बच्चों के माता-पिता की अपने बच्चों से काफी सारी उम्मीदें व कई ख्वाहिशें होती हैं इन्हीं ख्वाहिशों को पूरा करते-करते आजकल बच्चों की परवरिश अधूरी रह जाती है। यह एक गंभीर विषय है जिस पर आज हर माता-पिता व अध्यापकों को सोचने की जरूरत है। इसी उपलक्ष्य में दैनिक जागरण द्वारा ईस्ट ज्योति नगर स्थित गुरु हरकृष्ण पब्लिक स्कूल में संस्कारशाला कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें Þख्वाहिशें पूरी, परवरिश अधूरी'विषय के माध्यम से बच्चों को संस्कारों की शिक्षा दी गई।
कार्यशाला के दौरान स्कूल के चेयरमैन कुलवंत ¨सह बाठ ने सभी बच्चों से कहा कि उन्हें अपने माता-पिता, अध्यापकों व अपने से बड़े हर व्यक्ति का आदर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो संस्कार बच्चों को हमारे देश में दिए जाते हैं वह कि
By JagranEdited By: Updated: Wed, 26 Sep 2018 08:05 PM (IST)
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : बच्चों की माता-पिता से और उनकी बच्चों से काफी उम्मीदें व कई ख्वाहिशें होती हैं। इन्हीं ख्वाहिशों को पूरा करते-करते माता-पिता से अनजाने में बच्चों की परवरिश अधूरी रह जाती है। यह गंभीर विषय है। इस पर आज हर माता-पिता व अध्यापकों को सोचने की जरूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए दैनिक जागरण की ओर से ईस्ट ज्योति नगर स्थित गुरु हरकृष्ण पब्लिक स्कूल में संस्कारशाला का आयोजन किया गया। इसमें 'ख्वाहिशें पूरी, परवरिश अधूरी' विषय पर बच्चों को संस्कारों की शिक्षा दी गई।
इस अवसर पर स्कूल के चेयरमैन कुलवंत ¨सह बाठ ने सभी बच्चों से कहा कि उन्हें माता-पिता, अध्यापकों व अपने से बड़े हर व्यक्ति का आदर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो संस्कार बच्चों को हमारे देश में दिए जाते हैं, वे किसी और देश में नहीं दिए जाते। हमारे देश में संस्कारों का काफी महत्व है। जो बच्चे बड़ों का आदर करते हैं वही जीवन में सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं। उन्होंने बताया कि सफलता पाने की अंधी दौड़ में आजकल माता-पिता अपनी इच्छा अपने बच्चों पर थोपने लगते हैं। बच्चा जब नर्सरी कक्षा में जाता है तभी उसके माता-पिता सोच लेते हैं कि वह डॉक्टर, वकील, इंजीनियर व पायलट आदि बनेगा, लेकिन वे अपने बच्चे की इच्छा नहीं पूछते कि उसे क्या बनना है। ऐसे में वे केवल अपने बच्चे की ख्वाहिशें पूरी करते हैं और बच्चे की परवरिश ही अधूरी रह जाती है। उन्होंने बच्चों को एक उदाहरण दिया कि एक बार 11वीं कक्षा में अपने बच्चे का दाखिला कराने आए उसके माता-पिता आए। उन्होंने मुझसे कहा कि हम अपने बच्चे का दाखिला कॉमर्स में कराना चाहते हैं। मैंने जब उस बच्चे को बुलाकर उनके सामने ही पूछा कि तुम्हें क्या पढ़ना है तो उसने बोला जो मेरे माता-पिता चाहते हैं। इसका मतलब बच्चे की अपनी कोई ख्वाहिश ही नहीं रही। माता-पिता उस पर अपनी मर्जी थोप रहे हैं। आजकल यही हो रहा है। माता-पिता ख्वाहिशें पूरी करने के चक्कर में परवरिश अधूरी छोड़ रहे हैं। आजकल किसी को मोबाइल व टीवी से ही फुर्सत नहीं मिलती तो बच्चों को परवरिश कहां से मिलेगी।
