमारत में शैक्षणिक गतिविधियां भी संचालित होंगी। बकौल सदस्य सचिव हाल के वर्षो में शैक्षणिक गतिविधियां संचालित की जाने लगी हैं। नई इमारत में एक अकादमिक विंग होगा, जिसमें देश विदेश के रिसर्च स्कालर शोध करेंगे। एक गेस्ट हाउस भी बनवाया जाएगा।500 दर्शकों की क्षमता वाला एक आडिटोरियम भी बनाया जाएगा। 1500 दर्शकों की क्षमता वाला एम्पीथियेटर भी होगा। नाट्यशास्त्र आधारित तीन छोटे आडिटोरियम भी होंगे। इनको इस तरह बनाया जाएगा कि कार्यक्रम के लिए उपयोग में लाए जा सके। जब कार्यक्रम नहीं होंगे तो दर्शनीय स्थल के रूप में प्रयोग में लाए जाएंगे।
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