सावरकर से प्रेरित था भगत सिंह का ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह : माहूकर
फोटो: 3 डेल 203 परिचर्चा - कांस्टीट्यूशन क्लब में 'सावरकर पर पुनर्विचार' विषय पर बोले - भ
By JagranEdited By: Updated: Tue, 03 Jul 2018 10:07 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार उदय माहूकर ने दावा किया कि शहीद भगत सिंह का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह वीर सावरकर से प्रेरित था। वह लाहौर में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या और केंद्रीय संसद में बम विस्फोट से पहले रत्नागिरी में राजगुरु व सुखदेव के साथ सावरकर से मिले थे। उन्होंने कहा कि तब सावरकर रत्नागिरी में अंग्रेजों द्वारा नजरबंद किए गए थे। माहूकर कांस्टीट्यूशन क्लब में उमंग फाउंडेशन व प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा आयोजित 'सावरकर पर पुनर्विचार' परिचर्चा को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने भगत सिंह को अब तक नास्तिक बताए जाने के तथ्य पर सवाल खड़े किए। कहा कि भगत सिंह का परिवार आर्य समाजी था। जिस लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने की भगत सिंह ने ठानी थी, वह भी आर्य समाजी थे। भगत सिंह मूर्ति पूजा के आलोचक थे, न कि नास्तिक थे, जैसा कि वामपंथी इतिहासकारों ने प्रचारित किया। उदय माहूकर ने सावरकर द्वारा अंग्रेजों से माफी मांगे जाने को उनकी रणनीति बताया। कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, लेकिन उनकी यह रणनीति छत्रपति शिवाजी द्वारा औरंगजेब से चार बार माफी मांगने की उस चाल की तरह थी, जिसमें उन्होंने पहले माफी मांगी फिर उस समय का उपयोग शक्ति जमा कर युद्ध छेड़ने के लिए किया। माहूकर ने स्पष्ट किया कि सावरकर शिवाजी के उपासक थे, ऐसे में उनसे महात्मा गांधी वाली नीति ढूंढने पर निराशा हाथ लगेगी। वह अंहिसक तो थे लेकिन ¨हसा के खिलाफ ¨हसा का सहारा लेना भी उचित मानते थे। भाजपा के मुख पत्र व प्रकाशन विभाग के राष्ट्रीय प्रमुख शिव शक्ति नाथ बक्शी ने कहा कि अब समय आ गया है जब हमें अपने इतिहास पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में जब संसद भवन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सावरकर के चित्र का अनावरण कर रहे थे तब कांग्रेस पार्टी ने समारोह का बहिष्कार कर दिया था। इससे पता चलता है कि देश की तमाम विभूतियों पर विचार बहस से कतराने वाला वर्ग देश पर एक विशिष्ट इतिहास थोपना चाहता है जो एक पार्टी से होते हुए एक परिवार की गोद में समा जाता है। पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि ऐसे तमाम लोगों से स्वतंत्रता आंदोलन व उसके बाद का कालखंड भरा पड़ा है जिन्होंने भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया लेकिन उन्हें पीछे धकेलते हुए कुछ चुनिंदा लोगों को ही आगे किया गया। वहीं, कुछ महापुरुषों को भाषा, भूगोल, जाति व धर्म के खांचे में बांटकर उनका कद सीमित किया गया। यहां तक की अ¨हसा के सिद्धांत की व्याख्या में वाल्मीकि और गौतम बुद्ध को भी किनारे कर दिया गया। वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर प्रकाश सिंह ने कहा कि आज सावरकर की लेखनी, जीवन और विचार पर बौद्धिक चिंतन की जरूरत है, लेकिन अकादमिक जगत में सावरकर और ¨हदुत्व हमेशा से ही आलोचना का शिकार रहे हैं जिसका तार्किकता से कोई लेना-देना नहीं है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।