कार्यक्रम में पहुंचे दिल्ली विधिक प्राधिकरण के वकील दिनेश कुमार गुप्ता ने बच्चों को बताया कि उन्हें सबसे पहली शिक्षा संस्कारों की लेनी चाहिए। संस्कार सबसे बड़ा धन है। उन्होंने बच्चों से कहा कि माता-पिता आजकल केवल ख्वाहिशों के पीछे दौड़ रहे हैं, जिस कारण वे बच्चों को समय नहीं दे पाते और उनकी परवरिश अधूरी रह जाती है। इसका परिणाम हो रहा है कि बच्चे माता-पिता से कई बातें छिपाने लगे हैं और झूठ बोलने लगे हैं। कई बच्चे तो परवरिश की कमी के कारण गलत संगत में पड़ जाते हैं। माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते, इसलिए वे अपने साथ स्कूल, घर व घर से बाहर हो रहे गलत व्यवहार के बारे में घर पर कुछ नहीं बताते हैं। इसका परिणाम हम सब आज देख रहे हैं। रोजाना कई बच्चे स्कूल व घर के अंदर तक शोषण का शिकार हो रहे हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें समय ही नहीं दे पाते हैं। उन्होंने बच्चों को विशेष रूप से पॉक्सो एक्ट के बारे में बताया, जिसमें उन्हें गुड व बैड टच की भी जानकारी दी गई। अंत में प्रधानाचार्या अमरजीत कौर ने संस्कारशाला आयोजित कराने के लिए दैनिक जागरण व उपस्थित सभी मेहमानों को धन्यवाद कहा। इस अवसर पर सभी बच्चों के साथ अध्यापिका जसवीर कौर सैनी, ज¨तदर कौर, प्रवीन कौर, हरजीत कौर रंधावा, मनजीत गांधी व अनु भाटिया मौजूद थे। विद्यार्थियों की राय
हम अब रोज अपने माता-पिता के साथ कुछ समय जरूर बिताएंगे और उनसे सारी बातें शेयर करेंगे। माता-पिता व घर में सभी बड़ों के साथ कुछ देर बैठकर अच्छी बातें सीखेंगे।
-भावी, छात्रा।
हमारे माता-पिता ने हमें बड़ों की इज्जत करना सिखाया है। मैं अपने से सभी बड़े लोगों को नमस्कार करती हूं। कभी किसी को गलत नहीं बोलती हूं। इस कार्यशाला से मुझे बड़ों की इज्जत करने की और प्रेरणा मिली है। - दृष्टि शर्मा, छात्रा। मुझे इस कार्यशाला में भाग लेकर काफी अच्छा लगा। अब मेरे साथ अगर कभी कुछ गलत हो तो सबसे पहले माता-पिता व शिक्षकों को बताऊंगी। कभी कुछ नहीं छिपाऊंगी। यदि कोई व्यक्ति परेशान करेगा तो उसकी शिकायत घर पर या स्कूल में जरूर करूंगी। -दीक्षा, छात्रा। मैं अब छुट्टी का दिन माता-पिता के साथ ही बिताऊंगा और उनसे अपने दिल की बातें करूंगा। कभी किसी से झूठ नहीं बोलूंगा। न ही स्कूल में अपने दोस्तों से लड़ाई-झगड़ा करूंगा। -अभिनव अरोड़ा, छात्र। माता-पिता को बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए। आजकल माता-पिता दोनों ही काम करने लगे हैं। इस कारण वे बच्चों को समय नहीं दे पाते। इससे बच्चों की परवरिश अधूरी रह जाती है। जब माता-पिता काम से लौटकर घर आएं तो बच्चों को उनसे हंसकर मिलना चाहिए और उनका आदर करना चाहिए। बच्चों को अपना कुछ काम स्वयं भी कर लेना चाहिए और छुट्टी वाले दिन माता-पिता के साथ बैठकर उनसे अच्छी बातें सीखनी चाहिए, जिससे उनमें संस्कार आए। माता-पिता आधुनिकता की दौड़ में बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने व उनसे अपनी ख्वाहिशें पूरी कराने की कोशिशों में उनकी परवरिश ही अधूरी छोड़ देते हैं। आजकल हम देख रहे हैं कि बच्चे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होकर बदतमीजी से बात करने लगे हैं। हर चीज के लिए माता-पिता से जिद करते हैं। यह सब परवरिश की कमी के कारण ही हो रहा है। -अमरजीत कौर, प्रधानाचार्य, गुरु हरकृष्ण पब्लिक स्कूल।
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